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Written By WD

कहानी - स्वर्ग में उर्वशी के संग एक दिन

- डॉ. आदित्य नारायण शुक्ला 'विनय'

Story | कहानी - स्वर्ग में उर्वशी के संग एक दिन
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लगता है दुनिया के अधिकांश लोग पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। हो सकता है इसका प्रमुख कारण हो विश्व की प्रायः सभी प्रमुख भाषाओं में गीता का अनुवाद। गीता में भगवान कृष्ण ने यह स्पष्ट रूप से आभास दिया है कि मनुष्य का पुनर्जन्म होता है। हमारी आत्मा एक शरीर को त्याग कर उसी तरह से पुनः नया शरीर धारण कर लेती है, जिस तरह से हम अपने पुराने वस्त्रों को त्याग कर नया वस्त्र धारण कर लेते हैं।

हिन्दुओं में ही नहीं, प्रायः सभी कौम के लोगों में (जो स्वर्ग-नरक व पुनर्जन्म विश्वासी हैं) यह भी मान्य है कि हम अपने वर्तमान जीवन में जैसा पाप-पुण्य कमाते हैं, उसी के अनुरूप हमें देह त्याग के बाद स्वर्ग या नरकवास भोगना पड़ता है। फिर हमारे बचे-खुचे पाप-पुण्य के अनुरूप ही हमें नया शरीर या नया जन्म मिल जाता है।

मनुष्य या पशु-पक्षी के रूप में इसी श्रृंखला और संबंध में मुझे एक अमेरिकी सज्जन से कुछ और आगे जानकारियां मिलीं।

यह गोरे अमेरिकी सज्जन 'हरे कृष्ण' सम्प्रदाय (इस्कान) के थे। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है- इस संप्रदाय के लोग कृष्ण-भक्त होते हैं और अपना मूल अमेरिकी नाम त्याग कर कृष्ण भक्ति-शाखा के ही नाम - जैसे माधव, मुरारी, मुरलीधर, कन्हैया, श्याम, गिरिधर, श्यामरतन, देवकीनंदन आदि में से कोई एक नाम रख लेते हैं।

हरे कृष्ण सम्प्रदाय के लोग अपने को हिन्दू ही नहीं ब्राह्मण भी मानते हैं व यज्ञोपवीत भी धारण करते हैं। तो उन अमेरिकी सज्जन गिरिधर जी से मेरी भेंट हो गई- सैन फ्रांसिस्को (कैलिफोर्निया, अमेरिका) के हरे कृष्ण सम्प्रदाय के आश्रम में जहां मैं कभी-कभी छुट्टी के दिन किसी कृष्ण भक्त विद्वान का प्रवचन सुनने चला जाता हूं। चूंकि मैं सैन फ्रांसिस्को के एक उपनगर कानकार्ड में ही रहता हूं।


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गिरिधर जी अमेरिका भर में फैले विभिन्न कृष्ण मंदिरों में से एक- वर्जिनिया टेम्पल से व्याख्यान देने सैन फ्रांसिस्को आए थे। उनके सुन्दर व ज्ञानवर्धक प्रवचन सुनकर मैं बड़ा ही प्रभावित हुआ। उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलने की इच्छा हुई। 45 वर्षीय गिरिधर जी मुझसे बड़े ही प्रेम से मिले, फिर चर्चा के दौरान उन्होंने अपने जीवन की एक अद्भुत व अनहोनी-सी घटना मुझे बताई।

उन्ही के शब्दों में सुनें- पांच वर्ष हुए, मैं किसी काम से एटलांटा (अमेरिका के ज्यार्जा प्रांत) गया हुआ था। वहां मुझे दिल का दौरा पड़ा। मुझे अस्पताल के इमरजेंसी विभाग पहुंचाया गया किंतु वहां डाक्टरों ने मुझे मृत घोषित कर दिया। अस्पताल ने मेरे वर्जिनिया टेम्पल को यह सूचना भेज दी कि वे दो दिन के भीतर मेरा शव वहां से ले जाएं। देह त्याग के बाद मुझे एक नया चोला (शरीर) गया मिल था। मैं अनेक नए चोलों (मृतात्माओं) के संग एक उड़न बसनुमा वाहन में यमदूत के साथ परलोक पहुंचा। परलोक में एकओर स्वर्गलोक और दूसरी ओर नरकलोक के अलग-अलग विशाल द्वार हैं।

दोनों द्वारों के ठीक मध्य में जिसका कार्यालय है उसे हिन्दूगण 'चित्रगुप्त' के नाम से जानते हैं। चित्रगुप्त अपने दफ्तर में एक कम्प्यूटरनुमा यंत्र के सामने बैठे रहते हैं। उनके टेबल पर एक टेलीफोननुमा यंत्र भी रखा हुआ है। मृतात्मा लाइन में बारी-बारी से चित्रगुप्त के पास पहुंचते हैं और वे कम्प्यूटर में मृतात्मा का एकाउंट खोलकर उसके पाप-पुण्य का हिसाब देखते हैं। जिसके खाते में पुण्य अधिक उसे स्वर्ग व पाप अधिक उसे नरक भेज देते हैं।

मृतात्माओं की लाइन में मैं भी चित्रगुप्त के पास पहुंचा। चित्रगुप्त ने कम्प्यूटर पर मेरा एकाउंट खोल कर देखा पर स्क्रीन पर मेरा एकाउंट देखते ही चिल्ला पड़े- 'अरे! अभी तो तुम्हारी मृत्यु लिखी ही नहीं है, तुम्हे कौन बेवकूफ यमदूत यहां पकड़ लाया?' फिर मुझे पकड़कर लाए यमदूत को बुलवा कर उन्होंने उसे अच्छी-खासी डांट लगाई।

- 'तुम अपने काम में बड़े ही लापरवाह हो। जाओ इसे मृत्युलोक (यानी पृथ्वी पर) वापस पहुंचा कर आओ। यमदूत ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा - 'चलो भाई, पृथ्वी पर वापस चलो। मुझसे भूल हो गई। मुझे तुम्हे नहीं लाना था।'

किंतु मैंने उससे अपना हाथ छुड़ा कर चित्रगुप्त के दोनों चरण पकड़ लिए और उनसे कहा- 'प्रभु, अब मुझे वापस पृथ्वी पर न भेजें। वहां तो कष्ट ही कष्ट है। चाहें तो यहीं नरक में ही स्थान दे दें।'

'नहीं मनुष्य। जब तक किसी की मृत्यु नहीं लिखी हो वह परलोक में नहीं रह सकता।' चित्रगुप्त ने उत्तर दिया।

'लेकिन प्रभु अब तो मेरी मृत्यु हो ही चुकी है।'

'वह तो यमदूत ने भूल या गलती से तुम्हे मार डाला है। तुम्हे पृथ्वी पर वापस लौटना ही पड़ेगा।' चित्रगुप्त ने कहा।

तो फिर मेरा एक छोटा-सा निवेदन स्वीकार कर लें।

- 'कहो'

- 'जब यहां आ ही गया हूं तो कुछ समय के लिए मुझे परलोक-भ्रमण कर लेने दें।'

मेरा यह निवेदन सुनकर चित्रगुप्त ने कम्प्यूटर पर पुनः मेरे पाप- पुण्यों का ब्यौरा देखा। फिर न जाने क्या सोचकर मेरा निवेदन स्वीकार कर लिया। शायद मेरे खाते में पुण्य ज्यादा थे- पापों की तुलना में। इसीलिए उन्होंने मुझे स्वर्गलोक-भ्रमण पर भेजने का निर्णय लिया।

मेरे साथ गाइड के बतौर जाने के लिए उन्होंने किसी को फोन किया।

फिर मुझसे कहा- 'अच्छा ठीक है। थोड़ी देर प्रतीक्षा करो। मैंने तुम्हारे साथ किसी को भेजने के लिए बुलाया है।'

'प्रभु आपका बहुत-बहुत शुक्रिया'
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कोई दस मिनट में एक उड़न कार चित्रगुप्त कार्यालय के सामने आकर उतरी। उसकी ड्राइविंग सीट से एक अतिसुंदर भद्र महिला बाहर निकलीं। उतनी गोरी और परम सुंदरी महिला मैंने पृथ्वीलोक में आज तक नहीं देखी थी। चित्रगुप्त ने मेरा और उस महिला का आपस में परिचय कराया - 'उर्वशी जी, यह वर्जिनिया अमेरिका के कृष्ण सम्प्रदाय के गिरिधर जी हैं। यमदूत इन्हें भूल से यहां उठा लाया है। इनकी इच्छा है कि थोड़ी देर के लिए आप इन्हें स्वर्ग-भ्रमण करा दें।'

वास्तव में मैं देखना तो नरक चाहता था ताकि यह पता लग सके कि पापियों को वहां कैसी-कैसी यातनाएं दी जाती हैं। तदनुसार पृथ्वी पर वापस लौट कर अपने पापों पर कुछ नियंत्रण रख सकूं। लेकिन निस्संदेह नरक लोक के लिए मुझे कोई और गाइड दिया जाता उर्वशी जी नहीं और मैं उर्वशी जी के साक्षात दर्शन कर अब उनसे वंचित नहीं होना चाहता था। मैंने चित्रगुप्त से स्वर्ग भ्रमण का वीजा स्वीकार कर लिया।

'क्यों नहीं अवश्य' उर्वशी जी भी मुस्कुराईं फिर चित्रगुप्त मुझसे मुखातिब हुए - 'जैसा कि मैंने इनका शुभ नाम लिया - 'ये उर्वशी जी हैं। स्वर्गलोक में आप इंद्र-दरबार की प्रमुख नृत्यांगना और....'

'प्रभु इनका तो नाम ही इनका परिचय है। इनके बारे में कुछ बताने की आवश्यकता नहीं है।' मैंने चित्रगुप्त से कहा।

मेरी बात सुन कर चित्रगुप्त और उर्वशी जी दोनों मुस्कुरा पड़े। मैंने अपने दोनों हाथ जोड़कर व सिर नवाकर स्वर्ग निवासिनी उर्वशी जी को प्रणाम किया। प्रत्युत्तर में उन्होंने भी अपने दोनों हाथ जोड़ दिए।

थोड़ी ही देर में अपने उड़न कार का पैसेंजर पट खोलते हुए उन्होंने मुझसे कहा - 'आइये बैठिए।' मैं सकुचाता हुआ विनम्रतापूर्वक उनकी कार में सामने की सीट पर बैठ गया। वे स्वयं ड्राइविंग सीट पर मेरे बगल में बैठ गईं। कुछ ही क्षणों में वे अपनी कार में मुझे ले उड़ीं।


स्वर्ग में सभी के पास उड़न-कारें हैं। उर्वशी जी गुलाबी रंग की मैचिंग साडी-ब्लाउज और हलके मेकअप में थीं। उनकी देह से चंदन और इत्र की मिलीजुली भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी। अब तक पृथ्वी पर जितनी भी मिस वर्ल्ड (विश्व सुंदरी) और मिस यूनिवर्स (ब्रह्मांड सुंदरी) चुनी गई हैं, वे सब उर्वशी जी की सुंदरता के सामने बिलकुल ही फीकी हैं।

वास्तव में असली ब्रह्मांड-सुंदरी तो उर्वशी जी ही हैं। उर्वशी जी मुझे स्वर्ग के सभी दर्शनीय-स्थलों को घुमातीं-फिरातीं-दिखातीं रहीं। वह व्यावसायिक कार्य-दिवस (वर्किंग डे) था, अतः सभी देवी-देवता गण अपने-अपने कार्यालय में व्यस्त थे। किंतु कृपालु उर्वशी जी चाहती थीं कि मैं कुछ प्रमुख देवी-देवताओं के दर्शन भी कर सकूं इसलिए उन्होंने 'लंच-ब्रेक' में उस दिव्य भवन के सामने अपनी कार उतर दी जहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश (शंकर) लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा मां आदि के कार्यालय हैं।

शंकर जी रहते 'ग्रेटर कैलाश' में ही हैं कितु उनका दफ्तर स्वर्गलोक में ही है। प्रतिदिन अपने उड़न बैल या कभी-कभी अपनी उड़न कार से आते-जाते हैं। तो लंच-टाइम में यह सभी देवी-देवता गण अपने-अपने दफ्तर से बाहर निकले और मैं उन सबकी एक-एक झलक पा गया।

उर्वशी जी को स्वर्ग-भ्रमण के लिए अपने गाइड के रूप में पाकर मैं धन्य और कृत-कृत्य हो गया था। स्वर्ग भ्रमण के दौरान उन्होंने मुझे सृष्टि का जो रहस्य बताया उसका सारांश इस प्रकार है - स्वर्ग में भी पृथ्वी के अधिकांश देशों की तरह प्रजातंत्र यानी कि डेमोक्रेसी है। विभिन्न देवी-देवताओं के नाम वास्तव में पदों के नाम हैं। जैसे पृथ्वी पर पदों के नाम हैं - राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, कमिश्नर, कलेक्टर आदि।

जिस तरह से अमेरिका में राष्ट्रपति और भारत में प्रधानमंत्री होते हैं उसी तरह से 'सृष्टि-सरकार' के सर्वोच्च शिखर पर 'ईश्वर' हैं जिन्हें विभिन्न धर्मों के लोग व विभिन्न भाषा-भाषी लोग भगवान्, अल्लाह, गॉड, जीसस, ईसा मसीह आदि विभिन्न नामों से जानते हैं। हम सभी स्वर्ग निवासी लोग यह देख कर बड़े दुखी होते हैं कि पृथ्वी वासी मनुष्य आपसी रंजिश में कोई मंदिर तोड़ रहे हैं, तो कोई मस्जिद, तो कोई चर्च। आखिर मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा - यह हैं तो सभी ईश्वर के ही घर।

ईश्वर के सृष्टि-सरकार संचालन के लिए जो सहायक गण हैं उन्हें हिन्दू लोग ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्र, कुबेर, यमराज, चित्रगुप्त, लक्ष्मी, पार्वती, सरस्वती, गायत्री, आदि विभिन्न देवी-देवताओं के नाम से जानते हैं। यह देवी-देवता कोई और नहीं कभी पृथ्वी पर ही जन्मे महान पुण्यात्मा स्त्री-पुरुष यानी मनुष्य-प्राणी ही हैं। देह त्याग के बाद स्वर्ग लोक में वे लोग निश्चित काल के लिए अपने-अपने पदों पर विराजमान हैं। फिर अपना कार्यकाल समाप्त होने पर पुनः नया जन्म लेकर पृथ्वी पर आ जाते हैं।

उर्वशी जी से यह सब सुनकर मैंने उनसे पूछा- 'क्या ईश्वर का भी पुनर्जन्म होता है?'

'राम और कृष्ण ईश्वर के पुनर्जन्म ही तो हैं।' उर्वशी जी ने मुझे बताया।

मैंने आगे पूछा- 'जैसा कि आपने बताया सभी देवी-देवताओं के नाम वास्तव में केवल पदों के नाम हैं, तो कृपया यह बताएं कि वर्तमान समय में 'विष्णु भगवान' के पद पर कौन काम कर रहे हैं?'

'क्षमा करेंगे गिरिधर जी। विष्णु-भगवान काफी बड़ा और जिम्मेदारी का पद है, इसीलिए इस महत्वपूर्ण पद पर पृथ्वी पर वे कौन थे, यह नाम बताना स्वर्ग के कानून के विरुद्ध है। मैं आपको केवल इतना बता सकती हूं कि वह भारत के सबसे महान त्यागी स्वतंत्रता सेनानी थे। जो अपेक्षाकृत छोटे पदों पर हैं - जैसे इंद्र वगैरह - उनमें से किसी एक के पृथ्वी वाला नाम मैं आपको बता सकती हूं।'

'आपकी बड़ी कृपा होगी देवी..! तो कृपया बताएं कि स्वर्ग में जो वर्तमान इंद्र हैं वे पृथ्वी पर कौन थे?'

'आपके ही देश अमेरिका के स्वर्गीय डॉ. मार्टिल लूथर किंग जूनियर।'

सचमुच नोबल विजेता डॉ. किंग ने काले अमेरिकनों के लिए कई महान कार्य किए हैं। वे न होते तो कालों को शायद आज भी अमेरिका में गोरों के बराबर अधिकार न मिले होते। आज एक काला व्यक्ति अमेरिका का राष्ट्रपति है, वहां का राजा है। तो डॉ. किंग को स्वर्ग का राजा तो होना ही चाहिए। मार्टिन लूथर किंग पृथ्वी पर काले व कुरूप थे किन्तु स्वर्गलोक में उन्हें बड़ा ही गोरा-नारा, सजीला व सुंदर रूप मिला हुआ है। घंटा भर पहले मैंने इंद्र देव के दर्शन किए थे। जब वे लंच टाइम में अपने दफ्तर से बाहर निकल कर अपनी उड़न कार की ओर बढ़ रहे थे।

'देवी, फिर उस इंद्र का क्या हुआ जिसने गौतम-पत्नी अहिल्या के साथ छल से.......' न जाने यह प्रश्न मेरे मुंह से कैसे निकल गया।

'उस इंद्र का तो अपने पद का दुरूपयोग करने और व्यभिचारी होने का दोषी पाए जाने के कारण पृथ्वी पर 'घरघुसरा-सांप' के रूप में पुनर्जन्म हो चुका है। आज भी लोग उसके अपने घर में घुस आने पर उसकी लाठी से पिटाई करने लगते हैं और उसका सिर कुचल कर उसे दूर फेंक आते हैं। वह इंद्र था भी इसी लायक।'

थोड़ी देर बाद मैंने उर्वशी जी से पूछा - 'तो क्या आप भी किसी उर्वशी नामक पद पर काम कर रही हैं?'

'जी हां'

'यदि आप अन्यथा न लें तो एक बात पूछूं।'

'अवश्य पूछिए'

'क्या आप वही उर्वशी हैं जो महाभारत कालीन अर्जुन पर मोहित हो उठी थीं?'

मेरा यह प्रश्न सुनते ही हवा में उड़न कार ड्राइव करती हुई उर्वशी जी खिलखिला कर हंस पड़ीं।

फिर कहा - 'नहीं गिरिधर जी, मैं वो उर्वशी नहीं हूं। उस उर्वशी का भी अपने पद का दुरूपयोग करने और अर्जुन को नपुंसक हो जाने का श्राप देने के अपराध में इंद्र-दरबार के 'सामूहिक-नचकहरिन' या ग्रुप-डांसर के एक सदस्य रूप में डिमोशन हो गया था। अब तो खैर उसका भी पृथ्वी पर एक हिजड़े के रूप में पुनर्जन्म हो चुका है।' उर्वशी जी ने बताया।

'अजीब बात है देवी! इंद्र घरघुसरा-सांप बन गए, उर्वशी हिजड़ा बन गईं।'

'यह तो विधि का विधान या सृष्टि-सरकार का नियम ही है। हम इस जन्म में जैसा करते हैं उसी के अनुरूप स्वर्ग या नरक के भागीदार बनते हैं और अगला या पुनर्जन्म पाते हैं। इस नियम के अपवाद न तो पृथ्वीवासी हैं और न ही परलोकवासी।'

'देवी, अपने पापों के कारण जब देवताओं के राजा इंद्र और स्वर्ग की नृत्य-सम्राज्ञी उर्वशी की यह दुर्गति हो गई तब पृथ्वी पर भ्रष्ट नेताओं, मंत्रियों, पार्टी-अध्यक्षों और अफसरों द्वारा लाखों-करोड़ों का घूस खाने वालों की क्या दुर्गति होगी?'

'नरक में इन सबको सड़ना पड़ेगा। फिर अपनी करनी के अनुसार ही किसी दरिद्र प्राणी या पशु-पक्षी के रूप में उनका पुनर्जन्म भी होगा।'

देवी, कुछ नर्क और नरकवासियों के बारे में भी बताएंगी।'

'संक्षेप में बस इतना जान लीजिए कि अभी तक सिर्फ एक ही व्यक्ति को 'स्थायी रूप से नरकवास मिला है और वह है जर्मनी का पूर्व लेकिन महान क्रूर तानाशाह हिटलर। वह यहूदियों को जिस तरह से आग की भट्ठियों में झुलसा-तड़पा कर मारता था, वैसे ही वह स्वयं भी वहां तड़प रहा है। वैसे दिल्ली के एक दुष्ट डॉक्टर की भी कुछ दिनों तक वही दुर्गति होने वाली है। कोई तीन साल में यमदूत उसे लेकर यहां आने वाले हैं।'

'उस डाक्टर ने क्या किया है देवी?'

'उसने प्रसव-पीड़ा से तड़पती एक गर्भवती महिला को अपने निजी अस्पताल से बाहर निकलवा दिया क्योंकि उसके पति के पास उस डॉक्टर की फीस देने लायक पैसे नहीं थे। अंततः उस महिला बेचारी को सड़क पर ही अपने बच्चे को जन्म देना पड़ा। ऐसी निर्दयता तो शायद डाकू भी नहीं करेंगे। वह तो डॉक्टर था। वह एक पेशेंट से कुछ कम फीस ले लेता या उस महिला की फ्री में ही डिलीवरी करा देता तो वह 'राक्षस डॉक्टर' गरीब नहीं हो जाता। सच्चाई तो यह है कि यदि वह डॉक्टर उस महिला की फ्री डिलीवरी करा देता तो स्वयं ईश्वर उस डॉक्टर की फीस किसी न किसी रूप में चुका देते।'

'देवी, क्या पापों का कोई प्रायश्चित नहीं है?'

'हर बड़े से बड़े पाप और अपराध का प्रायश्चित है।'

'क्या?'

'अपने द्वारा किए गए पाप या अपराध के लिए सच्चे ह्रदय से ईश्वर से क्षमा मांग लो और फिर वही पाप या अपराध कभी दोबारा न करो। ईश्वर बड़े ही दयालु हैं। सच्चे ह्रदय से क्षमा मांग लेने पर वे सबको क्षमा कर देते हैं। उनकी माफी की शर्त केवल यही होती है कि अब वे पाप या अपराध कभी दोबारा न करना। आप तो स्वयं हरे कृष्ण सम्प्रदाय के हैं। आपको तो मालूम ही होगा कि भगवान कृष्ण ने शिशुपाल को उसके उन सौ पापों और अपराधों के लिए लगातार क्षमा कर दिया था जिनमें से हर एक के लिए वह मृत्युदंड का अधिकारी था। शायद 101 पाप के बाद भी शिशुपाल कृष्ण से क्षमा मांग लेता तो वे उसे क्षमा कर देते और उसे मृत्युदंड न देते।' यह हमेशा याद रखें कि पश्चाताप ही प्रायश्चित के द्वार खोलता है।

'देवी, क्या दिल्ली के उस डॉक्टर के पाप का प्रायश्चित हो सकता है?'

'हो सकता है। यदि वह डॉक्टर सच्चे ह्रदय से अपने किए की ईश्वर से क्षमा मांग ले और कभी वही गलती दोबारा न करें।'

'देवी, ईश्वर-प्राप्ति और मोक्ष का मार्ग क्या है?'

'प्रार्थना...। स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग इन सबको ईश्वर की प्रार्थना पर अद्भुत विश्वास था और भगवान की प्रार्थना प्रभु का स्मरण आप चलते-फिरते, सफर करते, हल्के काम करते, किसी भी स्थिति में कर सकते हैं। सच्चे ह्रदय से की गई मनुष्य की प्रार्थना प्रभु अवश्य ही सुनते हैं। कोई आवश्यक नहीं कि सुबह-शाम ढोल-नगाड़े-घंटी-घंटा बजा कर आप भगवान के फोटो-मूर्ति की आरती करें।'

फिर उर्वशी जी को जैसे कुछ स्मरण आ गया हो, उन्होंने कहा- अरे गिरिधर जी, बातों ही बातों में मैं तो आपसे लंच के लिए पूछना ही भूल गई। यहां स्वर्गपुरी में भी सब लंच के लिए जा चुके हैं। आपको भी भूख-प्यास लग आई होगी। चलिए मेरे निवास पर चलते हैं। भोजन कर लें फिर मैं आपको चित्रगुप्त जी के दफ्तर में छोड़ आऊंगी। थोड़ी ही देर में हम उर्वशी जी के आलीशान बंगले के कैम्पस में लैंडिंग कर गए। उन्होंने अपने डायनिंग टेबल पर अपने साथ ही बिठा कर मुझे बड़े ही प्यार से भोजन कराया। स्वर्ग के स्वादिष्ट भोजन के विषय में फिर कभी विस्तार से, अलग से चर्चा करूंगा।

चित्रगुप्त जी ने मुझे स्वर्ग-भ्रमण का वीजा केवल छः घंटों के लिए दिया था। नियत समय पर मुझे उर्वशी जी चित्रगुप्त- कार्यालय में लौटा लाई। उन्होंने मुझसे विदा ली। मैंने अभिभूत हो उर्वशी जी के चरण छू लिए। यमदूत मुझे पृथ्वी पर लौटा लाया। एटलांटा, ज्यार्जा, अमेरिका के जिस अस्पताल में मेरा तथाकथित शव पड़ा हुआ था, उसमें पुनः मेरे प्राणों का संचार करके वह वापस लौट गया। मैं वहां पुनः जीवित होकर उठ बैठा।

अगले दिन सारे अमेरिकी समाचार-पत्रों में प्रायः इस शीर्षक के साथ समाचार छपे थे- 'वर्जिनिया-टेम्पल के मृत साधू गिरिधर पुनर्जीवित।'