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Last Updated : शनिवार, 26 मई 2018 (15:28 IST)

क्या है डिजिटल इंडिया?

क्या है डिजिटल इंडिया? - what is Digital India
एक ऐसा कार्यक्रम है जिसके लिए सरकार ने 1,13,000 करोड़ का बजट रखा है। इस कार्यक्रम के तहत 2.5 लाख पंचायतों समेत छ: लाख गांवों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने का लक्ष्य है और सरकार की योजना 2017 तक यह लक्ष्य पाने की है। अब तक इस योजना के तहत 55 हजार पंचायतें जोड़ी गई हैं।
 
इन पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने पर 70 हजार करोड़ रुपए के बजट का प्रस्ताव है। इसके साथ ही 1.7 लाख आईटी पेशेवर तैयार करना भी लक्ष्य है। इसके लिए केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक स्किल डेवलपमेंट योजना की शुरुआत की है जो कि देश के लोगों को सरकार से सीधे जुड़ने में मददगार हो। 
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि भारतीय किसानों को आईटी क्षेत्र से लाभ मिलना चाहिए। कृषि उत्पादन, मृदा संबंधी विवरण और बिक्री मूल्य का विश्व की कीमतों के साथ तुलनात्मक अध्ययन, इन तीनों को एकसाथ जोड़ देना चाहिए। अगर हमारे पास बोए गए बीज संबंधी विवरण होगा तो हम उत्पादन का स्वरूप का पता लगा सकते हैं।
    
-वे मानते हैं कि अब भारत में सरकारी कर्मचारियों के तकनीकी रूप से उन्नयन की आवश्यकता है। हर रिकॉर्ड बढ़ाने के लिए डेटाबेस में हरेक विवरण रखना आवश्यक हो गया है ताकि प्रदर्शन, सुरक्षा, रखरखाव को बेहतर किया जा सके।
   
-सभी विद्यालयों में सेंट्रल सर्वर होना चाहिए जो सभी प्रकार के ई-प्रशिक्षण सामग्री (शिक्षकों एवं छात्रों, दोनों के लिए) से परिपूर्ण सेंट्रल क्लाउड से जुड़ा होगा। वर्ग 6 से ऊपर के सभी छात्रों को टेबलेट, जैसे-  आकाश- दिया जाना चाहिए। 
 
-लेकिन 3000 रुपए के आस-पास मूल्य के ये टेबलेट अच्छी गुणवत्ता वाले होने चाहिए जो उन्हें आसानी से उनके स्कूल सर्वर से जोड़ सकें। सभी ई-सामग्री क्षेत्रीय भाषा एवं अंग्रेजी भाषा में होनी चाहिए। 100 प्रतिशत की अनुवृत्ति (सब्सिडी) केवल उन लोगों को दी जाए जो इस संबंध में बिलकुल असमर्थ हैं।
    
-प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए सेवाओं का डिजिटलीकरण पारदर्शिता, जिम्मेदारी और त्वरित बदलाव लाने में अहम है। लोगों को इसकी महत्ता के बारे में बताना एवं इसका व्यापक उपयोग निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुनिश्चित करेगा, जैसे-  टीसीएस द्वारा पासपोर्ट प्रक्रिया की शुरूआत की की गई। सरकार को लोगों को शिक्षित करना चाहिए और मोबाइल उपकरणों पर आसानी से इंटरनेट की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए। सभी क्षेत्रीय और सहकारी बैंकों को एटीएम सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
    
-आरएफआईडी अर्थात रेडियो आवृत्ति पहचान बार कोड पहचान के समान ही एक तकनीक है। यह छोटे इलेक्ट्रॉनिक चिप के साथ एकीकृत किया जा सकता है और एकल उपयोगकर्ता की पहचान के लिए व्यक्तिगत फोनों में इस्तेमाल किया जाता है, उसके द्वारा किए गए लेन-देन में, खरीददारी, यात्रा, होटल एवं रेस्तरां के बिल, बिजली, पानी, गैस, बस, ट्रेन, हवाई जहाज, नौकायान इत्यादि से संबंधित बिलों का एक जगह भुगतान हो। 
    
-बेहतर संचार, जानकारी साझा करने और हमारे देश के डिजिटलीकरण के लिए संपूर्ण भारत में मुफ़्त वाईफाई सक्रिय किया जाना चाहिए।
 
-हरेक गांव में ई-सेवा केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए ताकि लोगों को सभी सरकारी सेवाएं एक ही जगह उपलब्ध कराई जा सके।
 
-जब हम इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से लाभ उठाई जाने वाली सेवाओं को अधिक से अधिक लोगों से जोड़ेंगे, स्वाभाविक रूप से लोग इसकी तरफ आकर्षित होंगे। एक निश्चित स्तर पर पहुंचने के बाद कुछ सेवाएं केवल इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में ही उपलब्ध रहेंगी। केरल का 'अक्षय केन्द्र' मॉडल सभी स्थानों पर बड़ी संख्या में सेवाएं उपलब्ध कराने में बेहद सफल रहा है। लोग वहां जाकर सेवाओं के लिए आवेदन कर सकते हैं, जो इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रोसेस्ड (प्रसंस्कृत) की जाती हैं और एक निश्चित समय के भीतर सेवाएं  उपलब्ध करा दी जाएगी। कोई रिश्वत नहीं, कोई चिंता नहीं।
 
-न्यायिक प्रणाली को डिजिटल प्लेटफार्म पर लाकर उसे पुलिस विभाग, सीबीआई, फॉरेंसिक आदि के साथ जोड़ा जाए ताकि अवांछित एवं जटिल प्रक्रिया से बचा जा सके।
 
-ई-वोटिंग के माध्यम से छात्रों को मतदान का अधिकार दिया जाए। दूर जाकर पढ़ाई कर रहे छात्र चुनाव के समय दूरी की वजह से मतदान नहीं कर पाते हैं। यहां तक ​​कि बहुत से छात्र इस चुनाव में भी मतदान नहीं कर सके। ई-वोटिंग के लिए एक अलग वेबसाइट शुरू की जानी चाहिए। अगर एक छात्र अपने सही प्रलेखों के साथ ऑनलाइन वोटिंग के लिए अनुरोध करता है तो उसे एक पासवर्ड भेजा जाना चाहिए ताकि वह ई-वोटिंग कर सके।
 
-सरकार ने पहले ही ‘भारतीय नागरिक पहचान कार्ड’ (आईसीआईसी) परियोजना के रूप में एक सही कदम उठाया है। इस केंद्रीय डेटाबेस में सभी नागरिकों से संबंधित सभी जानकारियां, जैसे – जन्म तिथि प्रमाण-पत्र, शैक्षिक प्रमाण-पत्र, वोटर पहचान-पत्र, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन, पासपोर्ट, गैस, बिजली, टेलीफोन उपभोक्ता आईडी, बैंक खाता संख्या, बॉयोमीट्रिक्स, बीमा, वाहन पंजीकरण इत्यादि होनी चाहिए। सभी नागरिकों को एकल डिजिटल आईसीआईसी या एक नंबर दिया जाना चाहिए। लोगों को यह नंबर याद रखना चाहिए। उस कार्ड या नंबर को सभी तरह की आवश्यकताओं, चाहे बच्चों का स्कूल में दाखिला हो, अस्पताल में भर्ती करने के समय, यातायात चौकियों, बीमा लेने के समय, रेल-हवाई टिकट, रंगीन टीवी खरीदने, के लिए अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। 
 
-सभी सरकारी या निजी निकायों को मोबाइल के एक आसान अनुप्रयोग (एप्लीकेशन) के माध्यम से आईसीआईसी नंबर सत्यापित करने होंगे जिसमें अनुप्रयोग (एप्लीकेशन) में आईसीआईसी नंबर डालते ही नागरिकों के सारे विवरण देखे जा सकते हैं। यह अनुप्रयोग (एप्लीकेशन) अंगूठे के निशान से भी सत्यापण कार्य कर सके। (तकनीक के माध्यम से यह संभव है)। इससे न सिर्फ़ नागरिकों को आसानी होगी बल्कि भ्रष्टाचार कम करने में भी मदद मिलेगी। इन्हीं सभी कामों को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए प्रधानमंत्री ने जो महत्वाकांक्षी योजना बनाई है, उसे डिजिटल इंडिया के नाम से जाना जाता है। 
 
यह डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था (नॉलेज बेस्ड इकॉनमी) बनाने के लिए एक कार्यक्रम है। यह 7 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री की बैठक के दौरान शुरू किया गया और यह कार्यक्रम 2014 वर्ष से 2018 तक चरणबद्ध तरीके से कार्यान्वित किया जाएगा। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम परिवर्तनकारी प्रकृति का है जो यह सुनिश्चित करेगा की सरकारी सेवाएं इलेक्ट्रॉनिक रूप से नागरिकों के लिए उपलब्ध हों।
 
21 वीं सदी में भारत अपने नागरिकों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रयास करेगा जहां सरकार और उसकी सेवाएं नागरिकों के दरवाजे पर उपलब्ध हों और लंबे समय तक सकारात्मक प्रभाव की दिशा में योगदान करें। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य आई टी की क्षमता को इस्तेमाल कर के भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलना है।
अगले पन्ने पर, डिजिटल इंडिया के उद्देश्य...

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के नौ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं :
 
1. ब्रॉडबैंड हाइवेज- सामान्य तौर पर ब्रॉडबैंड का मतलब दूरसंचार से है, जिसमें सूचना के संचार के लिए आवृत्तियों (फ्रीक्वेंसीज) के व्यापक बैंड उपलब्ध होते हैं। इस कारण सूचना को कई गुणा तक बढ़ाया जा सकता है और जुड़े हुए तमाम बैंड की विभिन्न फ्रीक्वेंसीज या चैनलों के माध्यम से भेजा जा सकता है। 
 
इसके माध्यम से एक निर्दिष्ट समयसीमा में वृहत्तर सूचनाओं को प्रेषित किया जा सकता है। ठीक उसी तरह से जैसे किसी हाइवे पर एक से ज्यादा लेन होने से उतने ही समय में ज्यादा गाड़ियां आवाजाही कर सकती हैं। ब्रॉडबैंड हाइवे निर्माण से अगले तीन सालों के भीतर देशभर के ढाई लाख पंचायतों को इससे जोड़ा जाएगा और लोगों को सार्वजनिक सेवाएं मुहैया करायी जायेंगी.
2. मोबाइल कनेक्टिविटी सभी के लिए - देशभर में तकरीबन सवा अरब की आबादी में मोबाइल फोन कनेक्शन की संख्या जून, 2014 तक करीब 80 करोड़ थी। शहरी इलाकों तक भले ही मोबाइल फोन पूरी तरह से सुलभ हो गया हो, लेकिन देश के विभिन्न ग्रामीण इलाकों में अभी भी इसकी सुविधा मुहैया नहीं हो पाई है। हालांकि, बाजार में निजी कंपनियों के कारण इसकी सुविधा में पिछले एक दशक में काफी बढ़ोतरी हुई है। 
 
देश के 55,000 गांवों में अगले पांच वर्षों के भीतर मोबाइल संपर्क की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए 20,000 करोड़ के यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (यूएसओएफ) का गठन किया गया है। इससे ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग के इस्तेमाल में आसानी होगी।
 
3. पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम- भविष्य में सभी सरकारी विभागों तक आम आदमी की पहुंच बढ़ाई जाएगी। पोस्ट ऑफिस के लिए यह दीर्घावधि विजन वाला कार्यक्रम हो सकता है। इस प्रोग्राम के तहत पोस्ट ऑफिस को मल्टी-सर्विस सेंटर के रूप में बनाया जाएगा। नागरिकों तक सेवाएं मुहैया कराने के लिए यहां अनेक तरह की गतिविधियों को चलाया जाएगा।
 
4. ई-गवर्नेस- प्रौद्योगिकी के जरिए सरकार को सुधारना- सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए बिजनेस प्रोसेस री-इंजीनियरिंग के ट्रांजेक्शंस में सुधार किया जाएगा। विभिन्न विभागों के बीच आपसी सहयोग और आवेदनों को ऑनलाइन ट्रैक किया जाएगा। इसके अलावा, स्कूल प्रमाण पत्रों, वोटर आइडी कार्डस आदि की जहां जरूरत पड़े, वहां इसका ऑनलाइन इस्तेमाल किया जा सकता है। 
 
यह कार्यक्रम सेवाओं और मंचों के एकीकरण- यूआइडीएआइ (आधार), पेमेंट गेटवे (बिलों के भुगतान) आदि में मददगार साबित होगा। साथ ही सभी प्रकार के डाटाबेस और सूचनाओं को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से मुहैया कराया जाएगा।
 
5. ई-क्रांति- सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी- इसमें अनेक बिंदुओं को फोकस किया गया है। इ-एजुकेशन के तहत सभी स्कूलों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने, सभी स्कूलों (ढाई लाख) को मुफ्त वाइ-फाइ की सुविधा मुहैया कराने और डिजिटल लिटरेसी कार्यक्रम की योजना है। किसानों के लिए रीयल टाइम कीमत की सूचना, नकदी, कर्ज, राहत भुगतान, मोबाइल बैंकिंग आदि की ऑनलाइन सेवा प्रदान करना। 
 
स्वास्थ्य के क्षेत्र में ऑनलाइन मेडिकल सलाह, रिकॉर्ड और संबंधित दवाओं की आपूर्ति समेत मरीजों की सूचना से जुड़े एक्सचेंज की स्थापना करते हुए लोगों को इ-हेल्थकेयर की सुविधा देना। न्याय के क्षेत्र में इ-कोर्ट, इ-पुलिस, इ-जेल, इ-प्रॉसिक्यूशन की सुविधा,  वित्तीय इंतजाम के तहत मोबाइल बैंकिंग, माइक्रो-एटीएम प्रोग्राम चलाया जाएगा।
 
6. सभी के लिए जानकारी- इस कार्यक्रम के तहत सूचना और दस्तावेजों तक  ऑनलाइन पहुंच कायम की जाएगी। इसके लिए ओपन डाटा प्लेटफॉर्म मुहैया कराया जाएगा, जिसके माध्यम से नागरिक सूचना तक आसानी से पहुंच सकेंगे। नागरिकों तक सूचनाएं मुहैया कराने के लिए सरकार सोशल मीडिया और वेब आधारित मंचों पर सक्रिय रहेगी। साथ ही, नागरिकों और सरकार के बीच दोतरफा संवाद की व्यवस्था कायम की जाएगी। 
 
7. इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में आत्मनिर्भरता- इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र से जुड़ी तमाम चीजों का निर्माण देश में ही किया जाएगा। इसके तहत ‘नेट जीरो इंपोर्ट्स’ का लक्ष्य रखा गया है ताकि 2020 तक इलेक्ट्रॉनिक्स के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके। इसके लिए आर्थिक नीतियों में संबंधित बदलाव भी किए जाएंगे। फैब-लेस डिजाइन, सेट टॉप बॉक्स, वीसेट, मोबाइल, उपभोक्ता और मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक्स, स्मार्ट एनर्जी मीटर्स, स्मार्ट कार्डस, माइक्रो-एटीएम आदि को बढ़ावा दिया जाएगा।
 
8. रोजगारपरक सूचना प्रौद्योगिकी - देशभर में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रसार से रोजगार के अधिकांश प्रारूपों में इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है। इसलिए इस प्रौद्योगिकी के अनुरूप कार्यबल तैयार करने को प्राथमिकता दी जाएगी। कौशल विकास के मौजूदा कार्यक्रमों को इस प्रौद्योगिकी से जोड़ा जाएगा।
 
संचार सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनियां ग्रामीण कार्यबल को उनकी अपनी जरूरतों के मुताबिक प्रशिक्षित करेंगी। गांवों व छोटे शहरों में लोगों को आइटी से जुड़े जॉब्स के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। आइटी सेवाओं से जुड़े कारोबार के लिए लोगों को प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके लिए दूरसंचार विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया है।
 
9. अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम्स- डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को लागू करने के लिए पहले कुछ बुनियादी ढांचा बनाना होगा यानी इसकी पृष्ठभूमि तैयार करनी होगी। साथ ही, इसके लिए कुशल श्रम शक्ति की भी जरूरत पड़ेगी जिसे तैयार करना होगा।
अगले पन्ने पर, डिजिटल इंडिया के लिए ये हैं चुनौतियां....
 
 

डिजिटल इंडिया की राह में प्रमुख चुनौतियां : 
 
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को इसके लक्ष्य तक पहुंचाने की राह में कई चुनौतियां से जूझना पड़ेगा। इसमें मानव संसाधन यानी कर्मचारियों की कमी का मसला सबसे अहम हो सकता है। 
 
देश में सूचनाओं को प्रेषित करने वाली संस्था नेशनल इंफोर्मेटिक्स सेंटर (एनआइसी) के पास इस टास्क को पूरा करने की क्षमता नहीं है। इसलिए सबसे पहले इसके पुनर्निर्माण की जरूरत है। सभी स्तर पर प्रोग्राम मैनेजर्स की जरूरत होगी, जिसकी अभी तक कोई व्यवस्था नहीं है। वरिष्ठ स्तर पर कम से कम चार अधिकारियों की जरूरत होगी। साथ ही इसके लिए सभी मंत्रालयों को मुख्य सूचना अधिकारी/ मुख्य तकनीकी अधिकारी की जरूरत होगी। 
इसके अलावा, एक अहम मसला वित्तीय संसाधनों से जुड़ा है। नेसकॉम के मुखिया आर चंद्रशेखर का कहना है कि देश की सभी ढाई लाख पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने के लिए 20,000 करोड़ से ज्यादा का खर्च आ सकता है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था व्यापक रूप से प्रभावित हो सकती है। 
 
आम जनता के हित में केंद्र और राज्य सरकारों की बहुत सारी कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं। मोदी सरकार की कोशिश यही है कि समाज के सबसे हाशिए पर बैठे लोगों के जीवन में बदलाव आए। हालांकि, भ्रष्टाचार के दीमक के कारण और अपने अधिकार के विषय में सूचना के अभाव के कारण लोगों को इसका वास्तविक लाभ नहीं मिल पा रहा है। ज्यादातर पैसा उन लोगों तक नहीं पहुंचता है जो कि इसके हकदार होते हैं। यदि सूचनाओं को डिजिटल कर दिया जाए और संप्रेषण को आसान बना दिया जाए, तो सरकार की योजनाओं के विषय में लोगों को जानकारी होगी। गांव-पंचायत में चलाए जाने वाले कार्यक्रमों-मसलन मनरेगा, इंदिरा आवास, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मिड डे मिल आदि कई ऐसी योजनाएं हैं, जो गांवों में चलाई जाती हैं।
 
शिक्षा से लेकर गरीबी उन्मूलन तक विकास की 29 ऐसी योजनाएं हैं, जिन्हें लागू करने के लिए हम पंचायतों पर निर्भर हैं। देश के ग्रामीण तभी इन योजनाओं का लाभ उठा पाएंगे, जब उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी होगी। अगर ग्रामीणों को इन योजनाओं की सही जानकारी दी जाए, इनमें खर्च की जाने वाले राशि और होने वाले काम के विषय में जानकारी हो तो वे अपने अधिकार मांग सकते हैं। 
 
यदि हर पंचायत में इंटरनेट हो, उनकी अपनी वेबसाइट हो, उस वेबसाइट में गांव-पंचायत से जुड़ी सभी सूचनाओं, योजनाओं, उनके निष्पादन की स्थिति का वर्णन हो तो गांव को इससे काफी फायदा होगा।
 
सरकारी सेवा तक न हो सीमित
 
पिछले कुछेक वर्षों में मोबाइल ने लोगों के जीवन को सरल बनाया है। आज मोबाइल का इस्तेमाल करने वालों की संख्या काफी है। इसके जरिए हम जनता से जुड़ी सेवाओं की जानकारी लोगों तक पहुंचा सकते हैं। भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है। इससे बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार भी मिलेगा। 
 
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को सिर्फ सरकारी योजनाओं या सरकारी कर्मचारियों तक सीमित रखने से बात नहीं बनेगी। इसके तहत कुछेक साझेदारों को भी शामिल किया जाना चाहिए। अगर कुछ विशेष क्षेत्रों को चिह्न्ति करके सरकार इस दिशा में आगे बढ़े तो एक निश्चित समय सीमा के तहत इसका काफी फायदा हो सकता है।  
 
मसलन सरकार को इस डिजिटल इंडिया कार्यक्रम में एनजीओ को भी शामिल करना चाहिए। इस देश में लगभग 33 लाख एनजीओ हैं। प्रत्येक 600 व्यक्ति पर लगभग एक एनजीओ है। इन एनजीओ के जरिए कई करोड़ों डॉलर खर्च किया जाता है जो‍कि देश-विदेश से आता है। समाज से जुड़े इस क्षेत्र की पहुंच गांव-गांव तक है। इसलिए इनकी निगरानी भी उतनी ही जरूरी है। एक तरफ सरकार सभी विभागों की सारी सूचनाएं वेबसाइट पर डालने की बात कर रही है। विकास कार्यक्रमों में एनजीओ की भी भागीदारी है, जिनके जरिए बड़े पैमाने पर रकम खर्च की जा रही है। यदि इन्हें इस कार्यक्रम में शामिल नहीं किया जाता है तो डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को नुकसान पहुंचेगा।
 
दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र पब्लिक लाइब्रेरी है। देश के सभी पब्लिक लाइब्रेरी को डिजिटल इंडिया से जोड़ना चाहिए, ताकि न सिर्फ ज्ञान का संवर्धन हो, बल्कि युवा तकनीकी रूप से भी दक्ष होंगे और इस कार्यक्रम को मजबूती मिलेगी। मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सौजन्य से उत्तर प्रदेश में आठ पब्लिक लाइब्रेरी को और पश्चिम चंपारण में इन्हें डिजिटल करने का काम शुरू किया है, और इसका फायदा भी हुआ है। इसी तरह मदरसों के आधुनिकीकरण की बात कही जा रही है।
 
मदरसों को अगर डिजिटल इंडिया कार्यक्रम से जोड़ा जाए तो एक उन्हें अपने परंपरागत शिक्षा माध्यमों से फायदा मिलेगा और दूसरी तरफ वे इंटरनेट से जुड़कर आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से परिचित होंगे। इसी तरह सामुदायिक रेडियो को बढ़ाना चाहिए। यह दूरस्थ इलाकों के लिए मोबाइल की तरह डिजिटल इंडिया कार्यक्रम में सहयोगी हो सकता है। सरकार ने जन-धन योजना शुरूआत की है। इसका लक्ष्य है, लोगों के खातों में कैश ट्रांसफर हो। इसलिए डिजिटल इंडिया के तहत जितना मशीनीकरण होगा, कार्यक्रमों की मॉनिटरिंग उतनी ही आसान होगी और लोगों तक योजनाओं का लाभ पहुंचेगा। 
 
पर भारत में अब भी तकरीबन एक अरब लोग इंटरनेट की पहुंच से दूर हैं। यह संख्या यूरोप और अमेरिका की कुल आबादी से भी ज्यादा है। 2012 की तुलना में भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या में 25 प्रतिशत का वृद्धि हुई है लेकिन भारत की जनसंख्या को देखते हुए यह आंकड़ा अभी बहुत कम है। भारत में इंटरनेट की पहुंच में सबसे बड़ी बाधा है इसकी लागत। भावी इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो छोटे या मझोले किस्म के काम करते हैं। ऐसे लोगों के लिए इंटरनेट का खर्च वहन कर पाना संभव नहीं है। 
 
उम्मीद है कि 2020 तक भारत में 70 करोड़ से ज़्यादा इंटरनेट उपभोक्ता हो जाएंगे, जबकि 2013 तक यह संख्या महज 11 करोड़ थी। लेकिन भारत की टेलीकॉम कंपनियां  अभी ही बढ़ते हुए नेटवर्क से संघर्ष कर रही हैं। इन कंपनियों पर उपभोक्ताओं की बढ़ती मांग को पूरा करना का दबाव बहुत बढ़ गया है।
 
90 करोड़ से अधिक मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं के साथ दुनिया के सबसे बड़े टेलीकॉम बाजारों में से एक होने बावजूद भारत के पास ग्लोबल कंपनियों के मुकाबले बहुत कम स्पेक्ट्रम है। इसलिए अगर भारत सरकार डिजिटल इंडिया का अपना सपना साकार करना चाहती है तो उसे अधिक से अधिक स्पेक्ट्रम उपलब्ध कराना चाहिए। सच तो यह है कि ब्रॉडबैंड कमीशन फॉर डिजिटल डेवलेपमेंट रिपोर्ट में भारत को 200 देशों में से 145वें क्रमांक पर रखा है। भारत को कम से कम कनेक्टेड देशों के 39 के समूह में स्थान दिया गया है। इस 39 देशों के समूह में अधिकतर अन्य अफ्रीकी देश हैं।
 
पूरे देश में बैंडविड्थ की बहुत बड़ी कमी है। इस वजह से इंटरनेट बहुत 'धीमा' चलता है। 'डिजिटल इंडिया' और 'फ्री' वाई-फाई जैसी चीजों के बारे में कहने से पहले बुनियादी सुविधाओं (इन्फ्रास्ट्रक्चर) पर ही बहुत काम करने की जरूरत है। फिलहाल, हमारा देश इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए पूरी तरह 'विदेशियों पर निर्भर' हैं। एक छोटा उद्ममी अपना सेटअप लगाना चाहे तो यह 'संभव' ही नहीं है। सारे सर्वर विदेशियों के 'हवाले' हैं और तो इसके चलते भारत में वेबसाइट बनवाने और चलाने वाले ग्राहक कहते हैं कि सर्वर 'अमेरिका' का होना चाहिए जो कि बहुत 'सस्ता' और 'बेहतर' होता है।
 
इतना ही नहीं, मोदी ने जिस आधार कार्ड को अपना पूरा समर्थन दिया है उसका पूरा डेटाबेस ही अमेरिकी सर्वर पर रखा हुआ है। विशेषज्ञ कहते हैं कि पहले उस डाटाबेस को ही भारत में लाओ। डेटाबेस का स्वदेशी सर्वर पर होना और पूरी तरह सुरक्षित होना बहुत जरूरी है। भारत में 'वैंडविड्थ' दूसरे बड़े देशों की तुलना में बहुत 'महंगी' भी है, इंटरनेट कनेक्शन कैसे चलते हैं, यह भी सभी जानते हैं। अभी सबसे पहली जरूरत तो यही है कि भारत में भी ऐसे सर्वर लग सकें, जो सस्ते और बहुत कारगर भी हों। इंटरनेट सेवाओं के ग्राहक कहें कि हमें भारत में लगा सर्वर चाहिए। तब हमारा डिजिटल इंडिया की राह में एक छोटा सा लेकिन महत्वपूर्ण सपना पूरा होगा। 
 
संचार विभाग के नोट में यह कहा गया है कि 2017 तक करीब 17 करोड़ 50 लाख ब्रॉडबैंड के कनेक्शन हो जाएंगे। टेलीकॉम विभाग ने एक बैठक में कहा कि कम से कम 2 एमबीपीएस डाउनलोड स्पीड की ब्रॉडबैंड सुविधा होनी चाहिए। नेट न्यूट्रेलिटी पर  विभाग का कहना है कि बेशक भारत विश्व में नेट यूजर में तीसरा स्थान रखता है, पर देश की आबादी के हिसाब से केवल 20 फीसदी लोग ही इंटरनेट से जुड़े हैं।
 
और जहां तक इंटरनेट स्पीड की बात है तो भारत दुनिया में इंटरनेट स्पीड के मामले में 118वें नंबर पर है। भारत से बेहतर स्पीड थाईलैंड, इंडोनेशिया, फिलीपींस और वियतनाम की है। 0.7% यूजर को ही भारत में 10 एमबीपीएस स्पीड नसीब है,। 4.9% लोगों को 4 एमबीपीएस की स्पीड मिलती हैं। इन्फॉरमेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट के मामले में भारत की 121 रैंकिग है। दक्षिण कोरिया पहले, स्वीडन दूसरे, 78वीं रैंकिंग चीन की व श्रीलंका की 107वीं है। 17वीं रैंकिंग अमेरिका की है।
 
डिजिटल सेवाओं के बेहतर इस्तेमाल के लिए विशेषज्ञ कस्बाई और ग्रामीण इलाकों में पहले कुछ बुनियादी जरूरतें बढ़ाने पर जोर देते हैं। जैसेकि नए मोबाइल टावरों की कमी है। डेढ़ लाख गांवों में बिजली नहीं है। यानी गांवों में सिर्फ ब्रॉडबैंड पहुंचाने भर से काम नहीं चलेगा, यह तय करना होगा कि उन सेवाओं का इस्तेमाल करने में लोग सक्षम हों। ये सेवाएं उनके लिए किफायती हों तथा ग्रामीण लोग डिजिटल डिवाइस और सेवाओं को खरीदने की क्षमता रखते हों। साथ ही सरकार को अपनी सेवाओं में ई-डिलिवरी, ई-ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देना होगा।
अगले पन्ने पर, मिटाना होगी गांवों और शहरों के बीच गैप  
 
 

गांव-शहर के बीच डिजिटल गैप :  केंद्र सरकार ने कहा है कि इस कार्यक्रम के जरिये वह भारत और इंडिया के बीच का फर्क मिटा देगी। ग्रामीण एवं शहरी सभी लोगों को समान रूप से डिजिटल सेवाओं का फायदा मिलेगा, लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है। आज देश में तकरीबन सौ करोड़ फोन कनेक्शन हैं, जिनमें 58 करोड़ कनेक्शन शहरों और 42 करोड़ गांवों में हैं। यह संख्या शहरों में सिर्फ 32 फीसदी है, जबकि ग्रामीण इलाकों में 68 फीसदी आबादी निवास करती है। शहरी इलाकों में टेलीफोन घनत्व 149 है तो गांवों में इसका घनत्व है महज 49।
 
शहर-गांव के इस असंतुलन को पाटना एनडीए सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। सरकार बीएसएनएल को नए सिरे से तैयार कर रही है और इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए बीएसएनएल 1.5 करोड़ नए कनेक्शन जारी करेगा। लक्ष्य यह है कि 2019 तक हर गांव में टेलीफोन सेवा पहुंच जाए। साथ ही ट्राई ने 2020 तक तेज रफ्तार इंटरनेट घर-घर तक पहुंचाने की भी योजना बनाई है। सरकार चाहती है कि हर पंचायत ब्रॉडबैंड से जुड़े, लेकिन उसकी नीति में स्थानीय जरूरतों की उपेक्षा हो रही है। जैसे ग्रामीणों की आर्थिक हैसियत इत्यादि पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सरकार को सोचना चाहिए कि शहरों की तरह गांवों में इंटरनेट नहीं बेचा जा सकता है। इस खाई को पाटना कोई सरल काम नहीं होगा।