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प्रवासी कविता : शरद
शरद का मौसम आया, रंगों का मेला छाया।
रंगबिरंगे पत्ते, सुन्दर कितने लगते।
कहीं सोना बरस रहा है, कहीं शोले दहक रहे हैं।
कहीं डाली डोल रही है, कहीं पत्ते बिखर रहे हैं। वृक्षों ने खेली होली, चहुं ओर लगी फुलवारी।
रंगीन चुनरिया चोली, पहनी कोई मतवाली।
सूरज की छनती किरणे, पत्ते निखर रहे हैं।
नदिया में बहते पत्ते, दिन यूं ही सरक रहे हैं।
रंगों को भर लो आंखों में, ये रंग उजड़ने वाला है।
शरद नया रंग लाया, पर मौसम पतझड़ वाला है।