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Last Modified: शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014 (22:21 IST)

कैलाश सत्यार्थी : मेरी हार्दिक बधाई!

कैलाश सत्यार्थी : मेरी हार्दिक बधाई! - Kailash Satyarthi, Nobel Peace Prize
कैलाश सत्यार्थी को हार्दिक बधाई! कैलाशजी को नोबेल पुरस्कार नहीं मिलता तो भी मेरे दिल में उनके लिए किसी भी पुरस्कार प्राप्तकर्ता से अधिक प्रेम और सम्मान सदैव रहता। वे मेरे अनुज और सहयोगी रहे हैं। उनका जन्म विदिशा, मप्र में हुआ और एक ऐसे आर्य परिवार में हुआ, जहां समाज-सेवा और समाज-सुधार बच्चों को जन्म-घुट्टी में पिलाए जाते हैं| 
 
कैलाशजी जब नवयुवा हुए तो दिल्ली आ गए और यहां आकर वे शुरु से जन-आंदोलनों से जुड़ गए। हम लोगों ने जब भी भारतीय भाषाओं के समर्थन, सती-प्रथा के विरोध, जातीय जन-गणना की समाप्ति आदि के आंदोलन चलाए, कैलाशजी और सुमेधाजी ने उनमें बढ़ चढ़कर भाग लिया|
 
सुमेधाजी उनकी धर्मपत्नी हैं। सुमेधाजी भी एक प्रसिद्घ आर्य परिवार की बेटी हैं। सुमेधाजी के पिता पं. भारतेंद्रनाथ ने चारों वेदों के हिंदी भाष्य किए, जो भारत और विदेशों के लाखों घरों में बड़े सम्मान के साथ सुशोभित होते हैं। भारतेंद्रजी ने कई अन्य ग्रंथों की रचना भी की। वे बरसों-बरस एक आर्या पत्रिका भी चलाते रहे।
 
सुमेधाजी की वयोवृद्घ माताजी अभी भी अपने पति के काम को आगे बढ़ा रही हैं। कैलाशजी का सौभाग्य है कि उन्हें सुमेधाजी जैसी पत्नी मिली है। सुमेधाजी उनकी शक्ति हैं। वे ही उनका राजस्थान स्थित आश्रम सम्हालती हैं। उस आश्रम में मैं जाकर रहा हूं। वहां हजारों अनाथ और परित्यक्त बच्चों को पालकर सत्यार्थी दम्पती ने उन्हें नवजीवन प्रदान किया है। 
 
दोनों पति-पत्नी के अलावा उनका बेटा और बहू भी पूरे मनोयोग से बचपन बचाओ आंदोलन में लगे रहते हैं। वकील बेटा उन बच्चों को बंधनमुक्त करवाने पर डटा रहता है, जिन्हें हमारे देश में बंधुआ मजदूर बनाकर रखा जाता है| पूरा सत्यार्थी परिवार पूर्ण मनोयोग से समाज सेवा में लगा रहता है।
 
कैलाश सत्यार्थी निष्काम समाजसेवी हैं। उन्होंने कभी भी आत्म-प्रचार को प्राथमिकता नहीं दी| उन्हें नोबेल के अलावा कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं लेकिन उन्होंने उनको भुनाने की कभी कोई कोशिश नहीं की। 
 
संसार के सभी महाद्वीपों में उनकी मित्र-मंडली है लेकिन उनका और उनके परिवार का रहन-सहन मालवा के किसी कस्बाई अध्यापक की सादगी लिए रहता है। कैलाशजी को मिला नोबेल सम्मान उन महान मूल्यों का सम्मान है, जो महर्षि दयानंद सरस्वती और महात्मा गांधी ने संसार को दिए हैं।
 
कैलाशजी और सुमेधाजी की लोक-सेवा को मिला यह विश्व-सम्मान देश के उन हजारों समाजसेवियों का सम्मान है, जो अत्यंत शुद्घ और विनम्र भाव से अपना जीवन समाज के लिए होम कर रहे हैं। कैलाश सत्यार्थी और मलाला युसुफजई को मिला संयुक्त सम्मान भारत-पाक एका को रेखांकित कर रहा है।