शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. »
  3. समाचार
  4. »
  5. राष्ट्रीय
Written By वार्ता

मनमोहन सिंह फिर बने देश के 'किंग'

मनमोहन सिंह फिर बने देश के ''किंग'' -
आर्थिक सुधारों के जनक एवं देश को परमाणु वनवास से उबारने वाले कुशल प्रशासक मनमोहनसिंह लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री का दायित्व संभालने जा रहे हैं।

एक मँजे हुए अर्थशास्त्री के रूप में भारत में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी साख है तथा मौजूदा विश्व आर्थिक मंदी के दौर में विश्व नेता डॉ.सिंह की राय को तवज्जो देते हैं।

लोकसभा चुनाव 2009 में मिली जीत के बाद वह जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बन गए हैं जिन्हें पांच वर्षो का कार्यकाल सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला है।

उन्होंने 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में वित्त मंत्री के रूप में भी कार्य किया है। वित्तमंत्री के रूप में उन्होंने भारत में आर्थिक सुधारों की शुरुआत की।

डॉ. सिंह का प्रिय कथन है 'उस विचार को हकीकत में आने से नहीं रोका जा सकता जिसका समय आ गया है। इसी सोच के आधार पर उन्होंने मिश्रित अर्थव्यवस्था वाले एक समाजवादी देश को खुली उदारवादी अर्थव्यवस्था की ओर मोड़ दिया। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने विदेश नीति को भी नई दिशा दी तथा अमेरिका का सहयोग हासिल कर देश को 30 वर्ष से कायम परमाणु वनवास से बाहर निकाला।

डॉ. सिंह को सही मायनों में एक विचारक और विद्वान के रूप में जयजयकार मिली है। अपनी कर्मठता और कार्य के प्रति अपने शैक्षणिक दृष्टिकोण के साथ साथ स्पष्टवादिता और आडंबरविहीन आचरण के लिए जाने वाले डॉ.सिंह का जन्म 26 सितम्बर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गांव गाह में हुआ था, जो इस समय पाकिस्तान में है।

उन्होंने वर्ष 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिकुलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनके शैक्षणिक जीवन ने उन्हें पंजाब से कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय पहुँचाया, जहाँ उन्होंने वर्ष 1957 में अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी में स्नातक डिग्री हासिल की। इसके पश्चात वर्ष 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नफील्ड कालेज से अर्थशास्त्र में डीफिल किया।


डॉ. सिंह ने अपनी पुस्तक 'इंडियाज एक्सपोर्ट ट्रेन्डस एण्ड प्रोस्पेक्टस फार सेल्फ सस्टेन्ड ग्रोथ में भारत के आंतरिक व्यापार पर केन्द्रित नीति की प्रारंभिक समीक्षा की थी। यह पुस्तक इस संबंध में पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है।

डॉ. सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की। वह पंजाब विश्वविद्यालय और बाद में प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में प्राध्यापक रहे। इसी बीच वह अंकटाड सचिवालय में सलाहकार भी रहे और 1987 तथा 1990 में जेनेवा में संयुक्त कमिशन में सचिव रहे। 1971 में डॉ. सिंह को वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार तथा 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया।

इसके बाद के वर्षो में वह योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष रहे।

भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षो में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब डॉ. सिंह 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री रहे। उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना जाता है।

डॉ. सिंह के शैक्षणिक प्रमाणपत्रों का सही उपयोग उन वर्षो के दौरान हुआ, जब उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय के संकाय में प्रतिस्थित दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में कार्य किया। इन वर्षो के दौरान उन्हें इन कटैड (यूएनसीटीएडी) सचिवालय में भी एक निश्चित और संक्षिप्त कार्य किया।

डॉ. सिंह को उनके सार्वजनिक जीवन में प्रदान किए गए कई पुरस्कारों और सम्मानों में देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण, भारतीय विज्ञान कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार (1995), वर्ष के वित्त मंत्री के लिए एशिया मनी अवॉर्ड (1993 और 1994), वर्ष के वित्त मंत्री का यूरो मनी अवॉर्ड (1993), क्रैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का एडम स्मिथ पुरस्कार (1956) और कैम्ब्रिज में सेंट जान्स कालेज में विशिष्ट कार्य के लिए राईटर्स पुरस्कार (1995) प्रमुख थे। डॉ. सिंह को जापानी निहोन कीजई शिमबन सहित अन्य कई संस्थाओं से भी सम्मान प्राप्त हो चुका है।

डॉ. सिंह ने कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भारत का प्रतिनिधत्व किया है। उन्होंने साइप्रस में आयोजित सरकार के राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक (1993) में और वर्ष 1993 में वियना में आयोजित मानवाधिकार पर विश्व सम्मेलन में भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया है।

अपने राजनीतिक जीवन में डॉ.सिंह वर्ष 1991 से भारत के संसद और ऊपरी सदन (राज्यसभा) के सदस्य रहे हैं, जहां वह वर्ष 1998 और 2004 के दौरान विपक्ष के नेता थे। उनकी की तीन पुत्रियाँ हैं।

डॉ सिंह के जीवन के महत्वपूर्ण पडाव इस प्रकार है -

1957 से 1965 चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में अध्यापक

1969 से 1971 दिल्ली स्कूल आफ इकोनोमिक्स में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रोफेसर

1976 दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मानद प्रोफेसर

1982 से 1985 भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर

1985 से 1987 योजना आयोग के उपाध्यक्ष

1987 पद्मविभूषण से सम्मानित

1990 से 1991 भारतीय प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार

1991 नरसिंहराव सरकार में वित्त मंत्री

1991 असम से राज्यसभा के सदस्य

1995 दूसरी बार राज्यसभा के सदस्य

1996 दिल्ली स्कूल आफ इकोनामिक्स में मानद प्रोफेसर

1999 दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लडा लेकिन हार गए

2001 तीसरी बार राज्यसभा सदस्य और सदन में विपक्ष के नेता

2004 भारत के प्रधानमंत्री

2009 दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री