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Written By भाषा

अल्फोंजा बनीं भारत की पहली महिला संत

अल्फोंजा बनीं भारत की पहली महिला संत -
केरल की कैथोलिक नन सिस्टर अल्फोंजा को पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने वेटिकन सिटी में रविवार को एक समारोह में संत का दर्जा प्रदान किया और इसके साथ ही सिस्टर अल्फोंजा इस दर्जे को पाने वाली भारत की पहली महिला बन गईं।

वेटिकन के सेंट पीटर्स स्क्वेयर में इस आशय की घोषणा पर समूचे केरल के गिरजाघरों में विशेष प्रार्थनाएँ आयोजित की गईं। सिस्टर अल्फोंजा के अलावा दुनियाभर के तीन अन्य लोगों को संत का दर्जा दिया गया है।

कैथोलिक चर्च ने इससे पहले भारत में जन्मे फ्रांसीसी गोंजालो गार्सिया को यह दर्जा दिया था। चर्च सूत्रों का कहना है कि रोमन कैथोलिकों के 10 हजार से अधिक संत हैं और पहली बार ऐसा हुआ है जब भारत में किसी को पूर्ण संत का दर्जा प्रदान किया गया है।

वेटिकन सिटी के समारोह का सीधा प्रसारण दिखाने के लिए कुदामल्लोर और भारंगनम में बड़े-बड़े पर्दे लगाए गए। वेटिकन गए भारतीय दल का नेतृत्व केंद्रीय मंत्री ऑस्कर फर्नांडीस ने किया।

गृहनगर में उत्सव का माहौल : कोट्टायम से प्राप्त खबर के अनुसार वेटिकन में सिस्टर अल्फोंजा को संत का दर्जा देने के साथ ही उनके गृहनगर में उत्सव का माहौल बन गया। सिस्टर के पैतृक स्थान भारंगनम में पटाखे फोड़े गए और रोशनी की गई। अल्फोंजा के पुरखों का घर कुदामलूर में है और उनसे जुड़ी चीजों को यहाँ एक संग्रहालय में सहेजकर रखा गया है। उनकी कब्र भारंगनम में है।

इस खुशी के मौके पर में मिठाइयाँ बाँटी गईं और संग्रहालय के बाहर लोगों की लंबी-लंबी कतारें देखी गईं। इधर राजधानी दिल्ली में भी गिरजाघरों में आज विशेष प्रार्थनाएँ की गईं।

कैथोलिक बिशप कांफ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) ने कहा कि भारत के लोगों के लिए सिस्टर एक प्रेरणा हैं और उन्हें संत का दर्जा मिलने से सभी गिरिजाघरों का गौरव बढ़ा है।

कार्डिनल मार वार्की अस्वस्थ : सिस्टर अल्फोंजा को संत का दर्जा देने के लिए आयोजित समारोह में हिस्सा लेने वेटिकन सिटी गए केरल के कार्डिनल मार वार्की विथायथिल को हृदय संबंधी तकलीफ के बाद वेटिकन के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया।

लंबी प्रक्रिया है संत घोषित करने की : रोमन कैथोलिक नन सिस्टर अल्फोंसा को संत की उपाधि मिलना इस समुदाय के लिए कुछ खुशी का मौका लाया है। मगर संत घोषित करने की यह प्रक्रिया इतनी आसान नहीं है।

भारत में ईसाइयों के बीच सबसे लोकप्रिय नाम मदर टेरेसा को इसी लंबी प्रक्रिया की वजह से आजतक संत घोषित नहीं किया जा सका है। यह प्रक्रिया न सिर्फ जटिल है बल्कि इसमें बहुत वक्त, पैसा, गवाहियाँ और चमत्कारों का समावेश होता है। इतना ही नहीं चर्च इस पूरी प्रक्रिया के दौरान तयशुदा नियमों का कड़ाई से पालन करता है।

सबसे पहले तो यह तय करने के लिए कौन संत की पदवी के लिए योग्य है, वेटिकन अपने धर्मसंघ से यह बताने के लिए कहता है किसी को संत घोषित करने के पीछे कारण क्या हैं। आमतौर पर जिसे संत घोषित करवाने की कोशिश की जा रही है उसके अनुयायी स्थानीय बिशप के पास जाकर साबित करने की कोशिश करते हैं कि संबंधित व्यक्ति का जीवन आदर्श और दैवीय था।

जब यह स्थापित हो जाता है कि संबंधित व्यक्ति सच में संत की उपाधि का हकदार है तो चर्च द्वारा नियुक्त पोस्च्युलेटर उन लोगों से बातचीत करता है, जो उस व्यक्ति को जानते थे। संबंधित व्यक्ति के बारे में व्यक्तिगत गवाहियों, पत्रों, लेखों को इकठ्ठा किया जाता है। इसके बाद इन सभी सूचनाओं के आधार पर एक पोजिशन पेपर तैयार किया जाता है और सबूतों से यदि यह साबित होता कि उक्त व्यक्ति के जीवन में नायक वाले गुण थे तब पोप द्वारा उसे "पूज्य" की उपाधि दी जाती है।

अगला चरण चमत्कार का होता है। इसमें यह देखा जाता है मुसीबत का मारा कोई व्यक्ति यदि संबंधित व्यक्ति की प्रार्थना करता है तो उसकी मुसीबत का अंत होता है या नहीं। यदि यह साबित हो जाए कि इस प्रार्थना का असर हुआ है तो उसको साबित करने के लिए गवाहियों और सबूतों का दौर चलता है। प्रक्रिया पूरी करने के बाद पोप संबंधित व्यक्ति को धन्य (ब्लेस्ड) घोषित करते हैं। इसके बाद का चरण आखिरी होता है जिसमें पोप वेटिकन में आयोजित एक भव्य समारोह में संत की उपाधि प्रदान करते हैं मगर इसके लिए एक दूसरा चमत्कार सामने आना जरूरी है। इस चमत्कार को भी सत्यापित किया जाता है।

मदर टेरेसा की मृत्यु से पहले तक नियम यह था कि किसी आदर्श व्यक्ति की मृत्य के पांच वर्ष बाद उसे संत घोषित करने का पहला चरण शुरू होता था मगर मदर टेरेसा के जीवन को देखते हुए पोप ने यह नियम समाप्त कर दिया और मदर टेरेसा को संत घोषित करने की प्रक्रिया सिर्फ एक वर्ष बाद ही शुरू हो गई थी मगर यह पूरी प्रक्रिया इतनी लंबी और जटिल है कि अभी तक मदर टेरेसा को आधिकारिक रूप से संत घोषित नहीं किया जा सका है।