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Last Updated : बुधवार, 8 अक्टूबर 2014 (12:39 IST)

प्रवासी साहित्य : पिता का प्यार

प्रवासी साहित्य : पिता का प्यार - प्रवासी साहित्य : पिता का प्यार
- नीतू कुमार 
 

 
बहुत याद आता है
वो स्नेह भरा स्पर्श
वो माथे का चूमना
वो गले लगने पर आपकी
दिल की धड़कन का महसूस होना
बड़ा तड़पाते है जब याद आते हैं
 
वो मेरी उंगली थाम मुझे ले जाना
वो गोदी में उठाना, वो कंधों पर बिठाना
वो हवा में उछालकर मुझे यूं हंसाना
बड़ा तड़पाते हैं जब याद आते हैं
 
वो रोज सिरहाने चमेली के फूलों का पाना
वो भीनी-सी खुशबू व मीठे कदमों की
धीमी आहट सुन मेरा जग जाना
वो प्यार से बालों में हाथ फेरना और जगाना
बड़ा तड़पते हैं जब याद आते हैं
 
वो हर शाम आपका हमें पार्क ले जाना
हमारे पीछे दौड़ना और हमें दौड़ाना
वो नरम घास पर लेटना और जोर से खिलखिलाना
बड़ा तड़पाते हैं जब याद आते हैं
 
वो मेरा बोर्ड के पेपर को लेकर घबराना
वो आपका सेंटर तक साथ जाना
वो तसल्ली देना और ये समझाना
है मुश्किल नहीं कुछ बस ध्यान से लिखकर आना
वो आपको ढूंढना और गले लग जाना
बड़ा तड़पाते हैं जब याद आते हैं
 
जब उठी थी तेरी डोली मेरी आपका आंसू बहाना
रोते हुए भी मुस्कुराकर मुझे ये समझाना
मैं रहूं दूर या रहूं पास तू रहना नहीं उदास
मैं हूं मेरी गुड़िया तेरे लिए जब तक है मेरे श्वांस
 
हूं दूर आपसे पर करती हूं हर पल याद
पिता का एहसास, हर पल मेरे पास। 
साभार - गर्भनाल