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Written By भाषा

समर्थन पत्र भी आरटीआई के दायरे में

समर्थन पत्र भी आरटीआई के दायरे में -
केन्द्रीय सूचना आयोग ने केन्द्र में सरकार के गठन के लिए राजनीतिक पार्टियों द्वारा राष्ट्रपति को सौंपे जाने वाले समर्थन पत्रों को भी सूचना के अधिकार के दायरे में शामिल किया है।

सीआईसी ने हाल में लिए गए फैसले में कहा है कि विभिन्न सियासी दलों द्वारा राष्ट्रपति को उपलब्ध कराई गई सूचनाओं को ‘आपसी विश्वास’ के आधार पर दी गई जानकारी बताकर सूचना के अधिकार कानून के दायरे में लाए जाने से इनकार नहीं किया जा सकता।

केरल के एक अधिवक्ता टी. आसफ अली ने वर्ष 2007 में सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम, राष्ट्रीय जनता दल तथा गठबंधन के अन्य सहयोगियों द्वारा केन्द्र में मनमोहनसिंह की अगुवाई में संप्रग सरकार को समर्थन के सिलसिले में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को सौंपे गए समर्थन पत्रों की प्रतिलिपि माँगी थी।

मुख्य लोक सूचना अधिकारी ने अली को हालाँकि यह सूचना देने से इनकार कर दिया था। राष्ट्रपति के प्रथम अपीलीय प्राधिकार द्वारा सूचना देने से मना किए जाने के बाद अली ने इस सिलसिले में सीआईसी के समक्ष दूसरी अपील दायर की थी।

मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने इस अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचनाओं को आपसी विश्वास के संबंध से उत्पन्न बात नहीं कहा जा सकता लिहाजा इस मामले में धारा आठ 1ई लागू नहीं होती।

हबीबुल्ला ने मुख्य लोक सूचना अधिकारी को आवेदक अधिवक्ता को वांछित जानकारी 15 दिन के अंदर उपलब्ध कराने के निर्देश भी दिए। उन्होंने अपने आदेश में कहा कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा सौंपे गए समर्थन पत्रों पर कार्रवाई करने की राष्ट्रपति की शक्ति उनके विवेक के अधीन है लिहाजा इन पत्रों को आपसी विश्वास के आधार पर सौंपे गए दस्तावेज बताने की दलील सही नहीं है।

उन्होंने अली की इस दलील पर भी सहमति व्यक्त की कि समर्थन पत्र देने वाली पार्टियों ने खत के मजमून को खुद मीडिया के सामने जाहिर किया था इसलिए इसमें गोपनीयता का कोई सवाल ही नहीं उठता।