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Last Updated : सोमवार, 24 अक्टूबर 2016 (19:59 IST)

सायरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप से क्यों जाना पड़ा?

सायरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप से क्यों जाना पड़ा? - Cyrus Mistry, Ratan Tata, chairman of Tata,
व्यापार की दुनिया के बड़े घटनाक्रम में टाटा संस के बोर्ड ने साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया। इस खबर से उद्योग जगत हैरत में है कि आखिर जिस सायरस को बहुत सोच समझकर यह पद दिए जाने के दावे किये गए थे, उसके बाद अचानक ऐसा क्या हुआ कि उन्हें हटाकर खुद रतन टाटा अंतरिम चेयरमैन बन गए। 
टाटा संस ने नए चेयरमैन की खोज के लिए पांच सदस्यों वाली एक समिति का गठन किया है और तब तक चार महीनों के लिए 78 वर्षीय रतन टाटा को कंपनी के अंतरिम चेयरमैन पद की जिम्मेदारी संभालेंगे।  
 
टाटा समूह को पिछले कुछ माह में आशनुरुप परिणाम नहीं रहे हैं और यूरोप में उन्हें अपने कुछ उपक्रम बंद भी करने पड़े हैं। ग्रुप का घाटा पहले ही अपेक्षा अधिक हुआ है तो क्या इस बढ़ते घाटा का सायरस को हटाने के फैसले से कोई संबंध है? टाटा एक व्यक्ति आधारित नहीं बल्कि प्रक्रिया आधारित कंपनी है, इसके बावजूद मिस्त्री को हटाकर फिर से रतन टाटा को लाना यह दिखाता है कि टाटा आज फिर वहीं आ गया है जहां 2012 में उसे किसी योग्य चेरमैन की तलाश थी। 
 
सायरस की नियुक्ति के समय रतन टाटा ने कहा था, टाटा संस के डिप्टी चेयरमैन के रूप में साइरस पी मिस्त्री का चयन एक अच्छा और दूरदर्शितापूर्ण निर्णय है । रतन टाटा ने तब कहा था, उनके गुणों, भागीदारी की उनकी क्षमता, कुशाग्रता तथा नम्रता से प्रभावित हुआ।
 
टाटा ग्रुप का कुल राजस्व बढ़ रहा है, लेकिन कुछ कंपनियां लगातार घाटे में हैं। पिछली तिमाही में यूरोप में टाटा स्टील को 31.8 बिलियन रुपए का नुकसान हुआ। इससे पहले की तिमाही  रिपोर्ट में भी टाटा स्टील को 477 मिलयिन डॉलर का नुकसान हुआ था। 
 
टाटा ने अपने कुछ प्रोजेक्ट यूरोपीय देशों में बंद कर दिए हैं और कार्पोरेट जगत में घाटा के ये आकंड़े कोई नई बात नहीं हैं। नुकसान दर्शाते आंकड़ों का अगर सायरस के ग्रुप से जाने से कोई संबंध है तो यह बहुत गंभीर बात है। 
 
इसके अलावा रतन टाटा ने भले ही चार महीनों के लिए ही सही, लेकिन कमान अपने हाथों मे ली है। क्या वे फिर से ग्रुप को उसी रफ्तार से चला पाएंगे, जो उन्होंने अपने स्वर्णिम दिनों में किया? 
 
अभी सिर्फ सायरस के टाटा ग्रुप से चले जाने की खबर आई है। कुछ दिनों बाद महीनों से लगी  धूल की परतें खुलेंगी तो सच सामने आएगा। फिलहाल टाटा ग्रुप और रतन टाटा के लिए चुनौती सच में बड़ी है।
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