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प्रशांत किशोर : जिनकी वजह से यूपी में डूब गया कांग्रेस का जहाज

प्रशांत किशोर : जिनकी वजह से यूपी में डूब गया कांग्रेस का जहाज - Prashant Kishor who is responsible behind congress' loss in UP election
चुनाव के विभिन्न चरणों में कांग्रेस के नेता सपा-कांग्रेस के साथ होने के परिणाम पर विचार करते रहे। यह साथ सफलता लाएगा या फेल होगा इसका पैमाना पीके द्वारा दिखाई गई खुशियां थीं। 

यहां पीके का आमिर खान की फिल्म से कोई लेना देना नहीं बल्कि यह पीके हैं प्रशांत किशोर। जो राहुल गांधी
और कांग्रेस के लिए पोल स्ट्रेटजिस्ट थे। कांग्रेस के नेता दिल्ली में पूरे विश्वास के साथ कहते रहे कि यूपी इलेक्शन में उनकी पार्टी जीतने वाली है। पीके बहुत खुश है, उसकी टीम बहुत खुश है। चुनाव के चार पांच चरणों में हमने बहुत अच्छा किया है। पीएम मोदी की निराशा को पहचानो। पीके ने पहले ही बता दिया है हम जीत रहे हैं। 
 
उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि राहुल गांधी की खाट सभा पूरी तरह से विफल रही थी। शीला दीक्षित को ब्राह्मणों को लुभाने लिए सीएम उम्मीदवार बनाने के कारण और 27 साल से यूपी बेहाल की टैगलाइन के साथ कांग्रेस और उसकी चतुराई पर खड़े सवालों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया। 
 
सपा और कांग्रेस के गठबंधन को सोनिया गांधी के हस्तक्षेप, राहुल गांधी की समझदारी और प्रियंका गांधी की मेहनत का नतीजा करार दी गई। इसके पीछे पीके का बड़ा हाथ माना गया। कांग्रेस नेता प्रेस में कहते रहे, "देखिए पीके ने हमारे लिए क्या कर दिखाया है। इससे पहले लोग हमें खिलाड़ी मानना ही भूल गए थे। अब सब कांग्रेस और राहुल गांधी की ही बात कर रहे हैं।" पीके का भरोसा कांग्रेस को खुद से अधिक था आखिर बिहार चुनाव के दौरान उसने ही नितिश कुमार के लिए स्ट्रेटजी बनाई थी। पीके को 2014 में पीएम मोदी को मिली सफलता के लिए श्रेय दिया जाता है। 
 
पीके के हाथ में ब्रांड बनाने की कला मान ली गई। उसकी हर जगह जरूरत थी और वह राहुल बाबा के लिए राज गुरू की तरह हो गए। उनके साथ सफलता चिपक सी गई। भारतीय राजनीति में चुनावी योजना बनाने में उनका कोई सानी न रहा। राहुल और कांग्रेस मान चुके थे कि उनकी जीत पीके के साथ के बाद ही संभव होगी। 
 
इस चुनाव का परिणाम चौंकाने वाला रहा। कांग्रेस को सिंगल डिजिट जितनी और सपा को उनका अब तक का सबसे कम मिलना एक सबक की तरह लिया जाना चाहिए। अगर बीजेपी के इंडिया शाइनिंग स्लोगन अनुभव से और यूपीए के 'भारत निर्माण' विज्ञापन से सीख ले ली जाती तो परिणाम इतने बुरे न होते। अब देखना यह है कि क्या राहुल गांधी पीके को गुजरात चुनाव के लिए भी चुनेंगे? 
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