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Written By वार्ता
Last Modified: छिन्दवाड़ा (वार्ता) , शनिवार, 30 अगस्त 2008 (15:45 IST)

खून बहाने का पर्व है गोटमार मेला

खून बहाने का पर्व है गोटमार मेला -
मध्यप्रदेश के छिन्दवाड़ा जिले के पांढुर्णा नगर में सैकड़ों वर्ष पूर्व से चली आ रही परंपरा के अनुरूप पोला त्यौहार के दूसरे दिन मनाया जाने वाला विश्व विख्यात गोटमार मेला इस बार रविवार को है।

इस अद्भुत गोटमार मेले के बारे में कोई इतिहास संबंधी विवरण तो उपलब्ध नहीं है। मराठी भाषा बोलने वाले नागरिकों की इस क्षेत्र में बहुलता है और मराठी भाषा में गोटमार का अर्थ पत्थर मारना होता है, वाकई इस मेले में पत्थरबाजी की जाती है। इसमें हजारों लोग सूर्योदय से सूर्यास्त तक विपक्षी योद्धाओं पर पत्थर रूपी शस्त्रों की बौछार कर बड़ी शान से एक-दूसरे का लहू बहाते हैं।

इस एक दिवसीय अघोषित युद्ध में प्रति वर्ष अनगिनत लोग घायल हो जाते हैं, तो कई अपने प्राणों से भी हाथ धो बैठते हैं। इस मेले को घातक बताकर कई लोगों ने इसे बंद करने की कोशिशें भी की, पर जगत जननी माँ चंडिका के भक्तों द्वारा इस मेले को बंद कराने में कई बाधाओं के आने पर भी अनवरत परंपरागत ढंग से इस मेले को संपन्न कराने की परिपाटी चली आ रही है। मेले में भाग लेने के लिए समीपवर्ती महाराष्ट्र प्रांत सहित प्रदेश के अनेक जिलों से लोग यहाँ हर वर्ष आते हैं।

प्रति वर्षानुसार इस वर्ष भी विश्व प्रसिद्ध अनोखा गोटमार मेला कृषकों के पोला त्यौहार के दूसरे दिन बड़े उत्साह के साथ मनाया जाएगा। मेले के आयोजन के संबंध में कई किवदंतियाँ प्रचलित हैं।

एक मान्यता के अनुसार अति प्राचीन काल में पांढुर्णा नगर का एक युवक पड़ोसी ग्राम सावरगाँव की एक युवती पर मोहित हो गया लेकिन इन दोनों के प्रेम प्रसंग को विवाह बंधन में बदलने के लिए कन्या पक्ष के लोग राजी नहीं हुए।

अतः आतुर युवक ने अपनी प्रेमिका को अपना जीवन साथी बनाने के लिए लाभप्रद अमावस्या के दिन प्रातः काल में सावरगाँव से भगाकर पांढुर्णा लाने का प्रयत्न किया, लेकिन रास्ते में स्थित जाम नदी को पार करते समय जब बात सावरगाँव वालों को मालूम हुई तो उन्होंने इसे अपनी प्रतिष्ठा पर आघात समझ कर लड़के पर पत्थरों की बौछार कर दी।

जैसे ही वर पक्ष वालों को यह खबर हुई तो उन्होंने भी लड़के के बचाव के लिए पत्थरों की बौछार शुरू कर दी। पांढुर्णा पक्ष एवं सावरगाँव पक्ष के बीच इस पत्थरों की बौछारों से इन दोनों प्रमियों की मृत्यु जाम नदी के बीच ही हो गई।

सावरगाँव एवं पांढुर्णा के लोग जगत जननी माँ चंडिका के परम भक्त थे इसी कारण दोनों प्रेमियों की मृत्यु के पश्चात दोनों पक्षों के लोगों ने अपनी शर्मिंदगी मानकर इन दोनों प्रेमियों के शवों को उठाकर किले पर माँ चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। संभवतः इसी घटना की याद में माँ चंडिका की पूजा-अर्चना कर गोटमार मेले के मनाए जाने की परिपाटी चली आ रही है।

प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी पांढुर्णा नगर के प्रतिष्ठित कावले परिवार द्वारा जन सहयोग से पलाश का वृक्ष जंगल से लाकर घर पर पूजा-अर्चना करने के पश्चात कल प्रातः चार बजे दोनों पक्षों की सहमति से जाम नदी के बीच झंडे के रूप में गाड़ा जाएगा।

लगभग 80 हजार की आबादी वाले पांढुर्णा नगर और सावरगाँव के बीचोंबीच से जाम नदी प्रवाहित होती है। इसी स्थल से गुजरी चौक बाजार के पास श्री राधा कृष्ण मंदिर वाले हिस्से में यह गोटमार मेला लगता है। इस दिन पूरा नगर विशेषकर गोटमार स्थल तोरणों से सजाया जाता है। धार्मिक भावनाओं से जुड़ा यह पत्थरों का युद्ध दोपहर दो बजे से शाम पाँच बजे तक पूरे शबाब पर होता है। इस दौरान सैकड़ों की संख्या में लोग घायल होते हैं, घायल होने पर अनेक खिलाड़ी माँ चंडिका के मंदिर की भभूति चोट लगे घाव पर लगाकर दोबारा मैदान में उतर जाता है।

ऐसी मान्यता है कि माँ चंडिका के मंदिर की भभूत लगाने पर चोट तत्काल ठीक हो जाती है। शाम छह बजे तक पांढुर्णा पक्ष वाले योद्धा पलाश वृक्ष के झंडे को माँ के चरणों में अर्पित करते है और इसी के साथ गोटमार मेला समाप्त हो जाता है।