शनिवार, 20 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. एनआरआई
  3. एनआरआई साहित्य
  4. pravasi sahitya
Written By

प्रवासी हिन्दी कविता : मुड़ के पीछे जो देखा...

प्रवासी हिन्दी कविता : मुड़ के पीछे जो देखा... - pravasi sahitya
- हरनारायण शुक्ला 
 


 
मुड़ के पीछे जो देखा कि क्या हो गया,
कम्बख्त वक्त गुजरता चला ही गया। 
 
मुड़ के पीछे जो देखा कि वो दिन हैं कहां,
वो दिन ही नहीं अब, न वो दुनिया यहां। 
 
मुड़ के पीछे जो देखा कि मेरे अपने कहां,
सब बिखरे हुए हैं, कोई यहां और कोई वहां।
 
मुड़ के पीछे जो देखा कि कितना चला,
वहीं का वहीं हूं, कुछ पता न चला। 
 
मुड़ के पीछे जो देखा कि सफर कैसा था,
उतार-औ-चढ़ाव का सिलसिला ही तो था।