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Last Modified: गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016 (13:51 IST)

क्या है इशरत जहां एनकाउंटर का पूरा मामला?

क्या है इशरत जहां एनकाउंटर का पूरा मामला? - Ishrat Jaha
वर्ष 2004 में अहमदाबाद में एक पुलिस मुठभेड़ चार कथित आतंकवादी मारे गए थे, जिनमें इशरत जहां नाम की एक लडकी भी थी। उसका दूसरा साथी जावेद शेख था। दो अन्य उग्रवादी भी उसके साथ थे जिनके बारे में कहा जाता है कि वे पाकिस्तानी नागरिक थे। इनके मरने के बाद कांग्रेसी और विपक्षी दलों ने तत्कालीन मोदी सरकार पर आरोप लगाया था। इन लोगों का कहना था कि  यह लोग आतंकवादी नहीं थे और पुलिस ने इनको फर्जी एनकाउंर में गोली मारकर मार दी और मरे हुए लोगों के हाथ में हथियार थमा दिए। 
 
कांग्रेसी विपक्षी नेताओं के साथ-साथ घद्म बुद्धिजीवी और कथित मानवाधिकार संगठनों ने इस मामले को लेकर पूरी तरह से जांच करने की मांग की थी। बाद में, अहमदाबाद के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट एस. पी. तमंग ने अपनी जांच रपट में यह कहकर आग में घी डालने का काम किया कि गुजरात पुलिस के कुछ अधिकारियों ने नौकरी में पदोन्नति‍ के लिए मुंबई से कुछ निरपराध लोगों को उठाया और उन्हें अहमदाबाद लाकर रात्रि के अंधेरे में गोली से उडा दिया। उनकी बात का सीधा-सीधा अर्थ यही था ‍कि पुलिस के लोग पदोन्नति या इनाम के लालच में निर्दोष नागरिकों को मुठभेड के नाम पर मार देते हैं। 
 
लेकिन तमंग ने अपनी रपट में इस बात का खुलासा नहीं किया था कि जिन पुलिस अधिकारियों ने मुंबई में, घरों में घुसकर निर्दोष नागरिक उठाए थे उनके इस चयन का आधार क्या था? ऐसा तो नहीं हुआ होगा कि मुंबई में गुजरात के पुलिस अधिकारी मौहल्लों में घूमने लगे और जिस घर का दरवाजा खुला देखा वहां से एक आदमी को मारने के लिए उठा लिया? या फिर जो भी घर सामने आया उसका दरवाजा खटखटाया और फिर आराम से जाकर एक-एक आदमी को उठा लाए? आखिर जगह-जगह से चार आदमी उठाए तो इसका हल्ला तो मचा ही होगा? जिनके लड़के-लड़कियां उठाए गए थे उन्होंने शोर-शराबा भी किया होगा और ऐसे मामलों में आम आदमी थानों में पहुंच जाते है और शोर-शराबा करते हैं लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ नहीं किया गया ?  लेकिन यदि इस जांच पर विश्वास कर लिया जाए तो जिनके लडके-लडकियों को पुलिस उठा के ले गई थी वे आराम से घरों में उनका इंतजार करते रहे। 
 
परन्तु केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय का कुछ और कहना था। मंत्रालय का मानना है कि इशरत जहां और जावेद शेख दोनों आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त थे, इसके पुख्ता प्रमाण हैं। इसलिए जो लोग अहमदाबाद में मारे गए वे कम से कम निर्दोष नागरिक नहीं थे वरन वे छंटे हुए आतंकवादी थे। लेकिन क्योंकि राजनीतिक दलों को आतंकवाद को भी हथियार बनाकर राजनीति करनी है, इसलिए वे सुविधानुसार अपनी भाषा और बयान बदल लेते हैं। परन्तु केन्द्र सरकार की दिक्कत यह थी कि वह इशरत जहां के मामले में यह नहीं कर सकती थी क्योंकि गृह मंत्रालय ने न्यायालय में बाकायदा शपथ पत्र दाखिल करके इशरत जहां और जावेद शेख के आतंकवादी होने का खुलासा किया था। 
 
लेकिन इस स्थिति से बचने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के गृह मंत्रालय ने कहा कि यह ठीक है कि ये दोनों आतंकवादी थे लेकिन आतंकवादियों को मारने का भी एक निश्चत तरीका होता है और गुजरात पुलिस ने उन्हें जिस तरीके से मारा है वह बहुत ही निदंनीय और आपत्तिजनक है। हालांकि यह बात सभी जानते हैं कि शायद गृह मंत्रालय ने आतंकवादियों को मारने के लिए कोई नियम और पक्रिया निर्धारित नहीं की है। 
 
इस देश में आतंकवाद से निपटने में जिस पुलिस अधिकारी का बार-बार जिक्र किया जाता है उसका नाम के.पी.एस. गिल है। गिल ने पंजाब में आतंकवाद को समाप्त करने में सफलता प्राप्त की और एक प्रकार से पंजाब को बचा पाने में कामयाब हो गए। तब केन्द्र सरकार खुद यह कहती रही थी कि पंजाब में आतंकवाद अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के साथ छदम युद्ध ही था। गिल ने उस छदम युद्ध में आतंकवादियों का सफाया करके भारतीय इतिहास में नया कीर्तिमान स्थापित किया था। 
 
जब पूरी सरकारी मशीनरी ने,  जो ऐसी घटनाओं में तथाकथित फेक एनकाउंटर की जांच में लग जाती है़ ने पूरी तरह दम तोड दिया था। और पुलिस जिन आतंकवादियों को जान हथेली पर रखकर पकडती थी वे न्यायालय से बाइज्जत बरी हो जाते थे। पंजाब के आतंकवाद के दिनों में शायद ही कोई आतंकवादी हो, जिसको न्यायालय से सजा प्राप्त ना हुई लेकिन ऐसे आतंकवादी आजतक  राजनीति की आड़ में बचने में सफल हुए हैं। तब गिल ने आतंकवादियों को आतंकवादियों के तरीके से ही निपटाया और तब फेक एनकांउटरों की वकालत करने वाली सरकारी मशीनरी पूरी तरह गिल की पीठ थपथपाने पर विवश हुई थी। 
 
पंजाब के उस समय के राज्यपाल सिद्धार्थ शंकर राय ने तो गिल-बजाज नाम के बदनाम केस में भी गिल का यह कहकर बचाव किया था कि गिल इस समय पूरे देश के लिए लडाई लड रहे हैं। लेकिन जब इस लडाई में गिल जीत गए तो वही सरकारी मशीनरी उनके पीछे हाथ धोकर पड गई कि उन्होंने आतंकवादियों को झूंठी मुठभेडों में मारा है। जिसके कारण उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है। पंजाब के तरनतारन जिला में, जिसके बारे में कहा जाता था कि वह लगभग आतंकवादियों के कब्जे में चला ही गया था। उस समय के डीएसपी अजीत सिंह ने आतंकवाद का सफाया किया था पर जब पंजाब में शांति स्थापित हो गई तो उस अजीत सिंह पर झूठी मुठभेडों के इतने मुकदमे सरकार ने दर्ज करवाए कि उसने रेलगाड़ी के आगे छलांग लगा कर आत्महत्या कर ली।
 
लेकिन जब इशरत जहां और जावेद शेख जैसे दुर्दांत आतंकवादी मारे जाते है और उनसे किसी पकार का भी खतरा बचा नहीं रहता तो अपने घरों में छिपे हुए अनेक लोग चौकन्ने होकर सडकों पर निकलते हैं और राजनीति के नाम पर फिर उसी पुरानी कारगुजारी करने लगते हैं, जिसके चलते अजीत सिंह जैसे अधिकारियों को आत्महत्या करनी पडती है और जिसके चलते गुजरात के पुलिस अधिकारी बंजारा जेल में सडते रहे हैं। आतंकवाद से लडना सेमिनारों में भाषण देना नहीं है, और न ही वातानुकूलित कमरों में बैठकर जांच की पक्रिया पूरी करना है, न ही किसी संपादक के कमरे में बैठकर साप्ताहिक स्तम्भ के लिए इशरत जहां की मौत पर आंसू बहाना है। 
 
आतंकवाद से लडाई जान हथेली पर रखकर लडनी पडती है जिसमें जो पक्ष पहले गोली चला देता है वह ही जीतता है। लेकिन मानवाधिकारवादी और इसके समर्थक नेता चाहते हैं कि पुलिस पहली गोली न चलाए और आतंकवादियों को जीतने का मौका दे दे। इशरत जहां की मौत को इसी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए। 
         
लेकिन इस मामले में मुंबई पर 26/11 हमले के अपराधी डेविड हेडली ने वैसे तो कई खुलासे अपनी गवाही के दौरान किए हैं,  लेकिन, गुजरात में हुए इशरत जहां के मामले में किया गए खुलासे के बाद भारत में राजनीति गरमा गई है क्योंकि हैडली ने माना है कि इशरतजहां सुसाइड बॉम्बर (आत्मघाती हमलावर) थी। इस मामले में अमेरिका में पूछताछ और अपनी वीडियोकॉन्फ्रेंसिंग की गवाही के जरिए बताया कि लश्कर-ए-तैयबा में महिला सुसाइड बॉम्बर हैं? इशरत जहां को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को मारने की जिम्मेदारी दी गई थी। अक्षरधाम हमले की जिम्मेदारी भी इशरत जहां को दी गई थी।
 
हैडली के खुलासे के बाद बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन ने सवाल किया है कि इशरत को अपनी बेटी बताने वाले अब कहां गए? इशरत जहां मुंबई के मुंब्रा इलाके की रहने वाली थी और कॉलेज स्टूडेंट थी। 19 साल की इशरत मध्यमवर्गीय परिवार से थी।15 जून 2004 को अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने एक एनकाउंटर किया था। इस एनकाउंटर में इशरत जहां और उसके चार साथियों की मौत हो गई थी। तब गुजरात पुलिस का दावा था कि इशरत और उसके तीनों साथी गुजरात के तब के सीएम और अब पीएम नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने अहमदाबाद आए थे।
 
गुजरात हाईकोर्ट के ऑर्डर पर बनाई गई एसआईटी ने इस मुठभेड़ को फर्जी करार दिया था। कोर्ट के ऑर्डर पर सीबीआई ने इस एनकाउंटर की जांच शुरू की। कई सीनियर पुलिस ऑफिसर्स पर सवाल उठे और उन्हें गिरफ्तार किया। सीबीआई ने आरोपी को सरकारी गवाह बनाया और सारे मामले को शीर्षासन करा दिया गया। इशरत जहां के साथ प्रणेश पिल्लई उर्फ जावेद शेख ( नकली नोटों की तस्करी में शामिल था और इशरत का दोस्त था) भी मारा गया था।
 
अन्य दो लोग मारे गए थे उनके नाम अमजद अली राणा और जीशान जौहार पाकिस्तानी नागरिक था। उसके बारे में कभी ज्यादा जानकारी सामने नहीं आई। अमजद और जीशान की लाशों पर भी  किसी ने दावा नहीं किया था। इस एनकाउंटर मामले को लेकर देश में बड़ा विवाद छिड़ गया था।
हालांकि तब भी यह कहा गया था कि इशरत, लश्कर के फिदायीन दस्ते में शामिल थी और उसे लश्कर के आतंकवादी मुजामिल ने अपने दस्ते में शामिल किया था। हैडली ने अपनी गवाही में कहा था कि वह और मुजामिल, आतंकी सरगना हाफिज से भी मिले थे।
 
जावेद शेख (जोकि मूल रूप से प्रणेश पिल्लई था)  इशरत का बॉयफ्रेंड था। तब कुछ ऐसे  दस्तावेज भी बरामद हुए थे जिनसे इन बातों की पुष्टि होती थी लेकिन यह सभी बातें राजनीतिक शोरशराबे में दब गई थीं। पर हैडली के इशरत पर खुलासे से गुजरात पुलिस और केंद्र के रुख की पुष्टि हुई है।
 
लेकिन वर्ष 2013 में सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में इशरत जहां को एक तरह से बेगुनाह बताते हुए उसे केवल कॉलेज स्टूडेंट बताया था। हालांकि आईबी ने सीबीआई की थ्योरी को खारिज करते हुए पूछा कि मुंबई की स्टूडेंट हथियारों के साथ अहमदाबाद क्यों पहुंची? अगर किडनैप की गई थी तो फैमिली ने रिपोर्ट दर्ज क्यों नहीं कराई? आईबी ने उसे लश्कर आतंकी बताते हुए पूछा था कि मारे गए लोगों के पास हथियार कहां से आए थे?
 
लेकिन कांग्रेस महासचिव दिग्वजय सिंह ने कई वर्ष पहले तब की यूपीए सरकार से पूछा था कि इशरत का सच क्या है? क्यों देश की दो सबसे बड़ी जांच एजेंसियां उस पर अलग-अलग नजरिया रखती हैं? तब के गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने जांच का भरोसा दिया। हालांकि उन्होंने कभी इस एनकाउंटर को फर्जी नहीं बताया। इसको लेकर पार्टी के कुछ नेता उनसे नाराज भी हुए थे।
 
अमेरिका में हेडली ने जो गवाही दी थी उसमें भी उसने इशरत को लश्कर आतंकी ही बताया था। इसके बाद यूपीए सरकार ने लीपापोती करते हुए सीबीआई से जांच करने को कहा था। सीबीआई ने पूर्व डीआईजी, डीजी वंजारा समेत 7 लोगों को आरोपी बनाया था। कोर्ट की इजाजत के बाद सीबीआई ने 2013 में उन्हें साबरमती जेल से हिरासत में लिया था। 
 
सीबीआई के मुताबिक, वंजारा ने डिटेक्शन ऑफ क्राइम ब्रांच (डीसीबी), अहमदाबाद की टीम को लीड किया था। प्लानिंग उन्हीं की थी। इसी टीम ने इशरत और उसके साथियों का एनकाउंटर किया था। कई अन्य शीर्ष पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया था। कोर्ट में 2009 में शिकागो से गिरफ्तार 55 साल के दाऊद गिलानी उर्फ डेविह कोलमैन हैडली की मुंबई की स्पेशल कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गवाही चली। हैडली पाकिस्तानी मूल का अमेरिकी नागरिक है और वह अमेरिकी जेल में बंद है।
 
मुंबई में स्पेशल कोर्ट ने 10 दिसंबर, 2015 को 26/11 आतंकी हमलों के मामले में हैडली को वादा माफ गवाह बनाते हुए उसे 8 फरवरी, 2016  को पेश होने के ऑर्डर दिए थे। हैडली ने अपनी गवाही के चौथे दिन पिछले गुरुवार को कहा,  कि 'यह लश्कर-ए-तैयबा का एक ऑपरेशन था जिसमें किसी नाके पर पुलिस को शूट करने की साजिश थी। इसमें लश्कर-ए-तैयबा की महिला इशरत जहां शामिल थी।’
 
कोर्ट में स्पेशल प्रॉसिक्यूटर उज्जवल निकम ने बताया कि गवाही के दौरान उन्होंने हैडली से खासतौर पर पूछा था कि क्या लश्कर में कोई महिला फिदायीन हमलावर शामिल है? निकम का कहना था कि पहले तो हैडली ने इनकार किया लेकिन बाद में इशरत जहां का नाम बताया और  इससे साबित है कि हमारे देश में राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले भी राजनीति की भेंट चढ़ जाते हैं।