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Last Modified: नई दिल्ली , शनिवार, 1 नवंबर 2014 (18:43 IST)

विदेश मंत्रालय अविवाहित माता पासपोर्ट मामले में दी गई दलील से 'स्तब्ध'

विदेश मंत्रालय अविवाहित माता पासपोर्ट मामले में दी गई दलील से 'स्तब्ध' - Ministry of External Affairs
-शोभना जैन 
 
नई दिल्ली। अविवाहित माता के बच्चे के पासपोर्ट मामले पर विदेश मंत्रालय के वकील के 'संवेदनहीन' तर्क पर महिला और सामाजिक संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया के बीच विदेश मंत्रालय ने स्वयं को वकील की इस विवादास्पद दलील से अलग करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि विदेश मंत्रालय पासपोर्ट जारी करते वक्त महिला या पुरुष किसी के भी प्रति न तो कोई भेदभाव करता है न ही वह असंवेदनशील है। 
 
इस संबंध में उत्पन्न विवाद के बारे में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि पासपोर्ट जारी करते समय किसी एकाकी अभिभावक महिला या पुरुष के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह अपने बच्चे के पिता या माता का नाम अनिवार्य रूप से जाहिर करे।
 
उन्होंने कहा कि बच्चे के पासपोर्ट के लिए केवल दो दस्तावेजों की जरूरत है- पहला बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र और दूसरा किसी मजिस्ट्रेट के सामने दाखिल एकाकी अभिभावक का शपथ पत्र। इस शपथ पत्र में एकाकी अभिभावक यदि चाहे तो बच्चे के माता या पिता के नाम वाले खाने को खाली टिप्पणी कर छोड़ सकता है।
 
प्रवक्ता ने इस संबंध में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि अगर आप इसे सरकार का पक्ष सोचेंगे तो निश्चय ही यह बात 'चकित' और 'स्तब्ध' कर देने वाली होगी।
 
यह विवाद उस वक्त उत्पन्न हुआ जबकि एक अविवाहित माता के बालक को पासपोर्ट दिए जाने के मामले में मुंबई उच्च न्यायालय में विदेश मंत्रालय की तरफ से जवाब देते हुए उसकी अधिवक्ता पूर्णिमा भाटिया ने कहा कि अविवाहित मां को हलफनामा दायर करना होगा, जिसमें उसे यह बात बताना होगा कि वह गर्भवती कैसे हुई? क्या उसके साथ बलात्कार हुआ और क्यों वह बच्चे के पिता का नाम शामिल नहीं करना चाहती है?
 
भाटिया का कहना था कि पासपोर्ट मैन्युअल में पूरी जानकारी दी गई है लेकिन देशभर में भाटिया द्वारा पासपोर्ट मैन्युअल की इस व्याख्या की तीव्र प्रतिक्रिया हुई। प्रवक्ता ने इस बारे में पासपोर्ट मैन्युअल पर सरकार की स्थिति स्पष्ट करते हुए पासपोर्ट के संबंध में भरे जाने वाले शपथपत्र की प्रतियां भी पत्रकारों को उपलब्ध कराईं। 
 
प्रवक्ता ने इस मामले में स्थति स्पष्ट करते हुए कहा कि विदेश मंत्रालय महिला या पुरुष के प्रति न तो कोई भेदभाव करता है और न ही वह असंवेदनशील है।
 
उन्होंने कहा कि वे मुंबई उच्च न्यायालय में वकील के कथन की सफाई नहीं दे सकते। वे केवल सरकार की इस बारे में नीति को ही स्पष्ट कर सकते हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि मंत्रालय मामले की छानबीन करेगा। 
 
उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालय में संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने विदेश मंत्रालय के वकील से पूछा था कि यदि कोई अविवाहित महिला अपने बच्चे का पासपोर्ट हासिल करना चाहे तो क्या प्रक्रिया होगी? 
 
इस पर वकील ने कथित रूप से कहा था कि महिला को शपथ पत्र के जरिए बताना होगा कि वह कैसे गर्भवती हुई? अथवा क्या उसके साथ बलात्कार हुआ था? सरकारी वकील के इस कथन पर देश में तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है।
 
खबरों के अनुसार पासपोर्ट मामले में युवती ने हाई कोर्ट में क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी के फैसले को चुनौती दी थी। अधिकारी ने युवती के सौतेले पिता के नाम के साथ उनका पासपोर्ट जारी करने से मना कर दिया था जिनका नाम उनके स्कूल के रिकॉर्ड्स और सर्टिफिकेट्स में भी हैं।
 
अधिकारी का कहना था कि वे सौतेले पिता को कोर्ट के आदेश के बाद ही अपना अभिभावक बना सकती हैं। पासपोर्ट अधिकारी ने विकल्प के तौर पर युवती की मां का भी नाम शामिल करने से मना कर दिया। अधिकारी ने युवती के सौतेले पिता के नाम के साथ उनका पासपोर्ट जारी करने से मना कर दिया था जिनका नाम उनके स्कूल के रिकॉर्ड्स और सर्टिफिकेट्स में भी हैं।
 
अधिकारी का कहना था कि वे सौतेले पिता को कोर्ट के आदेश के बाद ही अपना अभिभावक बना सकती हैं। पासपोर्ट अधिकारी ने विकल्प के तौर पर युवती का नाम भी शामिल करने से मना कर दिया। 
 
युवती ने याचिका में कहा है कि उसके 'बायलॉजिकल' पिता ने उसके पैदा होने के बाद ही उसे छोड़ दिया था, लिहाजा वह अपने उस पिता के नाम को अपने लिए एक कलंक मानती है। इस मामले की अगली सुनवाई अब 12 नवंबर को होगी। (वीएनआई)