मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
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Written By वर्तिका नंदा

बलात्कार- जघन्य, दुखद और बेहद शर्मनाक

Delhi Rape Case | बलात्कार- जघन्य, दुखद और बेहद शर्मनाक
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मेरा सवाल सीधा है- क्या हमें महिला आयोग जैसे चिंता जताने वाले आयोगों की जरूरत है। क्या हम अपराध से जूझने के लिए तैयार हैं। क्या हम अपराध को लेकर संवेदनशील हैं। क्या हम एकजुट हो पाते हैं और क्या हम सोती हुई सत्ता को जगाने और झकझोर डालने के काबिल हैं।

कल एक अपराध हुआ- जघन्य, दुखद और बेहद शर्मनाक। देश की संसद में बहस हुई है। सुषमा स्वराज, मायावती और जया बच्चन जोरदार तरीके से बोलतीं दिखीं। फेसबुक पूरी तरह से दुख में सराबोर। वसंत विहार थाने के बाहर लोगों का आक्रोश है और टेलीनिजन चैनलों पर सरोकार।

पर क्या इसके कोई नतीजे निकलेंगे। हर बार ऐसा होता है। कुछ अपराध अनायास होते हैं, कुछ अपराध शातिर तरीके से परत दर परत। जो पीड़ित पुलिस और इन आयोगों के पास जाती हैं, उनका साथ कौन देता है। क्या पुलिस उस पर तुरंत कार्रवाई करती है। क्या महिला आयोग कहता है कि हम देगें साथ।

हमारा कथित पेज थ्री समाज तब चुप रहता है। वह व्यस्त रहता है। घटना हो जाए, वो भी बड़ी, तो देखिए तमाशा। इस सबके बीच एक अदद पीड़ित हमेशा के लिए एक ऐसा युद्ध हार जाता है जिसकी न तो वो शुरूआत करता है और न ही जिसके लिए वो जिम्मेदार होता है।

दूसरे अपराध वे जो परतों में नहीं, किसी एक पल पर होते हैं। जैसे इस घटना में हुआ। बस दिल्ली में घूमती रही। पुलिस का सीसीटीवी ठीक से काम नहीं कर रहा था, वो लड़की बस में चिल्लाई होगी, उसका दोस्त भी चिल्लाया होगा पर किसी को आवाज नहीं सुनाई दी।

ऐसे अपराध करने वाला अपराधी किसी अजीब मानसिक विकृति से भरे आत्मविश्वास से लबरेज होता है। वह कानून पर जमकर हंसता है और यह मान कर चलता है कि कुछ नहीं होगा। वह उन तस्वीरों पर विश्वास रखता है जो उसे दिखती हैं। संसद में पहुंचते अपराधी, आसानी से जिंदगी में जीत जाते अपराधी।

तो समाज चुप रहता है। घटना से पहले आवाजें कहां चली जाती हैं। किसी को सुनाई नहीं देतीं। घटना के दौरान भी आवाजें सुनाई नहीं देती। घटना के बाद एकाएक दिखती है सक्रियता।

लेकिन इस बार सब कुछ बदल गया है। एकजुट हुआ है समाज। छात्र, अध्यापक, महिला कार्यकर्ता, लेखक। एक जोरदार आवाज उठी है। पर यह भी साफ है कि इस सोती हुई व्यवस्था के बीच अगर मीडिया भी न होता तो घटना के बाद भी कुछ न होता। शुक्र है एक जीवंत मीडिया है हमारे पास।

अब समय है एकदम जोरदार तरीके से किसी एक्शन को लाने का। यह दबाव भी डालने का कि कम से कम कुछ जिम्मेदार लोग इस्तीफे जरूर दें। हमें बलात्कार हो या घरेलू हिंसा, हमारे समाज ने औरत को बार-बार हराया ही है।

अब हमें बेहतर पुलिस चाहिए, बेहतर महिला आयोग।

सीधी बात है- जब तक कुछ कुर्सियां हिलेंगी नहीं, कुछ होगा नहीं। एकदम नहीं।