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Written By WD
Last Updated : रविवार, 27 जुलाई 2014 (00:31 IST)

अमरनाथ यात्रियों के साथ खुली लूट

-सुरेश एस डुग्गर

अमरनाथ यात्रियों के साथ खुली लूट -
इस बार भी अमरनाथ यात्रा लूट-खसोट की यात्रा बन गई है। इसमें सरकार का भी पूरा योगदान है। सबसे अधिक लूट पर्याप्त मात्रा में लंगरों की स्थापना की अनुमति न दिए जाने और बालटाल में हुई हिंसा के कारण लूट बढ़ गई है। स्थिति यह है कि जम्मू शहर से लेकर गुफा तक के यात्रा मार्ग पर श्रद्धालुओं को खाना और पीने का पानी खरीदना पड़ रहा है तो प्रायवेट टेंटों, घोड़े, पालकी और यहां तक की वाहनों द्वारा मचाई गई लूट का शिकार प्रत्येक अमरनाथ श्रद्धालु हो रहा है।
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अमरनाथ यात्रा में भाग लेने वाले हजारों श्रद्धालु इस बार भी कश्मीरी संस्कृति के आदर-भाव को महसूस कर रहे हैं लेकिन यह आदर-भाव उनकी जेब पर भारी साबित हो रहा है क्योंकि सरकारी असहयोग के चलते अमरनाथ यात्रा इस बार लूट-खसोट की यात्रा बन गई है जिसमें स्थानीय लोगों द्वारा की जा रही ‘लूट’ में सरकारी सहयोग भी बराबर का ही है।

यात्रा में कहीं भी आपको आराम फरमाने की इच्छा हो या फिर कश्मीरी कहवा या चाय पीने की ललक जागे तो आप स्थानीय लोगों द्वारा स्थापित दुकानों व टेटों की बस्तियों में यह ललक पूरी तो कर सकते हैं मगर उन दामों पर नहीं जो सरकार द्वारा निर्धारित किए गए हैं। स्थिति यह है कि उन्हें उचित दामों पर चीजें बेचने को प्रशासन या पुलिसकर्मी मजबूर भी नहीं करते। इतना अवश्य है कि अगर आपके साथ सेना का जवान या कोई अधिकारी है तो आपको तयशुदा दाम से कम में भी सुविधा मिल सकती है।

सबसे ज्यादा परेशानी लंगरों की कम संख्या या फिर उन्हें ऐसे स्थान पर लगाने की दी गई अनुमति से है जहां तक श्रद्धालुओं का पहुंचना अक्सर परेशानी भरा होता है। परिणामस्वरूप श्रद्धालुओं को रेस्तरां और होटलों में खाना खाते देखा जा सकता है। ऐसा सिर्फ शहर में ही नहीं बल्कि गुफा तक के यात्रा मार्ग पर दिख रहा है। बालटाल में लंगर वालों के साथ होने वाली झड़पों के बाद कई लंगरों के बंद होने का परिणाम यह है कि यात्रा में शामिल होने वालों को अब स्थानीय लोगों की ‘लूट’ पर ही निर्भर होना पड़ रहा है।

इस बार भी राज्य पुलिस के कर्मियों पर लगने वाले आरोप कम नहीं हैं। सबसे बड़ा आरोप तो यही है कि उनकी उस लूट में पूरी तरह से मिलीभगत है, जिसका जाल स्थानीय लोगों ने यात्रा दुर्गम यात्रा मार्ग में फैला रखा है। यह आरोप इन पुलिसकर्मियों पर इसलिए भी लग रहा है क्योंकि उन्होंने यात्रियों की शिकायतों पर ध्यान देने से इनकार कर दिया है।

चौंकाने वाली बात यह थी कि इन पुलिसकर्मियों ने इन स्थानीय कश्मीरियों द्वारा स्थापित स्टालों तथा दुकानों को संरक्षण भी दिया हुआ है क्योंकि उन्हें शाम को उसके लिए कथित तौर पर ‘मेहनताना’ दिया जाता है। सिर्फ दुकानदारों से ही नहीं बल्कि बालटाल मार्ग पर यात्रियों को गुफा तक पहुंचाने के लिए तैनात करीब एक हजार घोड़े के मालिक आरोप लगाते हैं कि प्रति फेरे का पुलिसकर्मी अपना ‘हिस्सा’ लेते हैं।

हालांकि पुलिस अधिकारी इन आरोपों से इनकार करते हुए कहते हैं कि वे इन मामलों की जांच करवाएंगे और अगर आरोप सच पाए गए तो दोषियों को सजा दी जाएगी। जबकि सच्चाई यह है कि अपनी जेबें लुटाने वाले अमरनाथ यात्री अपने घरों को वापस लौट जाते हैं और आने वाला अगला जत्था फिर इसी लूट का शिकार होता है, जिसमें सरकारी सहयोग की अहम भूमिका है।