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Written By Author सुरेश एस डुग्गर
Last Modified: सोमवार, 19 जून 2017 (17:50 IST)

कश्मीर में पत्थरबाज बने खलनायक, पर्यटन तबाह...

कश्मीर में पत्थरबाज बने खलनायक, पर्यटन तबाह... - Jammu-Kashmir stonebird villain
श्रीनगर। कश्मीर वादी में किसी भी जगह पर रौनक ना होने से टूरिस्ट सीजन तबाह हो गया है। अमरनाथ यात्रा शुरू होने को है लेकिन बाबा के भक्त यहां आएं या ना आएं इस बात को लेकर उलझन में फंसे हुए हैं। कश्मीरियों के लिए कभी कमाई के ये सबसे सुनहरे दिन होते थे, लेकिन अब दहशत के कारण होटलों के कम दाम होने पर भी यहां कोई आने को तैयार नहीं है।
 
हालात बिगड़ने की सबसे बड़ी वजह यह रही कि यहां सरकारें लोगों में भरोसा नहीं जगा पाई। बेकारी और बेरोजगारी ने लोगों को पत्थरबाज बना दिया। कई-कई दिनों तक रहने वाले कर्फ्यू और बंद के बीच पैसा कमाने का सबसे सरल जरिया पत्थरबाजी ही रह गया।
 
इस मुश्किल घड़ी में रियासत के राजनेता जनता से कोसों दूर रहे। किसी भी दल के नेताओं ने जनता की तकलीफों को समझने और उन्हें बांटने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है। इसी बेरुखी ने आग में घी डालने का काम किया है, जिससे घाटी के हालात काफी बदतर हो गए हैं।
 
चिंता की बात यह है कि पिछले कुछ दिनों के उबाल में तड़का कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी लगा रहे हैं। वे आहिस्ता आहिस्ता अपने हड़ताली कैलेंडर को फिर से लागू करने लगे हैं। सबसे अधिक डर की बात यह है कि वे कश्मीर में होने वाली नागरिकों की मौतों पर नए आंदोलन की शुरुआत करने की बात कह रहे हैं जिसे सभी अलगाववादी गुट और आतंकी संगठन अपना समर्थन देने लगे हैं।
 
यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब गर्मी से निजात पाने की खातिर लाखों की तादाद में देशभर से पर्यटक कश्मीर की ओर दौड़े चले आना चाह रहे हैं। वर्तमान में कश्मीर टूरिस्टों से खाली है। नया आंदोलन छेड़ने की चेतावनी के बाद टूरिस्ट डरने लगे हैं। हालांकि टूरिज्म से जुड़े लोग टूरिस्टों को ढांढस बंधाने की कोशिश कर रहे हैं पर इसका असर आने वाले दिनों में जरूर दिखेगा इससे कोई इंकार नहीं कर रहा है।
 
यह सच है कि आतंकियों की बढ़ती गतिविधियों और एलओसी के साथ पाकिस्तानी सैनिकों की ओर से संघर्ष विराम के उल्लंघनों में वृद्धि होने से जम्मू कश्मीर के पर्यटन को काफी आर्थिक हानि पहुंची है। उत्पन्न हुई स्थिति से निपटने के लिए विपक्ष के कुछ संगठनों विशेषकर नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) ने यह मांग शुरू कर दी है कि ताकत का प्रयोग करने की बजाय सभी संबंधित दावेदारों से बातचीत द्वारा समस्याओं का समाधान तलाशा जाए। 
 
इस मुद्दे पर सत्ताधारी भाजपा के नेताओं की ओर से कहा जा रहा है कि बातचीत के लिए वह तैयार हैं लेकिन पहले खून-खराबा बंद होना चाहिए, बंदूक और पत्थरों के साए में तो कोई अर्थपूर्ण बातचीत नहीं हो सकती है।
 
पर्यवेक्षकों का कहना है कि कश्मीर में जो कुछ हो रहा है, यह सब कुछ नया नहीं है। यह उसी छद्‍म युद्ध का भाग है, जो पाकिस्तान ने 3 युद्धों में मात खाने के पश्चात 80 के दशक के अंतिम वर्षों ऑपरेशन टोपैक के अंतर्गत शुरू किया था। पाक ने आतंक को बढ़ावा देकर कश्मीर के पर्यटन और आर्थिक स्थिति को अधिक से अधिक हानि पहुंचाई है। 
 
पाकिस्तान की अपनी स्थिति यह बनी है कि वहां का प्रधानमंत्री यह नहीं जानता कि वह कहां खड़ा है और सेना के साथ वहां धार्मिक कट्टरपंथियों का हुजूम शांति नहीं चाहता है। वहीं भाजपा वाले कहते हैं कि नेकां और कांग्रेसी अब राजनीतिक समाधान की बात करते हैं, लेकिन उन्होंने 60 साल राज करने पर ऐसा क्यों नहीं किया। यह रोग तो उन्हीं के शासनकाल में उत्पन्न हुए थे।
 
कारण चाहे कोई भी हो कश्मीर के हालात फिर से कश्मीर के टूरिज्म सीजन का बंटाधार कर चुके हैं। इस कारण पत्थरबाज एक बार फिर परिदृश्य पर छाने लगे हैं। ऐसे में अधिकारियों को अमरनाथ यात्रा पर भी पत्थरबाजों का खतरा मंडराता नजर आने लगा है। वर्ष 2008 के अमरनाथ भूमि विवाद आंदोलन के बाद हर साल पत्थरबाज कई बार अमरनाथ श्रद्धालुओं पर पत्थरबाजी कर उन्हें बीसियों की तादाद मंे जख्मी कर चुके हैं। स्पष्ट शब्दों में कहें तो कश्मीर के टूरिज्म का बंटाधार हो चुका है।
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