प्रवासी साहित्य : पंद्रहवा नया संसद
- हरिबाबू बिंदल
संसद में देखे कई, नए-नए से सीनसोनियाजी के बगल में, आडवाणी आसीनआडवाणी आसीन, मोहिली मुख मोड़े थेपासवानजी नजर, भारती से जोड़े थेनए-नए चेहरों से, संसद चहक रहा थाराहुल रुख, रूखा-रूखा दिख रहा था।बात-बात पर पिट रही थी टेबिल धड़धड़धड़नए सदस्यों में भरा, जोश-खरोश सुदृढ़जोश-खरोश सुदृढ़, खासकर नई नारियांनारी का अपमान, रोकने की तैयारियांस्मृति ईरानी लगती थी, बड़ी सीरियसबीए नहीं किया, तो क्या, है जीनियसशत्रुघ्न जी हैं खफा, है पर्दे की हारछोटा पर्दा ले गया, उनसे बाजी मारउनसे बाजी मार, मंत्रिणी बनी देश कीजिसने छोटे पर्दे, से जिंदगी शुरू कीमोदी जी यदि शेर, शेरनी स्मृति भी थीजिसने उनके प्रतिद्वंद्वी से टक्कर ही की थी। सपा सुप्रीमो सिमटकर, हुए हैं मुलायमबसपा हाथी सिकुड़कर, बन गया सलगमबन गया सलगम, बहन ममता ज्यों तृणकासीधा नहीं मिजाज, अभी कड़गम अम्मा काऐन सीपी के मुंह, अभी भी टेड़े लगतेबाकी सब दल हाथ जोड़कर जी हां करते।