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Written By WD

आखिर मोदी हैं कौन? इंसान, राक्षस या कुछ और...

आखिर मोदी हैं कौन? इंसान, राक्षस या कुछ और... - आखिर मोदी हैं कौन? इंसान, राक्षस या कुछ और...
जहां तक देश में मोदी की छवि की बात आती है तो यह कहना गलत न होगा कि उनके बारे में नकारात्मक और सकारात्मक विचारों की अतिवादिता ही अधिक देखी जाती है। जितनी उनकी प्रशंसा की गई तो शायद उससे कहीं ज्यादा उनकी आलोचना की गई। चुनाव पूर्व मतदान से पहले और मतदान के बाद मतगणना तक मोदी सभी के केंद्र में रहे हैं।
 
अगर उनके समर्थकों को लगा कि देश में कोई 'मोदी लहर' है या कोई 'मोदी सुनामी' है तो उनके विरोधियों के लिए कहीं भी ऐसी कोई बात नहीं देखी गई है। लेकिन इस बात से कोई भी इंकार नहीं कर सकता है कि इस बार के आम चुनावों में पहले से अभूतपूर्व मतदान हुआ है। यह एक ऐसा तथ्य है कि जिसे नकारा नहीं जा सकता है। कुछेक अवसरों को छोड़कर इतना अधिक मतदान पहले कभी नहीं हुआ। 
 
चुनाव प्रचार के दौरान भी मोदी ही सभी विरोधी राजनीतिक दलों के निशाने पर रहे। कौन-कौन से अमर्यादित और आपत्तिजनक विशेषणों से उन्हें नहीं नवाजा गया और उनको जहर, राक्षस, गुंडा, मौत का सौदागर, कसाई, गधा, दंगाबाबू, हत्यारा और कुत्ते का पिल्ला तक कहा गया। पर वे विरोधियों के इस हमले से विचलित नहीं दिखे और न ही इन बातों से उनका आत्मविश्वास डगमगाया। विरोधी दलों की बढ़ती खीझ के साथ-साथ मोदी का प्रचार लगातार जारी रहा।
 
इस बीच विरोधी दलों को मोदी की लोकप्रियता और जनता के बीच उनकी पैठ का अंदाजा हो गया था। इसी अहसास को लेकर मोदी विरोधियों के हमले बढ़ते गए और कांग्रेस की ओर से अमेठी और रायबरेली में राहुल और सोनिया के अलावा प्रियंका को भी वाकयुद्ध के लिए आगे आना पड़ा और मोदी की जाति का मामला सामने आ गया।
 
मोदी विरोधी कह सकते हैं कि उन्हें मिला समर्थन या उनकी संभावित जीत तीर में तुक्का है और उनकी किस्मत प्रबल है लेकिन उन्हें मिला यह समर्थन 1 दिन, 1 माह या 1 साल का परिणाम नहीं है वरन इसके पीछे उनकी दशकों की मेहनत और निजी त्याग है।
 
 
सिर्फ साढ़े तीन घंटे की नींद और 16 घंटे काम... पढ़ें अगले पेज पर...

गुजरात में अपने मु्‍ख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने प्रति दिन 16-16 घंटों तक काम किया, प्रति रात 3.30 घंटे की नींद ली और अपने सहयोगियों को भी राज्य के हित में काम करने के लिए उत्साहित किया जबकि उनके विरोधियों ने आम जनता को कमरतोड़ महंगाई, भ्रष्टाचार और घोटाले इनाम में दिए।

ऐसे में अगर मोदी ने लोगों को रोजगार, सुशासन और विकास का वादा किया हो तो इसमें क्या गलत है? उनके दूसरी ओर चापलूसी की खुराक पर पलने वाले कांग्रेसी नेता हैं, जो कि अपने एक धर्मविशेष के प्रति परस्ती को धर्मनिरपेक्षता का नाम देते रहते हैं।

अपने प्रचार अभियान के दौरान मोदी ने अपने व्यक्तित्व की दृढ़ता, आत्मविश्वास, संकल्प, अभूतपूर्व इनर्जी लेवल, सटीक और सफल रणनीति को क्रियान्वित करने की क्षमता दर्शाई, जो कि वे पिछले 15 वर्षों से गुजरात में दर्शा रहे हैं।

निडरता उनकी बचपन से ही विशेषता रही है। उनकी क्षमता और जज्बा अतुलनीय रहा है, जो कि उनके विरोधियों पर भारी पड़ा। त्याग और तपस्या को उन्होंने संघ में जिया है जिसकी उनका कोई भी विरोधी बराबरी नहीं कर सकता है।

कौन दौड़ा रहा है नरेन्द्र मोदी को... पढ़ें अगले पेज पर...


मोदी ने अपने प्रचार के दौरान टिप्पणी की थी कि 'मैं दौड़ रहा हूं, लोगों का प्यार मुझे दौड़ा रहा है।' भारत में यह पहला मौका है, जब किसी नेता ने इतनी बड़ी संख्या में लोगों को संबोधित किया है।

आखिर उनके व्यक्तित्व में कोई खास बात तो निश्चित तौर पर रही होगी कि उन्होंने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और वे राज्य के मुख्यमंत्री बनने में सफल हुए। और संभवत: वे पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़कर देश के शीर्ष राजनीतिक पद के दावेदार बन गए। यह उनके सतत परिश्रम, रणनीति के साथ उस जीवनशैली की जीत है जिसके तहत उन्होंने अपनी निजी जिंदगी को पूरी तरह से होम कर दिया।

देश में कितने ऐसे नेता हैं जिन्होंने अपनी निजी जिंदगी को लोगों की जिंदगी के लिए कुर्बान किया हो? इसलिए इस बार का आम चुनाव अलग रहा है। मोदी के स्वाभिमान में पिछड़ों को स्थान मिला है तो अतिपिछड़ों पर मायावती जैसे क्षत्रपों का एकाधिकार समाप्त हुआ है।

उनके विकास के रोडमैप को युवाओं ने स्वीकारा है तो उनके हिन्दुत्व के कॉकटेल ने उन कार्यकर्ताओं में नया उत्साह जगाया है, जो कि बीजेपी के कद पर हावी एनडीए में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे।

इस सफलता के लिए राजनीतिक जानकार संघ को श्रेय दे सकते हैं लेकिन संघ के पास भी इस जीत को सुनिश्चित करने के लिए मोदी से बेहतर कोई चेहरा नहीं था। जिन पत्रकारों ने मोदी से इंटरव्यू किया है वे बताते हैं कि मोदी की सादगी कैसी है?

एक समय पर मोदी को मुस्लिमों का कत्ल करने वाले का दर्जा देने वाले लंदन में रहने वाले मुस्लिम कारोबारी जफर सरेशवाला उनके कट्‍टर आलोचक थे लेकिन मोदी से मिलने के बाद वे उनके मुरीद हो गए।

अधिकारियों के भरोसे नहीं रहते मोदी... पढ़ें अगले पेज पर...


मोदी उन मुख्‍यमंत्रियों में से नहीं रहे हैं, जो कि खुद से मिलने आए लोगों से कहें कि वे फलां अधिकारी, फलां नेता से मिल लें, वरन मोदी का सभी से कहना होता है कि वे सीधे मुख्‍यमंत्री कार्यालय फोन कर उनसे मिलें, बात करें।

क्या भारत में ऐसा कोई मुख्यमंत्री दूसरा है, जो कि लोगों के लिए इतना सहज-सुलभ हो? शायद नहीं। फिर भी मीडिया ने मोदी की छवि एक ऐसे आदमखोर की बनाई, जो कि नापसंद लोगों को सामने देखते ही खा जाता है जबकि न कभी ऐसा था और न है।

मोदी के बारे में कहा जा सकता है कि वे देवदूत नहीं हैं तो मौत के सौदागर, मुस्लिमों के हत्यारे और कट्‍टर हिन्दुत्ववादी भी नहीं है। वे खुद कहते हैं कि एक आदमी में जितनी कमियां हो सकती हैं उतनी उनमें भी हैं, लेकिन वे वह भी नहीं हैं, जैसा कि उन्हें चित्रित किया जाता है।

उनकी नाथूराम गोडसे जैसी कट्‍टर हिन्दूवादी छवि को उन जानकार बुद्धिजीवियों, लेखकों और पत्रकारों ने ज्यादा बनाया है, जो कि गुजरात के 2002 के दंगों को लेकर उन्हें पानी पी-पीकर कोसते हैं लेकिन 1984 के दंगों को लेकर कांग्रेस और कांग्रेसी नेताओं पर रुख सॉफ्ट रखते हैं। इस मामले में वे हमेशा ही 'सेलेक्टिव एम्नीशिया' से ग्रस्त बने रहते हैं।

ये बुद्धिजीवी और अंग्रेजीदां ज्ञाता कांग्रेस की तथाकथित धर्मनिरपेक्षता और विचारों से इतने प्रभावित रहते हैं कि उन्हें यह दिखाई नहीं देता कि धर्मनिरपेक्षता एक समुदाय विशेष की तुष्टिकरण का जरिया बन गई है जिसे हर दल इस्तेमाल करना चाहता है ताकि उनका वोट बैंक सुरक्षित रहे।

कौन है धर्मनिरपेक्ष... पढ़ें अगले पेज पर...


माया, ममता, मुलायम क्या धर्मनिरपेक्ष हैं? ये उतने ही धर्मनिरपेक्ष हैं जितनी कि कांग्रेस है, जो कि किसी भी कीमत पर सत्ता से चिपके रहने को अपना विशेषाधिकार मानती है। इसलिए जहां तक मोदी की छवि का प्रश्न है तो उनके बारे में निश्चित तौर पर जानने और समझने के लिए बहुत कुछ है। अगर ऐसा नहीं होता तो पिछले 2 महीनों में उनके बारे में लिखी 40 जीवनियां सामने नहीं आतीं।

कोई भी जानकार लेखक, ज्ञाता ‍या बुद्धिजीवी किसी नकारात्मक आदमी के बारे में इतना कुछ लिखने का साहस नहीं करता है और न ही इतना कुछ लिखा जा सकता है कि उस पर दर्जनों जीवनियां लिख दी जाएं।

इसलिए यह कहना गलत न होगा कि मोदी न तो एक राक्षस हैं और न ही एक साधारण इंसान। वे बीच में ही कहीं एक ऐसे आदमी हो सकते हैं, जो कि असाधारण और असामान्य है जिसे जिंदगी को अपनी ही शर्तों पर जीना पसंद है और आप उसे अपनी तरीके से जिंदगी जीने पर विवश नहीं कर सकते हैं।