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Last Modified: सोमवार, 27 फ़रवरी 2017 (23:00 IST)

इंटरनेट पर आपत्तिनजक सामग्री रोकने में सरकार बेबस

इंटरनेट पर आपत्तिनजक सामग्री रोकने में सरकार बेबस - Internet, objectionable content
नई दिल्ली। सरकार ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष स्वीकार किया कि इस समय ऐसी कोई प्रणाली नहीं है जो वेबसाइटों पर यौन हिंसा के वीडियो जैसी आपत्तिजनक सामग्री अपलोड करने से पहले इस पर रोक लगा सके। न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने इस बारे में सरकार का रुख पूछा था। इससे पहले इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी गूगल ने कहा था कि इस तरह की विषय-वस्तु को वेबसाइटों पर डालने से पहले उचित रोकथाम का कोई तरीका नहीं है।
केंद्र की ओर से पक्ष रख रहे वकील ने कहा कि आज, वेबसाइटों पर इस तरह की सामग्री को अपलोड किए जाने से रोकने के लिए कोई प्रणाली नहीं है। इस पर पीठ ने पूछा कि ऐसी कोई प्रणाली क्यों नहीं है? इस पर सरकार ने जवाब दिया कि किसी को हमें इस बारे में सूचना देनी होगी। इस बारे में निवारक प्रणालियां हैं। सुनवाई के दौरान गूगल इंडिया की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि वेबसाइटों पर इस तरह की सामग्री अपलोड करने से पहले ऐसा करने वाले व्यक्ति का पता लगा पाना करीब करीब असंभव ही है।
 
हालांकि उन्होंने कहा कि अगर कोई आदतन अपराधी है और बार-बार इस तरह की चीजें इंटरनेट पर डाल रहा है तो गूगल उस पर कार्रवाई कर सकती है। इस मामले में केंद्र के हलफनामे का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि सरकार ने जो कदम बताये हैं वे बाद में उठाये जाने वाले लगते हैं। पीठ ने दलीलों पर सुनवाई के लिए 3 मार्च की तारीख तय की। सरकार ने पहले शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि वह सोशल नेटवर्किंग साइटों पर यौन अपराधों के वीडियो रोकने और उन्हें शेयर किए जाने से रोकने के लिए एक विशेष नोडल एजेंसी बनाएगी।
 
उच्चतम न्यायालय ने इससे पहले गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, याहू और फेसबुक जैसी प्रमुख इंटरनेट कंपनियों से उक्त विषय पर जवाब मांगा था। अदालत हैदराबाद के एनजीओ प्रज्वला द्वारा भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू को भेजे एक पत्र पर सुनवाई कर रही थी। इस पत्र के साथ एक पेनड्राइव में बलात्कार के दो वीडियो भेजे गए थे। अदालत ने व्हाट्सएप पर ये वीडियो डाले जाने के संबंध में पत्र का स्वत: संज्ञान लेते हुए सीबीआई से जांच करने और अपराधियों को पकड़ने को कहा था। (भाषा)