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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Modified: शुक्रवार, 6 मई 2016 (18:26 IST)

बस ‘मुद्दा’ बनकर रह गए हैं कश्मीरी पंडित

बस ‘मुद्दा’ बनकर रह गए हैं कश्मीरी पंडित - Kashmir Pandits issue
श्रीनगर। 27 साल पहले लाखों कश्मीरी पंडित परिवारों ने कश्मीर वादी से पलायन कर जम्मू समेत देश के कई हिस्सों में शरण ली और अब उनकी वापसी सिर्फ मुद्दा बन कर रह गई है। उन्हें वापस लिवाने की जितनी भी योजनाएं हैं वे फिलहाल कागजों पर ही हैं। यह इससे भी साबित होता है कि इतने सालों के ‘अथक’ प्रयासों के बावजूद मात्र एक परिवार ही कश्मीर लौटा था।
पिछले एक हफ्ते से पुनः वे ‘मुद्दा’ बने हुए हैं। केंद्र सरकार ने उनकी वापसी की गेंद राज्य सरकार के पाले में डालते हुए तब तक उनकी वापसी संभव न होने की बात की है, जब तक राज्य सरकार उनके लिए कश्मीर में सुरक्षित स्थानों पर बनाई जाने वाली कालोनियों के लिए सरकारी जमीन मुहैया नहीं करवाता है। जानकारी के लिए धारा 370 के कारण जम्मू कश्मीर में केंद्र सरकार सीधे तौर पर जमीन का अधिग्रहण नहीं कर सकती है।
 
पर यह अलगाववादियों को गंवारा नहीं है। वे ऐसी बस्तियों को इसराइल टाइप कालोनियों का नाम देते हुए आंदोलन छेड़े हुए हैं। पिछले साल की तरह इस बार भी आंदोलन हिंसक होता जा रहा है। याद रहे जब मुफ्ती मुहम्मद सईद ने पिछले साल सत्ता संभाली थी तो अप्रैल महीने में ही कश्मीरी पंडितों की वापसी के मुद्दे पर कश्मीर कई दिनों तक हिंसा की आग में झुलसता रहा था।
 
फिर से सब कुछ वैसा ही दोहराया जा रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि तब मुफ्ती मुहम्मद सईद सत्ता में थे और अबकी बार उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती। शासक तो बदल गया, लेकिन अलगाववादियों के विचार और इरादों के साथ ही ‘मुद्दा’ नहीं बदला है।
 
केंद्र सरकार 62 हजार के करीब पंजीकृत कश्मीरी पंडितों के परिवारों के लिए पहले चरण में कश्मीर में 6 हजार के लगभग आवास बनाने का इरादा जताते हुए 2000 करोड़ रुपए की धनराशि भी स्वीकृत कर चुकी है। मगर आवास कहां बनेंगे यह अभी भी यक्ष प्रश्न इसलिए बना हुआ है क्योंकि वर्तमान और तत्कालीन राज्य सरकारें अलगाववादियों के ‘डर’ से इन आवासों के लिए सुरक्षित जगह मुहैया करवाने को आज तक आगे नहीं आई हैं।
 
हालांकि सुरक्षाधिकारी कहते हैं कि कश्मीर में एक समय कोई भी स्थान सुरक्षित नहीं था पर अब सारे कश्मीर में हिंसा की घटनाएं अन्य शहरों की ही तरह आम हैं। तो ऐसे में कश्मीरी पंडितों को अलग बस्ती में नहीं बसाया जाना चाहिए। अलगाववादी नेता जेकेएलफ के चेयरमैन यासीन मलिक, जो इस मुद्दे पर पिछले साल लंबी भूख हड़ताल भी कर चुके हैं तथा कट्टरपंथी नेता सईद अली शाह गिलानी भी चाहते हैं कि कश्मीरी पंडितों को अलग बस्तियों में नहीं बसाया जाना चाहिए। उनके इस विरोध में अन्य अलगाववादी नेताओं के अतिरिक्त अब कुछ राजनीतिक दल भी शामिल हो चुके हैं।
 
तो ऐसे में उन्हें कहां बसाया जाए यह सवाल बहुत बड़ा इसलिए है क्योंकि जिन घरों को कश्मीरी पंडित 1990 के दशक में त्याग आए थे वे अब खंडहर बन चुके हैं। आधे से अधिक तो अपनी जगह जमीन पड़ोसियों आदि को बेच भी चुके हैं। नतीजतन कश्मीरी पंडितों की वापसी सिर्फ ‘मुद्दा’ बन कर रह गई है जिसको न सिर्फ अलगाववादी बल्कि सभी राजनीतिक दल भी भुना रहे हैं।
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