अब कश्मीर में भी बढ़ी भाजपा की मुसीबत
श्रीनगर। दिसंबर 2013 में आए चुनाव नतीजों में कश्मीर में सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में सामने आने वाले पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी पर दिल्ली के चुनाव परिणामों के बाद यह दबाव बढ़ने लगा है कि वह आप के रास्ते पर चलते हुए राज्य में पुनः चुनाव की मांग करे और आंधी की तरह छा जाए। हालांकि पीडीपी के भीतरी सूत्र ऐसा संभव नहीं मानते जिनका कहना है कि जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक समीकरण दिल्ली से पूरी तरह से अलग हैं।
हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में पीडीपी ने 28 सीटों पर विजय हासिल की थी और भाजपा 25 सीटों पर कब्जा जमाने में कायमाब हुई थी। राज्य में 1 माह से अधिक का समय हो गया है कि राज्यपाल का शासन जारी है और भाजपा दिल्ली चुनावों के नतीजों के बाद ही राज्य में सरकार बनाना चाहती थी।
अब जबकि दिल्ली में भाजपा का सूपड़ा पूरी तरह से साफ हो गया है, राज्य में भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार पर किसी और ने ही नहीं, बल्कि पीडीपी के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने ही सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। एक पीडीपी नेता के बकौल, दिल्ली में हारने वाली भाजपा अब किसी भी शर्त को मानने को तैयार होगी, पर वह सरकार चलाने में अड़ंगा जरूर डालती रहेगी।
ऐसे में पीडीपी कार्यकर्ताओं की मांग थी कि पीडीपी नेतृत्व को ‘आप’ से सबक सीखते हुए राज्य में फिर से चुनाव करवाने की मांग करनी चाहिए। इन कार्यकर्ताओं को यह विश्वास है कि पीडीपी राज्य में अन्य दलों का सूपड़ा साफ कर सकती है और चुनाव नतीजों के बाद अपने दम पर सरकार का गठन कर पाएगी।
पर पीडीपी प्रवक्ता नईम अख्तर कार्यकर्ताओं और कुछ पीडीपी नेताओं की इस मांग से सहमत नहीं थे। उनका कहना था कि जरूरी नहीं है कि जो नियम एक राज्य में परिणाम देते हैं वे दूसरे में भी वैसा ही परिणाम देंगे।
उनका कहना था कि जम्मू-कश्मीर में तीनों संभागों- जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से अलग हैं जिस कारण कोई भी राजनीतिक दल तीनों संभागों में आशातीत सफलता हासिल नहीं कर सकता।