शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. राष्ट्रीय
Written By WD

आर्कटिक में भारत को बड़ी सफलता

आर्कटिक में भारत को बड़ी सफलता -
आर्कटिक क्षेत्र में भारत के वैज्ञानिक प्रयासों में प्रमुख उपलब्धि 23 जुलाई, 2014 को उस समय हासिल हुई जब ईएसएसओ-राष्ट्रीय एंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (एनसीएओआर) और ईएसएसओ - राष्ट्रीय समुद्री प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) के वैज्ञानिकों के दल ने इंडआर्क को आर्कटिक में सफलतापूर्वक तैनात किया। इंडआर्क देश की पहली मल्टी-सेंसर मूरेड वेधशाला है जो आर्कटिक के कोंग्सफजॉर्डन में तैनात की गई है। यह जगह नार्वे और उत्तरी ध्रुव के लगभग बीच में है।

यह वेधशाला ईएसएसओ-एनआइओटी और ईएसएसओ-एनसीएओआर ने डिजाइन और विकसित की है। फिलहाल यह वेधशाला 192 मीटर गहराई पर उत्तरी ध्रुव से करीब 1100 किमी दूरी पर (78°57´ N 12°01´E) तैनात है। इसमें अत्याधुनिक समुद्र वैज्ञानिक सेंसर लगे हैं जो वॉटर कॉलम में पर्याप्त गहराई पर तैनात किए गए है। यह सेंसर समुद्री जल के तापमान, लवणता, धारा और अन्य महत्वपूर्ण मानदंडों के बारे में वास्तविक आंकड़े उपलब्ध कराते हैं।

कोंग्सफजॉर्डन को आर्कटिक समुद्री अध्ययनों के लिए संदर्भ स्थल के रूप में स्थापित किया गया है। इसे आर्कटिक जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए प्राकृतिक प्रयोगशाला मानी जाती है क्योंकि यह वार्षिक मौसमी चक्र के दौरान आर्कटिक/एटलांटिक से जलवायु के बारे में विविध प्रकार के संकेत प्राप्त करती है। ईएसएसओ-एनसीएओआर 2010 से कोंग्सफजॉर्डन की निरंतर निगरानी कर रहे हैं। यहां सभी ऋतुओं में फजॉर्ड की तापमान एवं लवणता प्रोफाइल, वॉटर कॉलम न्यूट्रिएंट्स और जलीय जीवों की विविधता की निगरानी की जाती है।

यह जानने की बहुत जरूरत है कि फजॉर्ड प्रणाली कैसे प्रभावित होती है और सभी ऋतुओं में गहरे पानी में परिवर्तन पर कैसा व्यवहार करती है। विशेष रूप से फजॉर्ड के अंदरूनी भाग में जल परिवहन के निरंतर अवलोकन की बहुत जरूरत है। ऐसे अध्ययनों में एक मुख्य बाधा कर्कश आर्कटिक शीत जल में लोकेशन तक पहुंचने में मुश्किल है। इंडआर्क वेधशाला इस कठिनाई को दूर करने का प्रयास है। इसके जरिए प्राप्त आंकड़ों का बहुत महत्व होगा जिससे भारतीय जलवायु अनुसंधानकर्ताओं और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को भी फायदा होगा।

देश की पहली पोलर मूरिंग की तैनाती वेधशालाओं के डिजाइन, विकास और उन्हें पानी के नीचे तैनात करने में इएसएसओ की क्षमताओं का प्रमाण है। नार्वे के पोलर संस्थान से मिली तकनीकी और लॉजिस्टिक सहायता जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने में भारत और नार्वे के बीच वैज्ञानिक एवं तकनीकी सहयोग का अच्छा उदाहरण है।