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Last Updated : मंगलवार, 6 अक्टूबर 2015 (15:23 IST)

हिन्दू विरोधी था टीपू सुल्तान, क्या है हकीकत...

हिन्दू विरोधी था टीपू सुल्तान, क्या है हकीकत... - Tipu sultan
मैसूर के शेर कहलाने वाले टीपू सुल्तान की ऐतिहासिक भूमिका को लेकर दो तरह की बातें कही जाती हैं, लेकिन फिलहाल टीपू पर बनने वाली एक फिल्म को लेकर विरोध शुरू हो गया है। ऐसी संभावना है कि इस फिल्म में टीपू सुल्तान की भूमिका दक्षिण के महानायक रजनीकांत कर सकते हैं। विरोध करने वाले चाहते हैं कि रजनीकांत यह भूमिका न करें, क्योंकि टीपू तमिल और हिन्दू विरोधी था। 
टीपू का विरोध करने वाले इतिहासकारों का कहना है कि वह औरंगजेब की तरह कट्‍टर सांप्रदायिक था और हिंदुओं का सबसे बड़ा दुश्मन भी। लेकिन टीपू समर्थक इतिहासकारों का दावा है कि कर्नाटक-तमिलनाडु का जो हिस्सा उसके अधिकार में रहा, उसमें उसने ऐसा कुछ नहीं किया जो कि दर्शाता हो कि वह किसी वर्ग विशेष के प्रति बैर भाव रखता हो।
 
तमिलनाडु के थेनी जिले के कोम्बाई कस्बे में भगवान रंगनाथास्वामी का मंदिर है जिसमें उत्सवों के दौरान बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं एवं पुरुष भाग लेते हैं। कहा जाता है कि यह मूर्ति टीपू सुल्तान ने श्रीरंगपट्‍टनम से भेजी थी जो कि आजकल कर्नाटक में है, लेकिन तब यह मैसूर सुल्तनत की राजधानी हुआ करती थी। 
 
जानकार इतिहासकारों का कहना है कि जब हैदर अली और टीपू सुल्तान दक्षिण पर हमले कर रहे थे तब कोम्बाई के जमींदारों ने टीपू सुल्तान की सेना के लिए प्रशिक्षित  कोम्बाई कुत्तों को मदद के लिए भेजा था जो कि दुश्मनों के घोड़ों को चीर फाड़ सकते थे। कोम्बाई के जमींदार कन्नड भाषी वोक्कालिगा थे और उनके इस भाव से प्रभावित होकर सुल्तान ने भगवान रंगनाथस्वामी की मूर्ति को भेजा था।  
 
फोर्ट सेंट जॉर्ज में सेंट मैरी के एक चर्च में ब्रिटिशकालीन पट्‍टिका लगी हुई है जिसमें कहा गया है कि टीपू सुल्तान ईसाई पादरियों को लेकर बहुत उदार था। यह बात उन लोगों ने लिखी है जो कि टीपू सुल्तान के कट्‍टर दुश्मन थे। टीपू सुल्तान और उसके पिता हैदर अली ने आज के तमिलनाडु के उन ब्रिटिश सम्पत्तियों पर हमले किए थे जो कि उत्तरी आर्काट, एम्बुर, तिरुवन्नमलाई, डिंडीगुल, सलेम, इरोड, कोयम्बटूर, तंजावुर और अन्य हिस्सों से किए गए थे। सत्रहवीं सदी के अंत में अंग्रेजों और मैसूर रियासत के बीच चार युद्ध लड़े गए थे।
 
ऐसी पहली लड़ाई (1767-69) में हुई थी जिसके दौरान हैदर अली मद्रास के दरवाजों तक पहुंच गया था और ब्रिटिश सेना से संधि के बाद लौट आया था। उस समय टीपू के साम्राज्य में पश्चिमी तमिलनाडु के बड़े हिस्से शामिल थे, लेकिन आर्काट के नवाब और ट्रावनकोर के राजाओं ने टीपू के खिलाफ अंग्रेजों का साथ दिया था।
टीपू की अंग्रेजों के खिलाफ यह थी सबसे बड़ी जीत... पढ़ें अगले पेज पर...
 
 
 

अंग्रेजों के खिलाफ टीपू की सबसे बड़ी जीत सितंबर, 1780 में हुई थी जब कांचीपुरम के पास पॉलीलूर की लड़ाई में चीनी फायरवर्क्स तकनीक का इस्तेमाल किया था। उस समय दुनिया में पहला वेपनाइज्ड रॉकेट्‍स थे, जिन्हें विलियम बेली के नेतृत्व वाली ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना पर इस्तेमाल किया गया था। इससे पहले अंग्रेजों ने कभी ऐसे रॉकेट्‍स नहीं देखे थे जो कि लोहे की ट्‍यूब में प्रोपेलेंट्स के सहारे दो किलोमीटर तक मार करते थे। 
इतिहास में दर्ज है कि इन रॉकेटों की बौछार से ब्रिटिश कंपनी के हथियार गोदामों में आग लग गई थी और तब अंग्रेजों को भारत में सबसे ज्यादा बुरी हार देखनी पड़ी थी। वास्तव में टीपू की लड़ाई ब्रिटिश और उन नवाबों व मराठों से थी जो कि अंग्रेजों का साथ देते थे। दुनिया की पहली वेपनाइज्ड चाइनीज फायरवर्क्स तकनीक के सहारे हैदर अली और टीपू ने अंग्रेजों को हराने की सामर्थ्य हासिल की थी।
 
हैदर अली की सेना में जहां 1200 रॉकेट चलाने वाले सैनिक थे वहीं टीपू सुल्तान की सेना में इनकी संख्या पांच हजार के करीब थी। लड़ाई के दौरान पकड़े गए दुश्मन के सैनिकों को श्रीरंगपट्‍टनम भेजा जाता था, उन्हें इस्लाम कबूल करवाया जाता और तब उन्हें पैदल सेना में भर्ती किया जाता था। 
 
उस समय के तमाम शासक ऐसा ही करते थे और तब यह स्टेंडर्ड प्रोसीजर था और तमिलों, कूर्ग के कोडवाओं, मैंगलोर और मलाबार के ईसाई सैनिकों या ब्रिटिश सैनिकों के मामले में यह बात लागू थी क्योंकि टीपू का उद्देश्य अपनी ताकत बढ़ाना था। आज टीपू के इन कामों को तमिलों के खिलाफ माना जाता है लेकिन सच तो यह है कि उसकी कार्रवाई तमिलों या किसी भाषा, धर्म या क्षेत्र के खिलाफ न होकर ताकत और ब्रिटिश भूमि को लेकर थी।
 
हालांकि इतिहासकार यह भी कहते हैं कि टीपू ने मैसूर में कन्नड़ के स्‍थान पर फारसी को प्रशासनिक भाषा बनाकर इस्लाम को फैलाया, लेकिन ऐसे भी बहुत सारे उदाहरण हैं जिनके तहत उसने अपने क्षेत्र में आने वाले हजारों मंदिरों का संरक्षण किया। 
 
इस मठ का जीर्णोद्धार कराया था टीपू ने... पढ़ें अगले पेज पर...
 

टीपू और श्रृंगेरी मठ के प्रमुख के बीच 28 पत्र उपलब्ध हैं जिनसे पता लगता है कि अंग्रेज और मैसूर राज्य की तीसरी लड़ाई के बाद मराठों ने मठ को लूट लिया था, लेकिन मठ का पुनरोद्धार टीपू सुल्तान ने कराया था। 
 
कुछ इतिहासकारों ने टीपू को धर्मांध और क्रूर बताने का कोई मौका नहीं छोड़ा लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि टीपू अंग्रेजों के मार्ग का सबसे बड़ा रोड़ा था इसलिए अंग्रेजों ने उसे एक खलनायक की तरह पेश किया। सच बात तो यह है कि भारत में अंग्रेजों और उनकी ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज अपने दो सौ साल के इतिहास में अगर किसी से हारी है, तो वे मैसूर के सुल्तान ही थे। 
 
फिल्म को लेकर विवाद : बीदर, कर्नाटक के एक निर्दलीय विधायक तथा फिल्म निर्माता अशोक खेनी टीपू सुल्तान पर एक फिल्म बना रहे हैं जिसमें दक्षिण के मेगास्टार रजनीकांत मुख्य भूमिका में होंगे। टीपू सुल्तान की एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह अंग्रेजों के खिलाफ नेपोलियन तक का साथ पाने का इरादा रखता था। उसने भारत में पहली बार रॉकेटों का इस्तेमाल करना सिखाया।
 
उसका प्रधानमंत्री एक मुस्लिम था तो रक्षा मामलों का प्रभारी एक हिंदू था। इस फिल्म को लेकर दुष्प्रचार किया जा रहा है कि टीपू सुल्तान हिंदुओं का विरोधी था लेकिन अगर आप श्रीरंगपट्नम के विष्णु मंदिर के पुजारियों से बात करें तो उनका कहना था कि सुल्तान रोज सुबह मंदिर में दर्शन करने आता था। उसने एक लिंगायत मंदिर का भी निर्माण कराया था। अशोक खेनी का कहना है कि वास्तव में टीपू सुल्तान पर फिल्म बनाने का विचार ही रजनीकांत का था।