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Last Modified: नई दिल्ली , सोमवार, 31 अगस्त 2015 (17:59 IST)

धार्मिक परंपरा सल्लेखना पर रोक हटी, जैन समाज में हर्ष

धार्मिक परंपरा सल्लेखना पर रोक हटी, जैन समाज में हर्ष - Sllekna
शोभना जैन, अनुपमा जैन
                                                   
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज दूरगामी परिणाम वाले एक महत्वपूर्ण फैसले मे जैन समुदाय की धार्मिक परंपरा सल्लेखना (प्रचलित धारणा यानी मृत्यु पर्यंत उपवास) पर राजस्थान हाइकोर्ट द्वारा लगाई गई रोक संबंधी आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है। यानी अब इस मामले के अंतिम निर्णय आने तक जैन समुदाय अपनी इस धर्मिक परंपरा का निर्वाह कर सकेगा। यह परंपरा वैधानिक होगी। साथ ही इस संबंध में सभी याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया गया है।
 
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर समूचे जैन समाज, साधु, संतो ने संतोष व राहत व्यक्त की है और कहा है कि प्रसन्नता की बात है कि माननीय न्यायलय ने उनकी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को बहाल रखा है। वे अपनी धार्मिक पंरपरा का पालन कर सकेंगे, जो अनादिकाल से चली आ रही है, जिसके ऐतिहासिक प्रमाणिक साक्ष्य है।
 
उन्होंने कहा है कि इ्सकी तुलना आत्महत्या से कतई नहीं की जा सकती है, यह आत्म साधना का उत्कर्ष है, जिसमे केवल अन्न जल का ही त्याग नही किया जाता है अपितु तमाम तरह के कषाय, मायामोह, क्रोध, ईर्ष्या आदि का त्याग कर आत्मा की शुद्धता पाने की साधना की जाती है।
 
उल्लेखनीय है कि राजस्थान हाइकोर्ट ने गत 10 अगस्त को अपने फैसले मे इस परंपरा को आत्महत्या जैसा बताते हुए उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 306 एवं 309 के तहत दंडनीय बताया था। इस फैसले से समूचे जैन समाज मे बहुत चिंता तथा बैचेनी व्याप्त हो गई थी। 
 
राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा संथारा पर प्रतिबन्ध लगा दिए जाने के बाद न केवल समस्त भारत में बल्कि विदेशों में भी जैन समाज द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था। इस फैसले के खिलाफ दिंगबर जैन परिषद ने उच्चतम न्यायलय मे चुनौती दी थी।
 
जैन मुनि आचार्य विद्यासागर, आचार्य विद्यानंद, महाश्रमणजी, मुनि अभय सागर, गणनी प्रमुख आर्यिका ज्ञानमति माताजी सहित सभी साधु संतो, जैन समाज के प्रतिनिधि नेताओं व समाज ने इस फैसले पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि यह प्रथा अनादिकाल से चली आ रही है। प्रसन्नता की बात है कि अब समाज अपनी इस धार्मिक प्रथा का पुनः पालन कर सकेगा।
 
तपस्वी दार्शनिक जैन आचार्य विद्यासागर ने इस फैसले पर संतोष व्यक्त करते हुए सल्लेखना को चरम तप साधना बताते हुए कहा कि दरअसल सल्लेखना ग्रहण करना मंदिर निर्माण के बाद कलशारोहण जैसा है। सल्लेखना लेने वाले भावुक नहीं होते है। प्रीति, संतोष, धैर्य, धीरज के साथ निडरता पूर्वक संलेखना ग्रहण करते हैं। जिस प्रकार मंदिर निर्माण हो जाने पर कलशारोहण होता है, बस वही कलशारोहण ही संलेखना है।
 
उन्होने कहा कि शास्त्रों में भी संतो ने कहा है 'सभी को संलेखना प्राप्त हो। 'उन्होंने कहा सल्लेखना साधना है, तप है इसे मृत्यु वरण कदापि नही कहा जा सकता है। बिनोबा भावे ने भी जैन धर्म के इन्ही सिद्धांतो को समझा और संलेखना ग्रहण की।
 
अखिल भारतीय दिगंबर जैन समिति के अधयक्ष निर्मल कुमार सेठी, जैन स्थानक कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सुभाष ओस्वाल, तेरापंथ के वरिष्ठ प्रतिनिधि के एल पटावरी जाने माने चिक्त्सक व शाकाहार आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर डॉ डीसी जैन सहित समाज के प्रतिनिधि नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले का स्वागत किया है।
 
सेठी ने कहा 'फैसला जैन समुदाय के संविधानिक अधिकारों की रक्षा है और इससे देश की न्यायिक प्रणाली पर हमारी आस्था और मजबूत हुई है। हमे उम्मीद है कि अंतरिम फैसला भी सकारात्मक होगा।' उन्होंने कहा कि इस अपील पर हमने तमाम ऐतिहासिक, पुरातत्व संबंधी साक्षय रखे। समाज को संतोष है कि माननीय न्यायालय ने उनके तर्क को सही माना।
 
ओसवाल ने कहा कि इस फैसले से देश एवं विदेश में फैले जैन समाज में खुशी की लहर दौड़ गई है। आज उनके लिए दिवाली का दिन है। डॉ. जैन ने कहा कि इस फैसले से पूरे समाज ने राहत के सांस ली है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रदीप जैन, सांसद ईश्वर लाल जैन तथा पूर्व सांसद जेके जैन ने भी कहा कि फैसला जैन समाज की धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान है।
 
उच्च न्यालय मे समाज की तरफ से जाने माने वकील सर्वश्री अभिषेक सिंघवी, हरीश साल्वे, गोपाल सुब्रमन्यम, सुशील जैन सहित प्रतितिष्ठित वकीलों ने इस मामले में न्यायालय में समाज का पक्ष रखा। 
 
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों राजस्थान हाईकोर्ट ने संथारा पर प्रतिबन्ध लगा दिया था, जिसके कारण समस्त भारत में जैन समाज द्वारा विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। 
 
विद्वानो का कहना है कि भगवान महावीर के अनुसार संथारा जैन साधना पद्धति का हिस्सा है, जिसका उल्लेख ठाणं, उपसंगदशा आदि आगमों में भी मौजूद है। संथारा को आत्महत्या करार नही दिया जा सकता। आत्महत्या कोई भी व्यक्ति आवेश, आवेग, तनाव, कुणठा, हताशा, निराशा आदि भावों से ग्रसित होकर करता है, जबकि यह आत्म साधना का चरम है। 
 
एक वकील निखिल सोनी ने 2006 में संथारा की वैधता को चुनौती देते हुए हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। इसे याचिका में जीवन के अधिकार का उल्लंघन बताया गया था। (वीएनआई)