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H1- B : भारतीय इंजीनियरों के लिए कनाडा और अफ्रीका बनेंगे अमेरिका का विकल्प

H1- B : भारतीय इंजीनियरों के लिए कनाडा और अफ्रीका बनेंगे अमेरिका का विकल्प - H-1 B Visa USA
नई दिल्ली। एच1 बी वीजा के नियमों को सख्त बनाने के बाद जहां भारतीय इंजीनियरों को अमेरिका में काम मिलना मुश्किल हो गया तो देश के इंजीनियरों ने इस समस्या को हल करने के लिए कनाडा और अफ्रीका के रूप में तलाश लिया है। साथ ही, कम्प्यूटर साइंस व आईटी सेक्टर के इंजीनियर देश में भी अपना भविष्य उज्ज्वल देख रहे हैं।
 
एच1 बी वीजा से भारतियों का अमेरिका में नौकरी पाना अब मुश्किल हो गया है। इन्फोसिस ने 10 हजार भर्तियां निकाली लेकिन ये सारे काम  केवल अमेरिकियों के लिए था। उल्लेखनीय है कि इस तरह के कामों की जॉब पर पहले 50 प्रतिशत से अधिक कब्जा भारतीयों का रहता था। इससे कंप्यूटर साइंस व आईटी सेक्टर में खलबली जरूर  मची है मगर पढ़ाई कर रहे छात्र बहुत अधिक परेशान नहीं है। उनका  मानना है कि अमेरिका में जॉब करना देश के इंजीनियरों की चाहत थी  लेकिन वहां की कम्पनियों के लिए ऐसा करना भी मजबूरी भी है।
 
विदित हो कि इससे विदेशी कंपनियों को भी भारी नुकसान होगा और हमें इस याद का ध्यान रखना होगा कि अपनी कम्पनी का विस्तार भारत में करना होगा। भारतीय इंजीनियरों ने अपना ध्यान ऑस्ट्रेलिया, यूके, अरब-यूरोप के देशों में अपने भविष्य को खोजना शुरू कर दिया है। कंप्यूटर साइंस और आईटी सेक्टर के एक्सपर्ट ने बताया कि अमेरिका में देश के इंजीनियर अधिक जाते हैं। 
 
पर अब ऑस्ट्रेलिया, यूके, अरब देशों व यूरोपीय देशों में भी इस सेक्टर में अच्छी जॉब मिल रही है। साथ ही देश में भी बड़ी-बड़ी कम्पनियां अपना विस्तार कर रही हैं। इससे इस फील्ड के इंजीनियरों के लिए बहुत अधिक परेशानी नहीं होगी। अमेरिका के रोक लगाने से एक या दो साल तक इस सेक्टर में आने वाले नए इंजीनियरों को जरूर कुछ परेशानी होगी।
 
कंप्टूटर साइंस की छात्रा शिवानी वर्मा (छद्म नाम) कहती हैं कि अमेरिका में जॉब न मिलने का मतलब यह नहीं कि हमारा टैलेंट खत्म हो गया। देश में चल रही नई योजनाओं के तहत हम अपने  टैलेंट से खुद का बिजनेस कर सकते हैं। साथ ही देश में भी कई  विदेशी कम्पनियां कार्य कर रही हैं, जिन्हें हमारी जरूरत है। अमेरिका को इंडिया के टैलेंट की जरूरत पड़ेगी और उन्हें बदलाव करना होगा।
 
आईआईटी कानपुर के कम्प्यूटर साइंस विभाग के प्रमुख डॉ. संदीप शुक्ला कहते हैं कि इंडिया में भी सभी कुछ डिजिटलाइज्ड हो रहा है। यहां भी इंडस्ट्रियां तेजी से ग्रोथ करेंगी इसलिए युवाओं को बहुत अधिक  दिक्कत नहीं होगी। साथ ही अन्य कुछ देश भी आईटी सेक्टर में तेजी से वर्क कर रहे हैं, इसका भी लाभ मिलेगा। यह बात जरूर है कि अमेरिका यहां के टैलेंट से अच्छा लाभ कमाता था और इंजीनियरों को भी अच्छा फायदा देता था। पैकेज के मामले में जरूर थोड़ी कमी आएगी मगर भविष्य उज्ज्वल है।
 
एचबीटीयू के सीएस डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ. नरेंद्र कोहली कहते हैं कि अमेरिका के रोक लगाने से कुछ परेशानी जरूर होगी मगर अब अफ्रीका, कनाडा, यूएस और यूरोपियन देशों में भी आईटी सेक्टर तेजी से विकसित हो रहा है। साथ ही इंडिया में भी बहुत डिमांड है इसलिए बहुत अधिक परेशानी नहीं होगी। हां, ये जरूर है कि छात्रों के पैकेज पर  कुछ फर्क पड़ेगा। इंडिया में टैलेंट बहुत अधिक है और इस बात को  सभी कम्पनियां मानती हैं और अब अमेरिका सिर्फ उन्हीं को एच1  वीजा देगा, जो उनकी जरूरत होंगे। 
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