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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली , मंगलवार, 30 मार्च 2010 (23:49 IST)

दूसरा सबसे बड़ा विदेशी अधिग्रहण

दूसरा सबसे बड़ा विदेशी अधिग्रहण -
भारती एयरटेल द्वारा जईन के अफ्रीकी कारोबार का 10.7 अरब डॉलर में अधिग्रहण संबंधी सौदे के बाद भारतीय कंपनी वैश्विक स्तर पर शीर्ष दस दूरसंचार कंपनियों में शामिल हो जाएगी। यह किसी भारतीय कंपनी का दूसरा सबसे बड़ा विदेशी सौदा है। इसके अलावा यह भारत के दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित दूसरा सबसे बड़ा सौदा भी है।

इससे पहले 2007 में वोडाफोन हचिसन सौदा 10.8 अरब डालर में हुआ था। कुवैत की जईन के अफ्रीकी कारोबार के अधिग्रहण के बाद भारती की उपस्थिति तेजी से बढ़ते अफ्रीकी बाजार में हो जाएगी।

यह किसी भारतीय कंपनी द्वारा किया गया दूसरा सबसे बड़ा विदेशी अधिग्रहण है। 2007 में टाटा स्टील ने एंग्लो डच इस्पात कंपनी कोरस का 12 अरब डॉलर में अधिग्रहण किया था।

यदि रिलायंस इंडस्ट्रीज पेट्रोरसायन कंपनी ल्यानडेलबासेल के अधिग्रहण में असफल नहीं होती तो वह किसी भारतीय कंपनी का सबसे बड़ा विदेशी अधिग्रहण बन जाता। मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 14 अरब डॉलर में ल्यानडेल के अधिग्रहण की तैयारी की थी, पर यह सौदा नहीं हो पाया था।

भारतीय कंपनियों से जुड़े अन्य बड़े विलय और अधिग्रहण सौदों में हिंडाल्को-नोवालिस (छह अरब डॉलर), दाइची-रैनबैक्सी (4.50 अरब डॉलर), ओएनजीसी-इंपीरियल (2.80 अरब डॉलर), एनटीटी दोकोमा-टाटा टेलीसर्विसेज (2.70 अरब डॉलर) शामिल हैं। (भाषा)