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Last Modified: शनिवार, 26 दिसंबर 2015 (20:17 IST)

बड़ा सवाल, कितना कारगर होगा मोदी का दांव

बड़ा सवाल, कितना कारगर होगा मोदी का दांव - PM Modi Pakistan tour
पाकिस्तानी मीडिया में भी छाए नरेन्द्र मोदी
 
भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एकाएक या संभव है कि पहले से तयशुदा कहानी के अनुसार लाहौर पहुंचकर पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को उनके जन्मदिन पर बधाई देकर दुनिया भर को चौंका दिया।
 
पाक मीडिया में मोदी के नए अवतार को लेकर उत्सुकता मि‍श्रित प्रतिक्रिया जाहिर की गई है। पाकिस्तानी मीडिया का कहना है कि वर्ष 2011 में पाकिस्तान को धमकी देने वाले नरेन्द्र मोदी का आज समूचे पाकिस्तान-हिंदुस्तान को चौंकाते हुए नवाज से हाथ मिलाना, गले मिलना शांति वार्ताओं के लिहाज से एक बड़ी बात है। मोदी ने अपने साहसी कदम से एक लम्बा रास्ता तय कर लिया है।  
 
अपनी विदेश यात्रा के दौरान किसी भी राष्ट्रप्रमुख का अपने महत्त्वपूर्ण, पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों को दरकिनार कर ऐसे देश में के प्रघानमंत्री को जन्म दिन की बधाई देने के लिए पहुंच जाना जिसके साथ उसके तीन युद्ध हो चुके हैं, असामान्य घटना है। पिछले एक दशक से अधिक समय से भारत के किसी प्रधानमंत्री ने पड़ोसी होते हुए जिस देश का दौरा नहीं किया, वहां मोदी का जाना भारतीय विदेश नीति की एक ऐतिहासिक घटना है। पर वे जिस तरह से पूर्व-निर्धारित कार्यक्रम के बगैर वहां जा पहुंचे वह कूटनीति के तमाम जानकारों के साथ-साथ उनके समर्थकों और विरोधियों के लिए हैरानी का विषय है। यह मोदी का अपना अंदाज है जिसके चलते वे पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने में अपनी असाधारण दिलचस्पी का इजहार करना चाहते रहे होंगे। संभव यह भी है कि यह सब पहले से तय हो, जानकारी ही बाद में दी गई हो। 

दूसरी ओर, पाक प्रधानमंत्री ने पूरे उत्साह और मित्रता के भाव से मोदी का स्वागत किया। लाहौर के अल्लामा इकबाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर मोदी की अगवानी करने वालों नवाज शरीफ, उनके भाई और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ और उनकी पार्टी तथा सरकार के अहम लोग भी मौजूद थे। मोदी, इसके बाद नवाज शरीफ के साथ उनके घर भी गए। करीब डेढ़ घंटे के इस मिलन का जिक्र भारत-पाक रिश्तों में हमेशा एक अद्भुत घटना के तौर पर किया जाएगा। 
 
विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने ट्वीट कर कहा कि पड़ोसियों के बीच रिश्ता ऐसा होना चाहिए और उन्होंने मोदी को सही अर्थों में एक राजनेता बताया। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि पाकिस्तान से भारत के रिश्तों का इतिहास काफी उतार-चढ़ाव और बेहद खटास भरा भी रहा है। और मोदी सरकार के ही सत्ता में रहते तनाव इतना बढ़ गया था पिछले साल पाकिस्तान के साथ होने वाली विदेश सचिव स्तरीय वार्ता रद्द कर दी थी। फिर इस साल अगस्त में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक स्थगित हो गई। उस समय तक मोदी सरकार घाटी में बढ़ती आतंकवादी घटनाओं तथा संघर्ष विराम समझौते के निरंतर उल्लंघन से बहुत नाराज थी। 
 
लेकिन, फिर ऐसा क्या हुआ कि मोदी सरकार का रवैया एकदम बदल गया है? शायद सरकार को इस बात का अहसास हो गया हो कि पाकिस्तान में सैनिक और असैनिक सत्ता के दो केन्द्रों के बीच सैनिक सत्ता ज्यादा ताकतवर है और इस स्थिति के चलते ही दोनों देशों के बीच जो बातचीत की शुरुआत हुई वह बैक चैनल से संभव हुई। मोदी और शरीफ को मिलाने वाले उद्योगपति के तौर पर सज्जन जिंदल का नाम लिया जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ उनके बेटे हसन शरीफ भी आए थे जोकि परिवार की इस्पात मिलों का काम देखते हैं। तब उन्होंने सज्जन जिंदल के साथ डिनर किया था और दोनों के बीच कारोबारी बातचीत भी हुई होगी। 
 
यह सभी जानते हैं कि नवाज शरीफ पाकिस्तान के एक सफल और प्रसिद्ध उद्योगपति हैं जिनकी स्टील मिलें पाकिस्तान ही नहीं वरन सउदी अरब तक में हैं। संभवत: नेपाल में पाकिस्तानी सेना, आईएसआई और कट्‍टरपंथी तत्वों की दखलंदाजी से बचने के लिए दोनों प्रधानमंत्रियों ने सरकारी तौर पर कोई भेंट नहीं की थी लेकिन दोनों होटल के एक कमरे में चोरी छिपे मिले थे और दोनों के बीच एक घंटे तक बातचीत हुई थी। इसके बाद ही दोनों तरफ के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैंकाक में बैठक हुई और उनके साझा बयान से विदेशमंत्री सुषमा स्वराज का पाकिस्तानी दौरा संभव हो सका। हालांकि इस बीच मोदी सरकार के अनेक मंत्री कई बाद यह दोहरा चुके थे कि अगर पाकिस्तान से बातचीत होगी तो वह केवल आतंकवाद के मामले पर होगी। 
 
लेकिन अब समग्र वार्ता का दरवाजा खुल गया है। हालांकि दोनों देशों के बीच कश्मीर का मुद्दा अहम रहा है और पाकिस्तान ने तो लंबे अरसे तक इसे वार्ता की अनिवार्य शर्त बना रखा थी। लेकिन जब दोनों देशों के बीच चोरी-छिपे स्तर पर ही बात हुई, तब भारत कश्मीर मसले पर कोई बातचीत टालने के लिए पाक को राजी कर सका। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने वाले मोदी ने चुनावों से पहले और इसके प्रचार अभियान के दौरान मनमोहनसिंह सरकार की इस बात को लेकर आलोचना की थी कि वे पाकिस्तान के साथ शांतिवार्ता करने पर जोर दे रहे हैं। 2011 में मोदी ने रजत शर्मा को दिए गए टीवी इंटरव्यू में पाकिस्तान को 'दुश्मन देश' और इसे 'झूठ बोलने वाले विशेषज्ञों' का देश करार दिया था।
 
उन्होंने इस इंटरव्यू में यहां तक कहा था कि अगर उनके हाथ में होता तो वे 26/11 के आतंकी हमले और पाकिस्तान की ओर से चलाए जा रही आतंकी कार्रवाइयों को ताकत के बल पर हल करते। लेकिन आज उनका एकाएक पाक दौरा और नवाज शरीफ से गले मिलना, हाथ मिलना और शरीफ का मोदी का स्वागत करने के लिए लाहौर हवाई अड्‍डे तक आना मात्र एक दिखावा नहीं है। अब पाकिस्तान से बातचीत अव्यावहारिक बात नहीं है और दोनों देशों के लिए वास्तव में अच्छे दिन आ गए हैं और इन बातों का मात्र प्रतीकात्मक मूल्य नहीं है। दोनों देशों के बीच 26/11 के आरोपियों के खिलाफ न्यायिक कार्यवाही को तार्किक परिणति तक पहुंचाने तथा आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई भी की जा सकती है।   
 
जैसे-जैसे बातचीत आगे बढ़ेगी तो इसमें सियाचिन, सर क्रीक, वुल्लर बराज, तुलबुल नौवहन परियोजना, आर्थिक और व्यापारिक सहयोग, मादक पदार्थों की तस्करी पर नियंत्रण, जनता के स्तर पर संपर्क और धार्मिक पर्यटन की सहूलियतें बढ़ाने जैसे तमाम मुद्दों पर भी बातचीत संभव है। शायद इसे ही व्यापक द्विपक्षीय संवाद का नाम दिया गया है लेकिन यह महज शाब्दिक परिवर्तन है। असल में यह समग्र वार्ता की बहाली ही है। पाकिस्तान से बातचीत जरूर होनी चाहिए और यह बात मोदी की समझ में भी आ गई है, पड़ोसी देश के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाना जरूरी न होते तो खुद वाजपेयी भी पहल नहीं करते। 
 
खुद उन्होंने अपनी घोषणा में कहा है हालांकि लाहौर घोषणा से किसी चमत्कारी परिवर्तन की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। लेकिन चूंकि मोदी ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जो कि वाजपेयी के बाद पाकिस्तान गए हैं, इसलिए उन्हें पाकिस्तान की ओर से होने वाली किसी सैन्य ढीठता से भी सावधान रहना होगा। चूंकि मोदी को पता है कि हाल ही में रिटायर्ड जनरल नसीर जंजुआ, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं और पाकिस्तान के सेना प्रमुख, राहिल शरीफ के सीधे सम्पर्क में रहते हैं और वे भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी मिल चुके हैं। इसलिए मोदी ने सोच समझकर ही वार्ता करने की शुरुआत की है। 
 
मोदी ने अपना दांव चल दिया है, यह सफल होता है या नहीं, इस बात का फैसला तो भविष्य में ही हो सकेगा लेकिन इस बार दोनों देशों की बातचीत में मोदी ने पाकिस्तान सैन्य प्रतिष्ठान के लोगों को भी शामिल कर एक नई शुरुआत अवश्य की है। शायद दोनों देशों के निर्णायक और प्रभावी नेतृत्व ने यह भी तय कर लिया है कि वार्ता को मीडिया इवेंट बनाने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि दोनों ही ओर का मीडिया पक्ष या विपक्ष में ढोल बजाने से ज्यादा कुछ नहीं करता है।