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ये हैं देश के सबसे बदनाम आदमखोर बाघ

ये हैं देश के सबसे बदनाम आदमखोर बाघ - tiger
देश बाघ टी 24 के आदमखोर होने या न होने को लेकर बड़ा बवाल मचा हुआ है लेकिन एक वक्त ऐसा था जब उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में भारत में बाघों की तादाद 40 हजार से भी ज्यादा थी। आदमखोर बाघों का इतिहास भारत में काफी पुराना है, लेकिन बाघ सरंक्षक के लिए किए गए इन प्रयासों की वजह से अब इस तरह के मामलों में भी बहुत कमी आई  है।
 
इन ऐतिहासिक मामलों को जानने के बाद हो सकता है बाघ टी24 को लेकर आपकी सोच बदल जाए क्योंकि आदमखोर बाघ एक बार इंसानों को मारना शुरू कर देता है तो फिर कभी इंसानों को मारना बंद नहीं करता। और टी24 ने 2012 के बाद में अब 2015 में इंसान पर हमला किया जो कि इसके आदमखोर होने के बजाय इंसानों को अपने घर से दूर रखने की कोशिश थी। लेकिन उस वक्त के आदमखोर बाघों की घटनाओं पर अगर गौर करें ये भी साफ हो जाएगा कि क्या वाकई टी24 आदमखोर है या नहीं आइए जानते हैं कौनसे बाघ हैं देश के सबसे बदनाम आदमखोर।
 
चंपावत की आदमखोर बाघिन : भारत के इतिहास में सबसे बदनाम आदमखोर चंपावत की बाघिन रही है जिसने कोई एक दो या दस बीस नहीं बल्कि 436 लोगों को मौत के घाट उतारा। पहले इस बाघिन ने नेपाल में लोगों को अपना शिकार बनाया उसके बाद इसे भारत की ओर खदेड़ दिया गया इसके बाद भारत में उत्तराखंड के चंवापत जिले में इस बाघिन ने आतंक मचाया इस बाघिन का खौफ इतना था कि रात अंधेरे में नहीं बलिक दिन दहाड़े लोगों का शिकार किया। इसे 1907 में विश्‍व विख्यात शिकारी और बाद में सरंक्षक बने जिम कार्बेट ने मारा था।

बिजनोर की 'लेडी किलर' : उन्नीसवीं सदी के अलावा पिछले साल 2014 में ही उत्तराखंड में बिजनोर की आदमखोर बाघिन की काफी दहशत रही। लेडी किलर ने नाम से फेमस हुई इस बाघिन ने 15 लोगों को अपना शिकार बनाया है। यह बाघिन इतनी शातिर है कि 50 कैमरा ट्रैप लगाने बावजूद भी अपनी एक भी झलक नहीं दी। इसी तरह पिछले साल ही एक बाघिन को 7 लोगों को मारने के कारण महाराष्ट्र के चंदरपुर में गोली मार दी गई थी।
 
अगले पन्ने पर... क्यों आदमखोर हो गया चौगढ़ का यह बाघ...

चौगढ़ का आदमखोर जोड़ा : भारत में  आतंक का पर्याय बने आदमखोर बाघों में चौगढ़ के आदमखोर जोड़े का भी नाम है। उत्तराखंड के कुमाऊ में करीब 64 लोगों को मौत के घाट उतारने वाले इस बाघ और बाघिन ने पांच साल तक अपना कहर बरपाया। करीब 1500 वर्गमील के क्षेत्र में इस बाघ-बाघिन ने इंसानों का शिकार किया। इन दोनों को भी जिम कार्बेट ने ही मारा था। इस बाघिन का शावक भी इसलिए आदमखोर हो गया था क्योंकि वो अपनी मां के साथ में मनुष्यों का मांस खाया करता था।
 
भीमशंकर का आदमखोर बाघ : महाराष्ट्र के पुणे के पास के जंगलों में दो साल तक भीमशंकर के आदमखोर ने लोगों को अपना शिकार बनाया इस मामले का खुलासा 1940 में लेखक सुरेशचंद्र वाघले ने किया जब वे पुणे के पास भीमशंकर क्षेत्र में पुलिस में कांस्‍टेबल की नौकरी कर रहे तब यह मामला सामने आया। इस बाघ ने करीब सौ लोगों को अपना निवाला बनाया। इस बाघ की खासियत ये थी इसके शिकार करने के बाद इंसान का नामोनिशान तक नहीं मिलता था। इसके शिकार में केवल दो लोगों के ही शरीर के ही अवशेष मिल पाए।
 
इस बाघ के शिकार के लिए कई बड़े शिकारियों को बुलाया गया, लेकिन ज्यादातर लोग नाकाम रहे। आखिर में अंबेगांव के इस्माइल नाम के शिकारी ने इस बाघ को आमने सामने हुए एक मुकाबले में मार गिराया, जिसमें खुद शिकारी मरते-मरते बचा था।

रुद्रप्रयाग का आदमखोर बघेरा : जिस तरह भारत के इतिहास में आदमखोर बाघों का खौफ रहा है उसी तरह बघेरे भी इस मामले में पीछे नहीं रहे। 1929 तक रुद्र प्रयास के आदमखोर बघेरे ने इतना आतंक मचाया कि लोग इसे दैवी विपत्ति मानने लगे थे। यह बघेरा इतना शातिर तेज शिकारी था कि लोगों को रात में घर से घसीटते हुए ले जाता और किसी को तिनका सरकने की की भी आवाज नहीं आने देता। 250 लोगों की मौत के जिम्मेदार इस बघेरे को जिम कॉर्बेट ने मौत के घाट उतारा। इसी तरह पानर के बघेरे के बारे में यह कहा गया कि उसने तो 400 लोगों को मौत के घाट उतारा।
आदमखोर बाघिन तारा की कहानी... अगले पन्ने पर...

आदमखोर बाघिन 'तारा' : दूधवा नेशनल पार्क की आदमखोर बाघिन तारा भी इंसान के शिकार को लेकर काफी बदनाम हुई। ब्रिटेन के जू से भारत लाए जाने के बाद इस बाघिन को बिली अर्जुनसिंह ने दूघवा के जंगल में छोड़ा था कि ये बाघिन जंगल में एक जंगली बाघिन की तरह जिंदगी गुजार सके, लेकिन ये बाघिन जंगल में जानवरों का शिकार करने में नाकाम रही और इंसानों का शिकार करना शुरू कर दिया। इस बाघिन को मार गिराए जाने से पहले इसने करीब 24 लोगों को अपना शिकार बना लिया था।
 
सिगर और मुंडाचिपल्लम का आदमखोर : नीलगिरी की पहाड़ियो में 1954 में सिगर के आदमखोर बाघ ने पांच लोगों को अपना शिकार बनाया। इस युवा बाघ को बीमारी के कारण अपने सामान्य शिकार पकड़ने में काफी परेशानी हो रही थी इसलिए यह आदमखोर हो गया था। तमिलनाडु में मुंडाचिपल्लम के आदमखोर बाघ ने भी सात लोगों को अपना शिकार बनाया इन दोनों बाघों को शिकारी केनथ एंडरसन ने मार गिराया था।
 
थाक की आदमखोर बाघिन : पूर्वी कुमाऊ डिविजन में इस बाघिन को इसलिए आदमखोर माना गया क्योंकि इस बाघिन ने मात्र तीन महीने के अंतराल में चार लोगों को अपना शिकार बनाया। यह इसलिए प्रसिद्ध हुई क्योंकि यह जिम कार्बेट का आखिरी आदमखोर बाघ का शिकार था।
 
जोवलगिरी का आदमखोर : मैसूर स्टेट की सरहदों पर जोवलगिरी के जंगल में 15 इंसानों की मौत की जिम्मेदार बाघिन को भी इसी तरह मौत घाट उतारा गया। विख्यात शिकारी केनथ एंडरसन ने ही इस बाधिन को मौत के घाट उतारा। बाद में इस बाघिन के बारे में केनथ एंडरसन ने बताया कि यह बाघिन भी अपना सामान्य शिकार नहीं कर पा रही थी इसलिए इसने इंसानों को आसान शिकार मान उन पर हमले शुरू कर दिए थे।

सुंदरबन के आदमखोर बाघ : आदमखोर बाघों के लिए सबसे बदनाम जगह सुंदरबन है। सुंदरबन के जंगलों में बाघों की तादाद भी काफी अच्छी है। लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक यहां के ज्यादातर बाघ आदमखोर हैं। यह एक मात्र जगह ऐसी जहां के बाघों को लेकर सभी की राय एकमत नहीं है कि आखिर यहां बाघ इतने ज्यादा आदमखोर क्यों होते हैं। एक वक्त था जब सुंदरबन के जंगलों में हर साल 50 से 60 लोगों को बाघ अपना शिकार बना लेते थे। सुंदरबन में दुनिया के दूसरे टाइगर रिजर्व के मुकाबले सबसे ज्यादा बाघ पाए जाते हैं। यहां के बाघों का आदमखोर होने की वजह बाघों को उनका प्राकृतिक शिकार मिलने होने वाली मुश्किलें हैं.  कुछ विशेषज्ञ सुंदरबन में खारे पानी को भी इसकी वजह मानते हैं लेकिन अब बेहतर मैनेजमेंट की वजह से यहां आदमखोरों के शिकार बनने वाले लोगों की तादाद में  कमी आई है। लेकिन अब भी हर साल औसतन पांच लोग यहां बाघों के शिकार हो जाते हैं। (hindi.news18.com/ से)