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Written By वार्ता

हिंदी अखबार के पाठक नहीं पसंद कर रहे हैं अंग्रेजी शब्द

वार्ता

हिंदी अखबार के पाठक नहीं पसंद कर रहे हैं अंग्रेजी शब्द -
देश में सबसे ज्यादा पढे जाने वाले प्रमुख हिंदी अखबारों के पाठकों को धडल्ले से इस्तेमाल हो रहे अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल पसंद नहीं आ रहा है। जन मीडिया.पत्रिका की ओर से करवाए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। इंडियन रीडर सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर चार सबसे अधिक प्रसार वाले हिंदी समाचार पत्रों के पाठकों का मानना है कि अंग्रेजी के शब्द समाचार को बोझिल बनाते हैं और पढ़ने में रूकावट पैदा करते हैं।

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दैनिक भास्कर और हिंदुस्तान के 70 -70 प्रतिशत, अमर उजाला के 69 प्रतिशत और दैनिक जागरण के 65 प्रतिशत पाठकों का मानना है कि अंग्रेजी के शब्द समाचारों को बोझिल बनाते हैं।

इन अखबारों के गांव में पढ़े जाने वाले जिला स्तर के विशेष स्थानीय खबरों में इस्तेमाल कुछ अंग्रेजी शब्दों की बानगी इस प्रकार है -फंड सेफ्टी ऑफिसर, मीडिया, रेसिंग सीन, इनोवटर्स इन हेल्थ, डल्फिन टेल, रेड जोन, नार्थ जोन कोआर्डिनेटर, कांप्रिहेंसिव ड्रेस, अर्ली मॉर्निंग, अनप्लग, एडआन, कंटेंप्ट टू कोर्ट, बियोंड टाइम और आइडेंटिफिकेशन डाक्यूमेंट।

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सर्वेक्षण के अनुसार सभी अखबारों के अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पृष्ठों में अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल कम है इसलिए वे ज्यादा पठनीय है लेकिन गांवों में पढ़े जाने वाले इन अखबारों के जिला स्तर पर निकलने वाले स्थानीय पृष्ठों और सिनेमा एवं मनोरंजन जैसे फीचर खबरों में अंग्रेजी शब्दों का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। अधिकांश समाचार पत्रों के पाठक यह भी मानते हैं कि हिंदी अखबारों में अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल फैशन बन गया है।

अक्टूबर 2011 से फरवरी 2012के बीच सभी दैनिक अखबारों के 30-30 अंकों के 1216 समाचारों के अंतर्वस्तु विश्लेषण किया गया तथा अंग्रेजी शब्दों के बारे में 400 पाठकों की राय ली गई।