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Last Updated :नई दिल्ली , गुरुवार, 30 जून 2016 (09:47 IST)

नई शिक्षा नीति : अब 5वीं तक फेल नहीं होगा छात्र और 10वीं परीक्षा में बदलाव

नई शिक्षा नीति : अब 5वीं तक फेल नहीं होगा छात्र और 10वीं परीक्षा में बदलाव - New Education Policy
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नई शिक्षा नीति के मसौदे के प्रमुख बिंदुओं को सार्वजनिक किया है जिसमें छात्रों को फेल न करने की नीति पांचवीं कक्षा तक के लिए सीमित करने, ज्ञान के नए क्षेत्रों की पहचान के लिए एक शिक्षा आयोग का गठन करने, शिक्षा के क्षेत्र में निवेश को बढ़ाकर जीडीपी के कम से कम छह फीसदी करने और शीर्ष विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत में प्रवेश को बढ़ावा देने जैसे कदमों का जिक्र किया गया है।
'राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2016 के मसौदे के लिए कुछ इनपुट' शीर्षक से अपनी वेबसाइट पर जारी किए गए दस्तावेज पर मंत्रालय ने प्रतिक्रियाएं मांगी हैं। इस दस्तावेज में 'आर्थिक तौर पर कमजोर तबकों के प्रति व्यापक राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं' के मद्देनजर शिक्षा का अधिकार कानून की धारा 12-1-सी के सरकारी सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक (धार्मिक एवं भाषायी) संस्थाओं तक विस्तार के परीक्षण का भी सुझाव दिया गया है।
 
मंत्रालय की ओर से पेश किए गए मसौदे में इस बात का जिक्र है कि छात्रों को फेल न करने की नीति के मौजूदा प्रावधानों में संशोधन किया जाएगा, क्योंकि इससे छात्रों का शैक्षणिक प्रदर्शन काफी प्रभावित हुआ है। मसौदा इनपुट दस्तावेज में कहा गया है, 'फेल न करने की नीति पांचवीं कक्षा तक सीमित रहेगी और उच्च प्राथमिक स्तर पर फेल करने की व्यवस्था बहाल की जाएगी।' उल्लेखनीरय है कि वर्तमान में आठवीं तक बच्चे को फेल न करने की नीति है।
 
दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश यदि चाहें तो स्कूलों में पांचवीं कक्षा तक निर्देश के माध्यम (मीडियम ऑफ इंस्ट्रक्शन) के रूप में मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा का इस्तेमाल कर शिक्षा प्रदान कर सकते हैं। बहरहाल, दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि यदि प्राथमिक स्तर तक निर्देश का माध्यम मातृभाषा या स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा है तो दूसरी भाषा अंग्रेजी होगी और (उच्च प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तरों पर) तीसरी भाषा चुनने का अधिकार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राज्यों और स्थानीय अधिकारियों के पास होगा।
 
नीति के मसौदे से संबंधित इस दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि स्कूलों और विश्वविद्यालयों के स्तर पर संस्कृत पढ़ाने की सुविधाएं ज्यादा उदार होकर मुहैया कराई जाएंगी। उच्च शिक्षा के बाबत इस दस्तावेज में एक शिक्षा आयोग के गठन का जिक्र किया गया है जिसमें शैक्षणिक विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा। यह आयोग हर पांच साल पर गठित होगा और इसका काम ज्ञान के नए क्षेत्रों की पहचान करने में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की मदद करना होगा।
 
मंत्रालय की ओर से जारी दस्तावेज में शिक्षा के क्षेत्र में खर्च को जीडीपी के कम से कम छह फीसदी करने और शीर्ष विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में आने को बढ़ावा देने जैसी बातें भी कही गई है। दस्तावेज में कहा गया है कि भारत में न केवल विदेशी विश्वविद्यालयों को बढ़ावा दिया जाएगा, बल्कि भारतीय संस्थाएं भी विदेशों में अपने कैंपस स्थापित कर सकेंगी और यदि जरूरत पड़ी तो उचित कानून बनाए जाएंगे या मौजूदा कानूनों में संशोधन किए जाएंगे।
 
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम की अध्यक्षता वाली एक समिति ने नई शिक्षा नीति तैयार करने को लेकर अपनी रिपोर्ट दी है। आज सार्वजनिक किया गया दस्तावेज सुब्रमण्यम समिति की ओर से की गई कई सिफारिशों पर आधारित है।' अन्य प्रमुख सिफारिशों में यह सुझाव दिया गया है कि विज्ञान, गणित एवं अंग्रेजी विषयों के लिए साझा राष्ट्रीय पाठ्यक्रम तैयार किए जाएं । अन्य विषयों के लिए, जैसे सामाजिक विज्ञानों, पाठ्यक्रम का एक हिस्सा पूरे देश में एक जैसा रहेगा और बाकी हिस्सा राज्य तय करेंगे।
 
मसौदे में कहा गया कि स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रूपरेखा और दिशानिर्देश विकसित किए जाएंगे और उन्हें किसी स्कूल को मान्यता देने एवं उसके पंजीकरण के लिए अनिवार्य शर्त बनाया जाएगा। युवावस्था की ओर बढ़ते लड़कों-लड़कियों के सामने आने वाली समस्याओं पर अभिभावकों एवं शिक्षकों को गोपनीय तरीके से परामर्श देने के लिए स्कूलों को प्रशिक्षित काउंसेलरों की सेवा लेनी होगी।
 
विशेषज्ञों का एक कार्य बल बनाने का भी सुझाव दिया गया है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों में भर्ती और तरक्की जैसी प्रक्रियाओं का अध्ययन करेगा और उच्च शिक्षा संस्थानों में बौद्धिक एवं शैक्षणिक उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के उपाय सुझाएगा। युवा प्रतिभाओं को अध्यापन के पेशे की ओर आकषिर्त करने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान शुरू करने का भी सुझाव दिया गया है। बहरहाल, इस दस्तावेज में राजनीतिकरण पर लगाम लगाने को लेकर कोई खास सुझाव नहीं है जबकि सुब्रमण्यम समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस पर प्रमुखता से सिफारिशें की थीं।
 
सुब्रमण्यम समिति ने अपनी रिपोर्ट में यहां तक कहा था कि इस बात पर विचार होना चाहिए कि क्या राजनीतिक पार्टियों की इकाइयों को शिक्षण संस्थानों के परिसरों में अनुमति दी जानी चाहिए। मंत्रालय की ओर से जारी मसौदे में एक सुझाव 10वीं कक्षा की परीक्षा में बड़ी संख्या में छात्रों के फेल होने से जुड़ा है। छात्र खासकर तीन विषयों गणित, विज्ञान एवं अंग्रेजी में खराब प्रदर्शन करते हैं।
 
छात्रों की असफलता दर में कमी लाने के लिए गणित, विज्ञान एवं अंग्रेजी में 10वीं कक्षा की परीक्षा दो चरणों में लेने का सुझाव दिया गया है। इसमें पहला पार्ट उच्च स्तर पर और दूसरा पार्ट निम्न स्तर पर होगा। दस्तावेज में कहा गया है कि 10वीं कक्षा के बाद जिन पाठ्यक्रमों या कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए विज्ञान, गणित या अंग्रेजी जैसे विषयों की जरूरत नहीं होगी, उनमें शामिल होने के इच्छुक छात्र पार्ट-बी स्तर की परीक्षा का विकल्प चुन सकेंगे।
 
अभी केंद्रीय एवं राज्य शिक्षा बोर्ड 10वीं और 12वीं की परीक्षा संचालित करते हैं। दस्तावेज में कहा गया कि छात्रों का स्कूल जिस बोर्ड से संबद्ध होगा, उन्हें उस बोर्ड की 10वीं की परीक्षा में शामिल होना अनिवार्य होगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित मान्यता देने की प्रणालियों के अध्ययन के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने का भी सुझाव दिया गया है। (भाषा) 
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