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Last Updated :नई दिल्ली , शनिवार, 30 मई 2015 (17:53 IST)

केदारनाथ आपदा : लोग मर रहे थे और अधिकारी ‘तर माल’ उड़ा रहे थे...

केदारनाथ आपदा  : लोग मर रहे थे और अधिकारी ‘तर माल’ उड़ा रहे थे... - Uttarakhand  floods
नई दिल्ली। उत्तराखंड में साल 2013 में आई विनाशकारी बाढ़ में फंसे लाखों लोगों को जहां पीने के लिए पानी तक मयस्सर नहीं था, वहीं बाढ़ राहत कार्यो की निगरानी में लगे राज्य सरकार के अधिकारियों ने रोजाना हजारों रुपए का तर माल उड़ाया।
बाढ़ पीड़ित दाने-दाने को मोहताज थे और ये अधिकारी होटलों में बैठकर मटन चाप, चिकन, दूध, पनीर और गुलाम जामुन खाते हुए राहत और बचाव कार्यो की निगरानी में व्यस्त थे।
 
आधा लीटर दूध के लिए 194 रूपए और दोपहिया वाहनों के लिए डीजल की आपूर्ति, होटल प्रवास के लिए प्रति दिन सात हजार रुपए का क्लेम करने, एक ही व्यक्ति को दो बार राहत का भुगतान, लगातार तीन दिन तक एक ही दुकान से 1800 रेनकोट की खरीद और ईंधन खरीद के लिए एक हेलिकाप्टर कंपनी को 98 लाख रुपए का भुगतान करने जैसी बड़ी-बड़ी वित्तीय गड़बड़ियों का खुलासा एक आरटीआई आवेदन के जरिए हुआ है।
 
उत्तराखंड के भीषण प्राकृतिक आपदा की चपेट में रहने के दौरान हुई इन कथित अनियमितताओं का संज्ञान लेते हुए राज्य के सूचना आयुक्त अनिल शर्मा ने सीबीआई जांच की सिफारिश की है।
 
शिकायतकर्ता और नेशनल एक्शन फोरम फोर सोशल जस्टिस के सदस्य भूपेन्द्र कुमार की शिकायत पर सुनवाई करते हुए जारी 12 पन्नों के आदेश में शर्मा ने आरटीआई आवेदनों के जवाब में विभिन्न जिलों द्वारा उपलब्ध कराए गए बिलों का संज्ञान लिया है। 
 
इन आरटीआई आवेदनों में प्राकृतिक आपदा के दौरान राहत कार्यो में खर्च किए गए धन का ब्यौरा मांगा गया था। भीषण बाढ़ में तीन हजार लोग मारे गए थे और बहुत से अभी भी लापता हैं।
 
अधिकारियों द्वारा उपलब्ध करवाए गए रिकॉर्ड के अनुसार कुछ राहत कार्य 28 दिंसबर, 2013 को शुरू होकर 16 नवंबर, 2013 को समाप्त हो गए। पिथौरागढ़ में कुछ राहत राहत कार्य 22 जनवरी, 2013 को शुरू हुए थे यानी बाढ़ आने से छह माह पहले ही। बाढ़ 16 जून, 2013 को आई थी। 
 
शर्मा ने अपने आदेश में कहा, ‘अपीलकर्ता द्वारा पेश रिकॉर्ड से आयोग प्रथम दृष्टया मानता है कि शिकायतकर्ता की अपील और अन्य दस्तावेज उत्तराखंड के मुख्य सचिव के पास इस निर्देश के साथ भेजे जाएं कि ये बातें मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाई जाएं ताकि वह इन आरोपों पर सीबीआई जांच शुरू करने पर निर्णय ले सकें।’ 
 
अपनी आरटीआई याचिकाओं पर जवाब में अधिकारियों से मिले 200 से अधिक पृष्ठों के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कुमार ने एसआईसी में सुनवाई के दौरान दावा किया कि एक ओर जहां लोग खुले आसमान के नीचे भूख से बिलबिला रहे थे तो वहीं बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित रूद्रप्रयाग जिले में अधिकारियों ने नाश्ते के लिए 250 रुपए, लंच के लिए 300 रुपए और डिनर के लिए 350 रुपए के क्लेम पेश किए। यानी रोजाना 900 रूपए केवल खाने पर।
 
इन अधिकारियों ने राहत कार्यो की निगरानी के लिए होटल प्रवास के दौरान प्रति रात्रि 6750 रुपए के दावे भी पेश किए। कुमार ने इस ‘बेहिसाब खर्च’ पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि प्रति अधिकारी प्रति दिन करीब 7000 रुपए का खर्च आया।
 
उन्होंने सुनवाई के दौरान रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा कि उन वाहनों के लिए 30 लीटर और 15 लीटर डीजल के बिल दिए गए हैं, जिन पर स्कूटर, मोटरसाइकिल और तिपहिए वाहनों के नंबर थे जबकि ये वाहन पेट्रोल से चलते हैं और इनके ईंधन के टैंक इतने बड़े नहीं होते, जितनी मात्रा बिलों में दर्शायी गई।
 
कुमार ने यह दर्शाने के लिए भी रिकॉर्ड पेश किए कि चार दिनों के लिए 98 लाख रुपए का ईंधन बिल हेलीकॉप्टर कंपनी के लिए मंजूर किया गया। उन्होंने कहा, ‘ऐसे भी उदाहरण हैं जब अधिकारियों के होटल में ठहरने की अवधि 16 जून, 2013 को बाढ़ आने से पहले के रूप में दर्शायी गई है। 
 
आधा लीटर दूध की कीमत 194 रुपए दिखाई गई है जबकि बकरे का गोश्त, मुर्गी का मांस, अंडे, गुलाब जामुन जैसी चीजें भी बाजार दाम से बहुत उंची दरों पर खरीदी दिखाई गई हैं।’  (भाषा)