शुक्रवार, 29 मार्च 2024
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एलओसी जमीन पर खींची लकीर नहीं है

एलओसी जमीन पर खींची लकीर नहीं है - LoC, Indian Army, Jammu and Kashmir
श्रीनगर। 814 किमी लम्बी एलओसी आखिर है क्या (?) जो पिछले 68 सालों से न सिर्फ खबरों में है बल्कि जीवित जंग के मैदान के रूप में भी जानी जाती है। सचमुच यह कोई सीमा है या फिर जमीन पर खींची गई लकीर नहीं है, जो दो देशों को बांटती है। जी नहीं, नदी, नालों, गहरी खाइयों, हिमच्छादित पहाड़ों और घने जंगलों को जमीन पर खींची गई कोई इंसानी लकीर बांट नहीं सकती। यही कारण है कि पाकिस्तान और भारत के बीच तीन युद्धों के परिणाम के रूप में जो सीमा रेखा सामने आई वह मात्र एक अदृश्य रेखा है जो न सिर्फ जमीन को बांटती है बल्कि इंसानी रिश्तों, इंसान के दिलों को भी बांटने का प्रयास करती है।
जम्मू प्रांत के अखनूर सेक्टर में मनावर तवी के भूरेचक गांव से आरंभ होकर कारगिल में सियाचिन हिमखंड से जा मिलने वाली एलओसी आज विश्व में सबसे अधिक खतरनाक मानी जाती रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि 26 नवंबर 2003 के पहले तक शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता था कि जिस दिन दोनों पक्षों में गोलाबारी की घटना न होती थी। हालांकि सीजफायर के बाद भी ऐसा अक्सर होता रहता है। यही कारण है कि इसे विश्व में जीवित जंग के मैदान के रूप में भी जाना जाता है।
 
रोचक बात यह है कि कहीं भी सीमा का कोई पक्का निशान नहीं है कि जिसे देखकर कोई अंदाज लगा सके कि आखिर सीमा रेखा है कहां? कई जगह घने चीड़ व देवदार के वृक्षों ने सीमा को इस तरह से घेर कर रखा है कि सूर्य की किरणें भी सीमा पर नजर नहीं आती। इसी तरह कारगिल से सियाचिन तक बर्फ से ढके पहाड़ साल के बारह महीनों मानव की पहुंच को कठिन बनाते हैं। सीमा की अगर किसी को पहचान है तो उन सैनिकों को जो विषम परिस्थितियों में भी सीमा पर नजरें जमाए हुए हैं। उनकी अंगुलियां ही यह बता सकने में सक्षम हैं कि आखिर एलओसी है, कहां जो अदृश्य रूप में कायम है और पूरे विश्व में चर्चा का एक विषय है।
 
अधिकतर लोग यह समझ नहीं पाते कि भारत पाक एलओसी और भारत पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा में अंतर क्या है। दरअसल भारत पाक एलओसी वह सीमा है जिसे सही मायनों में युद्धविराम रेखा कहा जाना चाहिए। दोनों देशों की सेनाएं इस रेखा पर एक दूसरे के आमने सामने हैं और युद्ध की स्थिति हर पल बनी रहती है।
 
और यही अदृश्य रेखा, जिसे एलओसी का नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि एक ओर पाकिस्तानी सेना का नियंत्रण है तो दूसरी ओर भारतीय सेना का। दूसरी ओर भारत पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा जो जम्मू संभाग के कठुआ व जम्मू जिले के साथ छूकर गुजरती है। यह मात्र 264 किमी है और इस पर सीमा सुरक्षा बल व पाकिस्तान की ओर से पाक रेंजर्स चौकसी पर रहते हैं।
 
इस अदृश्य रेखा रूपी एलओसी का दुखद पहलू यह है कि यह हमेशा ही आग उगलती रहती है जिसमें कमी तो नहीं आई है पिछले 68 सालों के भीतर मगर तेजी हमेशा ही आती रही है। इसी तेजी का अंग कभी छोटे हथियारों से की जाने वाली गोलीबारी है तो कभी बड़े तोपखानों से की जाने वाली गोलाबारी। 
इसी दुखद पहलू का परिणाम किसी और को नहीं बल्कि एलओसी की परिस्थितियों से जूझ रहे आम नागरिकों को जूझना पड़ता है जिनकी नागरिकता अभी भी विवादित इसलिए है क्योंकि वे दोनों देशों का प्रयोग जीवन यापन के लिए करते तो हैं ही बार-बार उगली जाने वाली आग से बचाव के लिए पलायन का रास्ता भी अपनाते हैं।
 
विश्व में यही एक ऐसी सीमा रेखा है दो देशों के बीच जहां स्थिति पर नियंत्रण करना किसी भी देश की सेना के बस की बात नहीं है क्योंकि उबड़-खाबड़ पहाड़, गहरी खाइयां, घने जंगल आदि सब मिलकर जिन भौगोलिक परिस्थितियों की भूलभुलैया का निर्माण करते हैं, उन पर सिर्फ हिन्दुस्तानी सेना ही काबू पाने में कामयाब हुई है। हालांकि पाक सेना भी एलओसी पर नियंत्रण रखती है लेकिन उसे इतनी कठिनाइयों का सामना इसलिए नहीं करना पड़ता है क्योंकि उसके अग्रिम ठिकानों से सड़क मार्ग और मैदानी क्षेत्र अधिक दूर नहीं हैं तो साथ ही में वह किसी प्रकार की तस्करी तथा घुसपैठ की समस्या से दो-चार इसलिए नहीं हो रही क्योंकि वह आप ही इन्हें बढ़ावा देती रही है।