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Last Updated : शनिवार, 26 मई 2018 (15:34 IST)

मोदी सरकार : अर्थव्यवस्था में तेजी की दरकार

मोदी सरकार : अर्थव्यवस्था में तेजी की दरकार - Economics status in Modi government one year
मोदी सरकार को 26 मई को एक वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस एक वर्ष में नरेन्द्र मोदी सरकार ने आर्थिक मोर्चे पर कई ऐसे निर्णय लिए हैं,जिनका असर धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था में बदलाव के संकेत दे रहा है। इस एक वर्ष में मोदी सरकार ने कई 'कड़वे फैसले' भी लिए हैं। अब देखना यह है कि इन 'कड़वे फैसलों'से अर्थव्यवस्था की गति में कितना सुधार होता है। 
 
1.टी-20 की उम्मीद, टेस्ट का प्रदर्शन: आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार का प्रदर्शन अधिक बुरा नहीं है, लेकिन आम लोग और कॉर्पोरेट जगत को सरकार से और अधिक सक्रियता की उम्मीद है। हांलांकि इस बात को लेकर थोड़ी बेचैनी बढ़ रही है कि क्यों कोई बदलाव नहीं हो रहा है और जमीनी असर होने में इतना वक्त क्यों लग रहा है?
 
भारतीय उद्योग जगत के कर्णधारों और देशी-विदेशी निवेशकों के बीच लोगों की राय है कि सरकार ने अपने इरादों से प्रभावित किया है लेकिन इनके हकीकत में साकार होने की प्रक्रिया तकलीफदेह रूप से धीमी है। विदित हो कि यह तबका ही मोदी का सबसे बड़ा प्रशंसक रहा है। 
 
भारतीय उद्योग जगत की उम्मीदें कितनी ऊंची हैं। एक कंपनी के प्रमुख का कहना है  मोदी सरकार टेस्ट मैच खेल रही है लेकिन उससे उम्मीदें टी-20 मैच जैसा प्रदर्शन दिखाने की हैं। हम उस बाजार को देख रहे हैं जिसमें ईपीएस (मौजूदा आमदनी) तो मनमोहन सिंह सरकार की हैं लेकिन पीई (मूल्यांकन) नरेंद्र मोदी सरकार का है।'
 
2. लोगों की उम्मीदें : एक प्रमुख जनमत सर्वेक्षण के अनुसार मोदी सरकार को लेकर लोग नाउम्मीद नहीं हैं। सर्वेक्षण में शामिल 36 फीसदी लोगों को यकीन है कि सरकार ने अर्थव्यवस्था को सुधारा है। 22 फीसदी लोगों का मानना है कि अर्थव्यवस्था में तब्दीली का असर अगले छ: महीने में दिखाई देने लगेगा, लेकिन 29 फीसदी लोग यह मानने हैं कि न तो अर्थव्यवस्था में सुधार का कोई संकेत है और न ही अगले छह महीने में ऐसा होने की कोई उम्मीद नजर आती है। सर्वेक्षण में शामिल लोगों में 58 फीसदी यह मानते हैं कि मोदी के शासन में अर्थव्यवस्था सुधार के रास्ते पर है और स्थिति अंतत: बेहतर होगी। 
 
3. बदलाव की ‍गति से बेचैनी : मोदी के प्रचार अभियानों ने यह धारणा तो पैदा ही कर दी थी कि वे देश की आर्थिक समस्याओं का समाधान निकाल लेंगे जैसेकि उनके पास कोई जादुई छड़ी हो। इस धारणा को अब जमीनी हकीकत का सामना करना पड़ रहा है। 
 
लोगों को उम्मीद थी कि मैनुफैक्चरिंग में तेजी आएगी, नौकरियों में इजाफा होगा और आर्थिक गतिविधियों में अचानक बढ़ोतरी हो जाएगी तो उनकी ये अपेक्षाएं कुछ ज्यादा ही ऊंची थीं। भारतीय मैन्युफैक्चरिंग की समस्याएं गहरी हैं और ये एक साल में दुरुस्त नहीं की जा सकतीं। चीजें थोड़ी धीमी जरूर हैं लेकिन ऐसा भारत में जड़ता की वजह से है जहां किसी भी बदलाव को शुरू में प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। भारत में  बदलाव की प्रक्रिया धीमी होती है।
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4. सरकार के इरादे नेक :  लोगों को सरकार के कामकाज में अच्छे इरादे नजर आते हैं, जैसे कि बीमा, खदान व खनिज पर महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित किया जाना। रक्षा में विदेशी निवेश को बढ़ाकर 49 फीसदी किया जाना। स्पेक्ट्रम की बोली फिर से लगाना जिससे 1.10 लाख करोड़ रु. की राशि हासिल हुई। 'मेक-इन-इंडिया' अभियान शुरू करना, राज्यों को ज्यादा संसाधन उपलब्ध कराना और अप्रैल 2016 तक गुड्स व सर्विस टैक्स लागू करने का स्पष्ट खाका तैयार करना। 
 
5. प्राथमिकता से महंगाई पर नियंत्रण : ढांचागत परियोजनाओं की जल्द मंजूरी, निवेशकों में विश्वास को बढ़ाने के लिए पूर्व प्रभाव से लागू कर व्यवस्था को रद्द करना, भूमि अधिग्रहण पर आम राय कायम करने के लिए सरकार की ओर से प्रयास और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को ज्यादा स्वायत्तता देना शामिल है लेकिन आम आदमी के लिए महंगाई पर काबू पाना मोदी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। 
6. रिजर्व आइटम की सुविधा खत्म करने का प्रतिगामी कदम : मोदी सरकार ने छोटे कारोबारियों के लिए एक्सक्लूसिव रिजर्व आइटम की सुविधा खत्म कर दी है। यानी केवल माइक्रो एंड स्मॉल इंटरप्राइजेज (एमएसई) द्वारा बनाए जाने वाले उत्पाद अब कोई भी बना सकेगा। सरकार का यह कदम छोटे कारोबारियों के लिए बड़ा झटका है। अभी तक 20 प्रोडक्ट सरकार ने रिजर्व आइटम में रखे थे। इसकी मैन्यूफैक्चरिंग देश में केवल माइक्रो और स्मॉल इंटरप्राइजेज द्वारा ही की जा सकती थी।
 
देश में छोटे कारोबारियों को बढ़ावा देने के लिए आजादी के बाद से ही करीब 700 प्रोडक्ट की मैन्यूफैक्चरिंग माइक्रो एंड स्मॉल इंटरप्राइजेज के लिए रिजर्व की गई थी। यानी इन प्रोडक्ट को नए फैसले के बाद कोई बड़ी कंपनी नहीं बना सकेगी।
 
रिजर्व आइटम में रखने का उद्देश्य छोटे कारोबारी को संरक्षण देकर उसके कारोबार को बढ़ाना था। साल 1991 में उदारीकरण की शुरूआत के बाद मल्टी नेशनल कंपनियों की देश में एंट्री को देखते हुए रिजर्व आइटम की संख्या घटा कर धीरे-धीरे केवल 20 कर दी गई। जिसमें 10 अप्रैल को जारी अधिसूचना के बाद पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है।
 
सरकार के इस फैसले पर छोटे कारोबारियों ने निराशा जताई है। छोटे कारोबारियों को संरक्षण की जरूरत है। इससे मल्टीनेशनल कंपनियों और चीन का दबदबा बढ़ेगा। एक तरफ सरकार मेक इन इंडिया की बात कर रही है, दूसरे तरफ कारोबारियों को खत्म करने के कदम उठाए जा रहे हैं। साथ ही, इससे बेरोजगारी भी बढ़ेगी।
इन योजनाओं से आएगी अर्थव्यवस्था में गति 
 
 
 

7. ऋण एवं मौद्रिक नीति की समीक्षा : रिजर्व बैंक की तीन जून को घोषित होने वाली ऋण एवं मौद्रिक नीति की द्विमासिक समीक्षा पर मोदी सरकार का स्पष्ट प्रभाव दिख सकता है लेकिन उसकी नजर महंगाई पर होगी। मोदी सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कि किए जा रहे उपायों का असर रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति पर भी दिख सकता है और केंद्रीय बैंक नीतिगत दरों में एक चौथाई प्रतिशत की कमी कर सकता है।
8. 'इंजन ऑफ ग्रोथ'को अधिक सक्रिय बनाया जाए : केंद्र सरकार के कई अहम मंत्रालय पिछले छह माह में नियोजित बजट की 30 फ़ीसदी से भी कम राशि ख़र्च कर पाए हैं। जहां पर्यटन मंत्रालय, नियोजित बजट का 14 फ़ीसदी ही ख़र्च कर पाया है वहीं जल संसाधन के मामले में ये राशि मात्र छह फ़ीसदी है। भारत में ‘इंजन ऑफ़ ग्रोथ’ अब भी सरकारी ख़र्च ही है।
 
अगर सरकार बड़े पुल, सड़क, नहरें और इस तरह की दूसरी चीज़ों के निर्माण का प्लान आगे के लिए टाल देती हैं तो इसका असर स्टील, सीमेंट और दूसरे क्षेत्रों पर पड़ेगा। इन सेक्टर में निर्माण कम होने से मज़दूरों और कामगारों की ज़रूरत कम होगी जिसका असर रोज़गार पर पड़ेगा।
 
9. मोदी सरकार ने ई-वीज़ा : मोदी सरकार ने ई वीजा जैसे अहम क़दम उठाया हैं जो पर्यटन क्षेत्र को बहुत फ़ायदा पहुंचाएंगे। सरकार को इसके दोहन के अधिकाधिक प्रयास करने चाहिए। यह भारत और दुनिया के अन्य देशों के बीच एक सक्रिय पुल की तरह काम करेगा और भारत तथा दुनिया के अन्य देशों के लोगों से जीवंत संवाद हो सकेगा।
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10. आर्थिक विकास दर में बढ़ोतरी : आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) ने वित्त वर्ष 2015–16 के लिए भारत के लिए 6.6 फीसदी का विकास दर का अनुमान लगाया। ओईसीडी के अनुसार 6.6 फीसदी की विकास दर को हासिल करने के लिए भारत को विनिर्माण गतिविधियों को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। मई 2014 के शुरुआत में, ओईसीडी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के 5.7 फीसदी के विकास का अनुमान लगाया था।
 
11. रेलवे के किराए में बढ़ोतरी : अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने की कवायद कर रही मोदी सरकार ने रेल किराए में बढ़ोत्तरी करके ये जता दिया है कि वो आने वाले दिनों में कुछ और कड़े फैसले ले सकती है, ताकि अर्थव्यवस्था की रेल को पहले वापस पटरी पर लाई जा सके और फिर उसे तेजी से दौड़ाई जा सके।
 
12. डीजल सब्सिडी का खात्मा : सरकार डीजल सब्सिडी जल्द ही खत्म कर सकती है। एलपीजी और केरोसीन पर जोर का झटका धीरे-धीरे दिया जा सकता है। ऐसे में हर महीने एलपीजी और केरोसिन के दाम धीरे-धीरे बढ़ सकते हैं।
 
13. फूड बिल में बदलाव : मोदी सरकार ने यूपीए सरकार के फूड सिक्यॉरिटी बिल में भी बदलाव किए हैं और इसे सिर्फ गरीबों तक सीमित किया गया है, ताकि खर्चे पर नियंत्रण रखा जा सके। देश की दो तिहाई जनसंख्या को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 1 रुपया से लेकर 3 रुपए प्रतिकिलो ग्राम की सब्स‍िडी युक्त दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने का दायित्व है। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत इस योजना को लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों पर डाली गई है। 
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14. राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण : बढ़ता राजकोषीय घाटा मोदी सरकार के लिए बड़ी परेशानी का सबब है। ऐसे में राजकोषीय घाटे को काबू में करने के लिए नई सरकार भी फिस्कल कन्सॉलिडेशन जारी रख सकती है।
 राजकोषीय घाटा 2014-15 के दौरान जीडीपी के 4.1 प्रतिशत और वर्ष 2015-16 के दौरान घाटे को 3.6 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रखा गया है।
15. टैक्ट छूट नहीं  : फिस्क्ल कंसोलिडेशन में जुटी सरकार के पास टैक्स छूट देने की संभावना कम ही थी।  अधिक से अधिक टैक्स स्लैब्स के जरिए सरकार ने नाममात्र की कुछ छूट देने का प्रयास किया है। व्यक्तिगत आयकर की सीमा को 50 हजार से बढ़ाकर 2.50 लाख तक ही रखा गया है। इसके वावजूद प्रत्यक्ष करों के संबंध में बजट के उपर्युक्त व अन्य करों से  कुल मिलाकर 22 हजार200 करोड़ की राजस्व हान‍ि का अनुमान लगाया गया है।   
 
16. खर्चे में कटौती : मोदी सरकार खर्चे में कटौती पर फोकस कर सकती है। मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो राजस्व बढ़ाने पर उनका खासा जोर रहा था। ऐसे में इस पॉलिसी को केन्द्र में भी लागू किया जा सकता है। सरकार ने जहां फरवरी 2014 में सब्सिडीयुक्त एलपीजी सिलिडरों की संख्या 9 के स्थान पर बारह कर दी थी लेकिन सरकार और तेल कम्पनियों ने उपभोक्ताओं से अपील की है कि वे सब्सिडी वाले सिलिडरों को लेना छोड़ दें।
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17. पीएसयू बैंकों का विलय : मोदी सरकार से बैंकों के विलय का कदम उठाना बहुत संभावित माना जा रहा है। सरकार पीएसयू बैंकों का विलय करके बड़े बैंक बनाने की नीति तैयार कर सकती है। पर भुगतान संतुलन के चालू खाते के घाटे की स्थिति में संतोषजनक सुधार होने पर भारतीय रिजर्व बैंक ने पांच ननिजी बैंकों को स्वर्ण आयात की अनुमति दी है। एक्सिस बैंक में अपनी हिस्सेदारी को भी सरकार ने बेच दिया है।  
 
18. लैंड बिल में संशोधन : मोदी सरकार लैंड बिल में भी कुछ फेरबदल कर सकती है। हालांकि यह सरकार और विपक्षी दलों के बीच जोर आजमाइश का विषय बन चुका है लेकिन बुनियादी ढांचे के विकास और औद्योगिकीकरण को रफ्तार देने के लिए यह जरूरी है। इस पर काम नहीं किया गया तो रफ्तार धीमी पड़ सकती है।
 
19 . सीआईएल और एफसीआई में बदलाव : कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) देश में बढ़ रही मांग के साथ गति बनाए रखने में असफल रहा है। इसी तरह फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया में भी कई गड़बड़ियां हैं। ऐसे में इन दोनों संगठनों में व्यापक बदलाव हो सकते हैं।
 
20 . मनरेगा में बदलाव : पिछली सरकार की फ्लैगशिप योजना में कई कमियां हैं। ऐसे में सरकार इसे जारी तो रखेगी लेकिन इसमें कई बड़े बदलाव और सुधार देखने को मिल सकते हैं।
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21. निवेश पर नजर, मोदी मैजिक का असर : मोदी सरकार विनिर्माण क्षेत्र सहित निवेश की संभावना वाले अन्य क्षेत्रों में बूम के आंकड़े पेश करके दूसरे देशों को निवेश के लिए आकर्षित करने में जुटी है। वित्त मंत्रालय व औद्योगिक संवर्धन विभाग ने देश में निवेश व आर्थिक प्रगति की सुनहरी छवि पेश करने का खाका तैयार किया है। सरकार का दावा है कि बीते 10-11 महीनों में भारत दुनिया भर के निवेशकों की आशा का केंद्र बनकर उभरा है। आंकड़ों व सर्वे के जरिए इसे प्रमाणित  करने का प्रयास किया गया है।
 
22. दूर हुआ निराशा का माहौल : सरकार ने आंकड़ों का हवाला देकर कहा है कि मोदी मैजिक का असर निवेशकों में नजर आ रहा है। डीएसपी ब्लैकरॉक इंडिया इन्वेस्टर पल्स सर्वे का हवाला देकर सरकार ने दावा किया है कि निवेशकों के बीच आशावाद बढ़ा है और निराशा का माहौल दूर हुआ है। जबकि यूपीए सरकार में माहौल काफी निराशाजनक हो गया था। केंद्र सरकार का दावा है कि कई तरह के प्रशासनिक सुधारों और बदलावों की वजह से स्थिति बेहतर हुई है।
81 फीसदी निवेशकों को भा रहा भारत का बाजार आंकड़ों के मुताबिक 81 फीसदी निवेशक मोदी की कार्यशैली की वजह से देश में अपने वित्तीय भविष्य को लेकर सकारात्मक महसूस करते हैं जबकि वैश्विक औसत मात्र 56 फीसदी है। करीब 54 फीसदी निवेशक यह मानते हैं कि भारत रोजगार बाजार में बेहतर हो रहा है। जबकि इस संबंध में वैश्विक औसत 21 फीसदी के आसपास है। करीब 56 फीसदी निवेशक मानते हैं कि अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहतर हो रही है। जबकि वैश्विक औसत मात्र 22 फीसदी है।
 
22. विदेश यात्राओं से बन रहा सकारात्मक माहौल : जून 2014 से दिसंबर 2014 तक के आंकड़ों को पेश करते हुए दावा किया गया है कि दिसंबर 2014 को समाप्त हुए तिमाही के दौरान निवेश चार खरब की नई ऊंचाई पर पहुंच गया। निजी क्षेत्र में जून 2014 के दौरान कुल निवेश लगभग 45521.15 करोड़ रुपए के करीब था। यह दिसंबर 2014 के दौरान बढ़कर एक लाख 86 हजार 433 करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया। सरकारी क्षेत्र में निवेश की सीमा जून 2014 में करीब 40547.54 करोड़ रुपए थी। यह दिसंबर 2014 में बढ़कर दो लाख 20 हजार 784 करोड़ रुपए से ज्यादा के स्तर पर पहुंच गया। सरकार का मानना है कि प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं से बन रहे सकारात्मक माहौल से यह आंकड़ा लगभग दुगुना हो  सकता है।
 
23. विनिर्माण क्षेत्र में तेजी : विनिर्माण क्षेत्र में करीब तीन फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। विनिर्माण क्षेत्र का विस्तार जनवरी 2014 के 0.3 प्रतिशत की तुलना में जनवरी 2015 में 3.3 फीसदी पर पहुंच गया है। बीते महीनों में यह रुझान बना हुआ है। इस क्षेत्र में वर्ष 2013-14 में कुल वृद्धि 5.3 फीसदी थी जो वर्ष 2014-15 में बढ़कर 6.8 फीसदी पहुंच गई। 
 
निर्माण क्षेत्र में भी यह दर 2.5 फीसदी से बढ़कर 4.5 फीसदी हो गई। सरकार का दावा है कि गतिविधियों और नए आर्डर में तेजी से वृद्धि के संकेत हैं। कारोबारी गतिविधियों में भी ठोस विस्तार का संकेत नजर आ रहे हैं।
 
24. बदले माहौल में पटरी पर लौटी अर्थव्यवस्था : अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत के आर्थिक आउटलुक को स्थिर से सकारात्मक करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा किए जा रहे उपायों पर एक तरह से भरोसा व्यक्त किया है। यह दिखाता हैकि भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और उसे गति देने के लिए केंद्र सरकार सही दिशा में कदम उठा रही है।
 
राजग सरकार ने विकास का एक बेहतर खाका देश के सामने रखा है, जिससे उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दो साल में जीडीपी की विकास दर के मामले में भारत चीन को पीछे छोड़ देगा। हालांकि मूडीज ने फिलहाल रेटिंग में कोई बदलाव नहीं किया है और यह अब भी बीएए3 ही है, लेकिन इस बात के संकेत जरूर दिए हैं कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं में अपेक्षित सुधार हुआ तो 12-18 महीनों में वह रेटिंग को सुधारेगी।
 
मूडीज ने तीन साल पहले भारत की रेटिंग घटा दी थी, जब देश में एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे थे। महंगाई चरम पर थी। चालू खाता में घाटा के साथ-साथ बढ़ता राजकोषीय घाटा सरकार के लिए चिंता का सबब बना हुआ था। अब मूडीज ने भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति अपना दृष्टिकोण बेहतर किया है, तो उसकी वजह मोदी सरकार की ओर से आर्थिक सुधार की दिशा में उठाए कदम हैं। भारत ने अन्य देशों की तुलना में जीडीपी विकास की ऊंची दर हासिल की है।
 
मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जनसंख्या की अनुकूल संरचना, आर्थिक विविधता, अधिक बचत और निवेश के कारण भारत की विकास दर बीते दशक में समान रेटिंग वाले देशों के मुकाबले अधिक रही। अभी कुछ ही दिन पहले दिग्गज रेटिंग एजेंसी फिच ने भी चालू वित्त वर्ष में भारत की विकास दर के आठ फीसदी होने की संभावना जताई थी। रेटिंग का महत्व इसलिए है कि तमाम निवेशक किसी भी देश की रेटिंग देखकर ही वहां निवेश का फैसला लेते हैं। अभी तकनीकी तौर भारत की रेटिंग बीएए3 है। यह निवेश ग्रेड की सबसे निचली रेटिंग है।
 
इस श्रेणी का मतलब है कि उस देश में निवेश किया जा सकता है, इस पर जोखिम बहुत ज्यादा नहीं है। दूसरी रेटिंग एजेंसियों स्टेंडर्ड एंड पुअर्स यानी एसएंडपी और फिच ने भी भारत को इसी श्रेणी के समतुल्य रेटिंग दी है। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के दस माह बाद की स्थितियों पर नजर डालें तो पाते हैं कि सरकार की सजगता और नीतिगत फैसलों के कारण महंगाई अभी नियंत्रण में है। राजकोषीय घाटा को बेहतर आर्थिक प्रबंधन से काबू में किया जा रहा है।
 
भ्रष्टाचार और घोटाले का कहीं नाम नहीं है। साथ ही नीतिगत फैसले लेने में भी तेजी आई है। भारतीय अर्थव्यवस्था को सबसे ज्यादा फायदा अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों में आई तेज गिरावट से मिला है। हालांकि अभी भी अर्थव्यवस्था के सामने ढेर सारी चुनौतियां बरकरार हैं, जिनकी ओर मूडीज ने भी इशारा किया है। बेमौसम बारिश से कृषि को नुकसान पहुंचा है, उससे महंगाई में वृद्धि की आशंका जताई जा रही है। केंद्र व राज्य सरकारों पर अभी भी भारी कर्ज है। ढांचागत क्षेत्र पर दबाव साफ देखा जा सकता है। वहीं बैंकों में फंसे कर्ज के मामले बढ़ रहे हैं। लिहाजा, सुधारवादी एजेंडे को आगे बढ़ते हुए केंद्र सरकार को इन कमजोरियों को दूर करने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
 
25. 'मेक इन इंडिया' की सफलता : मेक इन इंडिया के नारे के साथ भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को निर्माण, व्यापार और वैश्विक अर्थव्यवस्था का केन्द्र बनाने की ओर एक बड़ी शुरुआत की है। लेकिन इस लक्ष्य पूरा करने के लिए इन बिंदुओं पर ध्यान देना जरूरी है।
 
प्रधानमंत्री ने फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के बजाए एफडीआई की एक नई परिभाषा गढ़ते हुए इसे 'फर्स्ट डेवलप इंडिया' बताया। सबसे तेजी से विकास कर रही वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में से एक देश भारत को दुनिया भर में निवेश के लिहाज से टॉप 3 देशों में रखा गया है। 1991 से ही निवेशकों को आकर्षित करने के लिए विदेशी निवेश के तरीके आसान बनाने पर काम हो रहा है और अब मोदी सरकार का भी इस पर खास जोर है।
 
26 . निश्चित टैक्स व्यवस्था : अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने भारत दौरे में प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुलाकात में भी एक बेहतर टैक्स सिस्टम की जरूरत पर जोर दिया था।  टैक्स तंत्र को लेकर स्पष्टता ना होने के कारण कई विदेशी कारोबारी भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को लेकर परेशानी उठाते हैं। इससे देश में विदेशी निवेश की प्रचुर संभावनाओं वाले क्षेत्र होते हुए भी उतना निवेश हो नहीं पाता। 
 
मेक इन इंडिया अभियान में कौशल विकास के क्षेत्र में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के मॉडल का समर्थन किया गया है. भारत की करीब 65 फीसदी आबादी 35 साल से कम की है, जिनमें सही कौशल विकसित करके उन्हें देश के विकास में बेहद अहम भागीदार बनाया जा सकता है।
 
27.बौद्धिक संपदा : एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत में संभावित निवेशक अपनी बौद्धिक संपदा की सुरक्षा को लेकर चिंता जताते रहे हैं. मेक इन इंडिया अभियान में भारत सरकार दुनिया भर के नवीन आविष्कारकों और निर्माताओं के अधिकार सुरक्षित रखने के लिए कानूनी और नीतिगत स्तर पर बदलाव ला रही है।