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कानून के बेलगाम इस्तेमाल पर कोर्ट की रोक

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कानून के बेलगाम इस्तेमाल पर कोर्ट की रोक - कानून के बेलगाम इस्तेमाल पर कोर्ट की रोक
सुप्रीम कोर्ट ने आज सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कमेंट करने के मामले में लगाई जाने वाली आईटी एक्ट की धारा 66 ए को रद्द कर दिया है। इस मसले पर लंबी सुनवाई के बाद 27 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
 
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भी कई बार इस धारा पर सवाल उठाए थे। वहीं केंद्र सरकार ने एक्ट को बनाए रखने की वकालत की थी। केंद्र ने कोर्ट में कहा था कि इस एक्ट का इस्तेमाल गंभीर मामलों में ही किया जाएगा। 2014 में केंद्र ने राज्यों को एडवाइजरी जारी कर कहा था कि ऐसे मामलों में बड़े पुलिस अफ़सरों की इजाज़त के बगैर कार्रवाई न की जाए। लेकिन कई मामलों में पुलिस ने प्रभावशाली लोगों के दबाव में न केवल कुछ लोगों पर मुकदमा दायर किया था वरन उनकी गिरफ्तारी तक की थी। 
 
उल्लेखनीय है कि 2013 में पालघर, महाराष्ट्र में दो लड़कियों को शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे पर सोशल मीडिया में आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इस मामले में श्रेया सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। बाद में कुछ गैर सरकारी संगठनों (एनजीओज) ने भी इस एक्ट को गैरकानूनी बताते हुए इसे खत्म करने की मांग की थी।
 
कुछ दिन पहले यूपी के शहरी विकास मंत्री आजम खान पर पोस्ट करने वाले कक्षा 11 के एक छात्र को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था और पुलिस की इस कार्रवाई की वैधता पर सवाल उठाए थे। 
 
अब सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) के प्रावधानों में से एक धारा 66ए को निरस्त कर दिया। यह धारा वेब पर अपमानजनक सामग्री डालने पर पुलिस को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की शक्ति देती थी। अक्सर यह देखा गया है कि प्रभावशाली लोगों के खिलाफ वेब पर कोई टिप्पणी या पोस्ट पुलिस को गिरफ्तारी का अधिकार देती थी।  
 
लेकिन अब यह साफ हो गया है कि कानून की धारा 66 ए के तहत ना तो कोई केस दर्ज होगा और ना ही किसी की गिरफ्तारी हो सकेगी। यानी सोशल मीडिया पर किसी पोस्ट को लेकर किसी की गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी।
 
कोर्ट का कहना है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए से लोगों की जानकारी का अधिकार सीधा प्रभावित होता है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए संविधान के तहत उल्लिखित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को साफ तौर पर प्रभावित करती है। कोर्ट ने प्रावधान को अस्पष्ट बताते हुए कहा, ‘किसी एक व्यक्ति के लिए जो बात अपमानजनक हो सकती है, वह दूसरे के लिए नहीं भी हो सकती है।’
 
इस कानून के तहत गिरफ्तारी के प्रावधान को कोर्ट में चुनौती दी गई थी। यह याचिका श्रेया सिंघल ने दायर की थी जिसपर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया। याचिकाकर्ता श्रेया सिंघल ने कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बेहद खुश हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66ए को निरस्त करते हुए इस धारा को संविधान का उल्लंघन करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह धारा मूल अधिकार का उल्लंघन है।
 
विदित हो कि इस धारा के तहत पुलिस को इस बात का अधिकार था कि वह किसी व्यक्ति को आपत्तिजनक ऑनलाइन कंटेंट के लिए गिरफ्तार कर सकती थी। इस तरह के मामलों में आरोपी को तीन साल की सजा भी हो सकती थी। पर अब ऐसा नहीं होगा।
 
इस मामले के दौरान केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने दलील दी थी कि आईटी एक्ट की विवादास्पद धारा 66-ए से किसी भी प्रकार से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित नहीं होती है। साथ ही कहा कि कुछ अधिकारियों की मनमानी का अर्थ यह नहीं है कि काननून यह खराब प्रावधान है। लेकिन व्यवहारिक तौर पर इसके दुरुपयोग के कई उदाहरण सामने आए और संबंधित राज्यों की सरकारों ने भी माना कि इस तरह की कार्रवाई अनावश्यक और जल्दबाजी में की गई थी। महाराष्ट्र की प्रदेश सरकार ने भी  कहा था कि इस कदम को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है।
 
लेकिन केन्द्र सरकार के संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने अपने हलफनामे में आईटी एक्ट की धारा 66-ए का बचाव किया। हलफनामे में मंत्रालय ने कहा है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(1) में दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर नियंत्रण नहीं लगाता है क्योंकि यह पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान नहीं करता है बल्कि कुछ तर्कसंगत प्रतिबंध लगाता है।
 
मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की अनुमति के बिना धारा 66-ए के तहत कोई गिरफ्तारी नहीं करने का निर्देश जारी किया है। इससे भविष्य में किसी भी व्यक्ति की गैरजरूरी गिरफ्तारी की संभावना समाप्त हो जाएगी। मंत्रालय ने देश में इंटरनेट उपभोक्ताओं के विवरण और इसके दुरुपयोग के खतरे के बारे में भी सर्वोच्च न्यायालय को अवगत कराया। लेकिन कुछ समय पहले ही उप्र के एक मंत्री के खिलाफ पोस्ट करने पर कक्षा 11 वीं के एक छात्र की गिरफ्तारी की गई थी जिससे यह साफ हो जाता है कि इस प्रावधान के दुरुपयोग की संभावना समाप्त नहीं होती अगर सु्प्रीम कोर्ट इसे रद्द नहीं करता।  
 
उल्लेनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 30 नवंबर 2012 को केंद्र सरकार से आईटी एक्ट की धारा 66ए के दुरुपयोग और इसमें संशोधन पर जवाब तलब किया था। इसके साथ ही कोर्ट ने दो लड़कियों की गिरफ्तारी की परिस्थितियों पर महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा था। इसके अलावा सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी सरकार को भी नोटिस जारी किया था।
 
अगले पन्ने पर...क्या थी धारा 66-ए

धारा 66-ए के तहत यदि कोई व्यक्ति कंप्यूटर या संचार उपकरण के जरिए ऐसी कोई सूचना भेजता है जो बहुत ही आपत्तिजनक या भयभीत करने वाली हो तो उसे तीन साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के खिलाफ सोशल मीडिया में आपत्तिजनक टिप्पणी पोस्ट करने वाले एक इंटरनेट यूजर को गिरफ्तार किया गया था। इस कार्रवाई को कांग्रेस शासित पुडुचेरी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जायज ठहराया था। सरकार ने सर्वोच्च अदालत से कहा है कि सीबीसीआई पुलिस ने जांच में पाया कि आरोपी का इरादा आपराधिक, जानबूझकर आपत्तिजनक और गलत संदेश ट्विटर पर लिखने का था ताकि इसके जरिए केंद्रीय मंत्री और उनके परिजनों को जनता में बेइज्जती हो।
 
सर्वोच्च अदालत में पुडुचेरी सरकार की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे में कहा गया है कि आरोपी राम श्रीनिवासन ने केंद्रीय मंत्री और उनके परिजनों के खिलाफ सोशल मीडिया में अभियान चला रखा था। इस दौरान उसकी शिकायत मंत्री के पुत्र की ओर से की गई। शुरुआती जांच के बाद उसके खिलाफ सूचना एवं प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66ए के तहत मामला दर्ज किया गया। 
 
इसके बाद उसे गिरफ्तार किया गया और उसी दिन निचली अदालत से उसे जमानत प्रदान कर दी गई। हलफनामे में कहा गया है कि इस कार्रवाई में किसी भी तरह से कानून का उल्लंघन नहीं किया गया है। केंद्र शासित सरकार की ओर से इस मामले में नागरिक अधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं किया है।
 
पुडुचेरी सरकार ने कहा है कि आईटी एक्ट की धारा 66-ए असंवैधानिक नहीं है, क्योंकि इसके जरिए सोशल मीडिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित नहीं किया गया है। लेकिन समाज में गलत, आक्रामक, आपत्तिजनक और अफवाह फैलाने वाले संदेशों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए किया गया है।
 
राज्य सरकारों की ओर से तर्क दिया गया यदि इस प्रावधान को हटा दिया जाएगा तो सोशल मीडिया में गलत संदेशों की बाढ़ आ जाएगी और ऐसे में इन पर काबू करना मुमकिन नहीं रह जाएगा। लेकिन इस मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साइबर कानून की व‌िवादित धारा 66ए को रद्द कर दिया। सोशल मीडिया पर ‌टिप्‍पणी करने के मामले पुलिस अब आननफानन गिरफ्तारी नहीं कर सकेगी। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि आईटी एक्ट की धारा 66ए संव‌िधान के अनुच्छेद 19(2) के अनुरूप नहीं है।
 
उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 19(2) नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता का ‌अधिकारी देती है। सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसला 66ए समेत कुछ अन्य धाराओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनाया है। इस फैसले से पहले आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने पर पुलिस किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती थी, जिसकी संवैधानिक वैधता को कई लोगों ने चुनौती दी थी। इस मुद्दे पर सरकार की ओर से तर्क पेश किए जाने के बाद न्यायाधीश जे.चेलमेश्वर और न्यायाधीश आर.एफ. नरीमन की पीठ ने 26 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
 
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66ए को रद्द करते हुए कहा कि कि ये धारा सीधे तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को झटका है। हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में साफतौर से कहा है कि सोशल साइट पर बेलगाम होकर कुछ नहीं लिखेंगे। कुछ लिखने या पोस्ट करने से पहले विचार करना जरूरी होगा।
 
हालांकि सरकार की ओर से सुनवाई के दौरान कोर्ट में तर्क दिया गया था कि अगर ये एक्ट खत्म होता है तो इसके दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाएगी। इस फैसले के आने से पहले धारा 66ए के तहत सोशल नेटवर्किग साइट्स पर विवादास्पद पोस्ट डालने पर तीन साल तक की कैद का प्रावधान था।
 
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट की ओर से आए इस फैसले के बाद किसी की भी आनन-फानन में गिरफ्तारी नहीं होगी जिसकी मांग याचिकाकर्ताओं की ओर से की गई थी। हालांकि कोर्ट ने बेलगाम होकर लिखने या पोस्ट करने से पहले विचार करने का आग्रह किया है जोकि एक स्वागतयोग्य कदम है।