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Last Modified: नई दिल्ली/ काठमांडू , सोमवार, 24 नवंबर 2014 (23:04 IST)

दक्षेस क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के एजेंडे के साथ मोदी काठमांडू में

दक्षेस क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के एजेंडे के साथ मोदी काठमांडू में - Narendra Modi
- शोभना जैन 
 
नई दिल्ली/ काठमांडू। 'पड़ोसी सबसे पहले' की नीति के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दक्षिण एशियाई देशों के बीच संपर्क मार्ग बढ़ाने, क्षेत्र की जनता के बीच नजदीकियां बढ़ाने और क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के एजेंडे के साथ काठमांडू दक्षेस शिखर सम्मेलन में शामिल होने मंगलवार को काठमांडू जा रहे हैं। 18वें काठमांडू दक्षेस शिखर सम्मेलन से पूर्व हालांकि शिखर बैठक में क्षेत्रीय सहयोग के मुद्दे से हटकर प्रधानमंत्री मोदी और उनके पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ के बीच मुलाकत की छाया हावी है। 
 
इस शिखर बैठक में हिस्सा लेने काठमांडू आईं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आज इस मुलाकात की बाबत पूछे गए सवाल के जबाव में सस्पेंस और बढ़ाते हुए कहा 'कल तक इंतजार कीजिए' ऐसी अटकले हैं कि दोनों देशों के प्रधानमंत्री शिखर वार्ता के इतर मुलाकात कर सकते हैं। प्रधानमंत्री दक्षेस के अन्य राष्ट्राध्यक्षों के साथ 26 और 27 नवंबर को होने वाली शिखर बैठक में हिस्सा लेंगे, जिसमें शरीफ भी शामिल हैं।  
 
इससे पूर्व विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने दक्षेस में भारत के विजन की चर्चा करते हुए कल कहा था, 'दक्षेस में भारत का ध्यान इस क्षेत्र में संपर्क मार्ग बढ़ाने और जनता के बीच आपसी नजदीकियां बढ़ाने पर होगा, दक्षेस शिखर में प्रधानमंत्री दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने, क्षेत्र में विकास की संभावनाओं का पूर्ण इस्तेमाल पर अपने विजन को पेश करेंगे।
 
प्रधानमंत्री शिखर बैठक में क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने की अपनी प्रतिबद्धता के अनुरूप सदस्य देशों के बीच आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी सहयोग एवं आपसी संपर्क बढ़ाने पर जोर देंगे।
 
दक्षेस शिखर बैठक के उद्घाटन सत्र में 26 नवंबर को सभी सदस्य देशों के नेता अपना नीतिगत वक्तव्य देंगे। उसके बाद दक्षेस मंत्रियों द्वारा तैयार रिपोर्ट पर विचार किया जाएगा और जिन मुद्दों पर सभी में सहमति होगी, उनसे संबंधित समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाएगा। इस शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों के बीच बिजली और रेल एवं सड़क संपर्क के लिए समझौते होने की संभावना है। इसी दिन दक्षेस नेताओं के बीच दि्वपक्षीय बैठक भी होंगी।
 
अकबरुद्दीन ने कहा कि प्रधानमंत्री अधिक से अधिक नेताओं के साथ सार्थक बातचीत करने के पक्ष में हैं। दक्षेस नेता 27 नवंबर की सुबह अनौपचारिक विचार-विमर्श के लिए निकटवर्ती पर्यटक स्थल धुलीखेत जाएंगे और वहां दोपहर में काठमांडू लौटकर समापन सत्र में 'काठमांडू घोषणा-पत्र' स्वीकार किया जाएगा। प्रधानमंत्री उसी रात स्वदेश लौट आएंगे।
 
गौरतलब है कि दक्षेस देशों के बीच संपर्क बढ़ाने के उद्देशय से प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) क्षेत्रीय रेलवे समझौते की पुष्टि और एक सदस्य राष्ट्र के रूप में भारत द्वारा उस पर हस्ताक्षर करने की मंजूरी दी गई।
 
दक्षेस क्षेत्र संपर्क मार्ग और कम्प्यूटर सम्पर्क की दृष्टि से दुनिया के सबसे कम नेटवर्क वाले क्षेत्रों में से एक समझा जाता है। इसे महसूस करते हुए दक्षेस देशों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की थी कि सदस्य देशों के बीच बेहतर परिवहन ढांचा और सम्पर्क मजबूत करने के उपाय अनिवार्य हैं। सूत्रों का मानना है कि क्षेत्रीय रेलवे समझौते से दक्षेस क्षेत्र में परिवहन सम्पर्क मजबूत बनाने में मदद मिलेगी।
 
रेल और परिवहन संचार से न केवल समूचे क्षेत्र में आर्थिक विकास को बल मिलेगा बल्कि सदस्य देशों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध बढ़ेंगे और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
 
शिखर बैठक से अलग दक्षेस नेताओ के साथ होने वाली द्विपक्षीय मुलाकातों के बारे में पूछे जाने पर प्रवक्ता ने कल कहा था 'इस संबंध में  अभी कार्यक्रम तय नहीं हुए हैं, इन्हे तैयार किया जा रहा है।' साथ ही एक अन्य सवाल के जबाव में प्रवक्ता ने कहा 'पाकिस्तान की ओर से मुलाकात का कोई अनुरोध नहीं मिला है' लेकिन सूत्रों का मानना है कि दक्षेस शिखर बैठक के दौरान दोनों नेता अन्य दक्षेस नेताओं के साथ ‘रिट्रीट सेरेमनी’ के दौरान एक-दूसरे के सामने आएंगे।’ 
 
परंपरा के अनुसार, दक्षेस शिखर वार्ता में शामिल होने वाले राष्ट्रों और सरकारों के प्रमुखों को द्विपक्षीय बैठकों के लिए अच्छा माहौल बनाने के लिए सम्मेलन के उदघाटन के बाद ‘रिट्रीट’ के लिए ले जाया जाता है। हालांकि इस बारे में आधिकारिक तौर पर इस संभावित मुलाकात के बारे में कुछ कहा नहीं गया है, लेकिन प्रेक्षकों ने इस आशय की संभावनाओं को खारिज भी नहीं किया है।
 
14वां दक्षेस शिखर सम्मेलन 26-27नवंबर को काठमांडू में हो रहा है, जिसमें भारत के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव और भूटान के राष्ट्राध्यक्ष हिस्सा लेंगे। अमेरिका, चीन सहित कुछ अन्य देश इसमें बतौर प्रेक्षक भी हिस्सा ले रहे हैं। (वीएनआई)