शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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ढह सकता है भाजपा की उम्मीदों का किला

ढह सकता है भाजपा की उम्मीदों का किला - BJP
-अनिल जैन
महज चार महीने पहले पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में सत्तासीन होकर अपने को अजेय मान चुकी भाजपा को चुनावी मोर्चे पर ही एक के बाद एक झटके लगते जा रहे हैं। पिछले चार महीनों में उत्तराखंड, बिहार, कर्नाटक, उत्त्र प्रदेश, राजस्थान, गुजरात आदि राज्यों में विधानसभा की कई सीटों के लिए हुए उपचुनाव में मुंह की खाने के बाद अब अगले महीने महाराष्ट्र और हरियाणा में होने जा विधानसभा चुनाव में भी उसकी संभावनाओं पर सवालिया निशान लग गए हैं। अपने को गठबंधन की राजनीति का चैंपियन मानने वाली भाजपा के लिए दोनों ही राज्यों में उसके सहयोगी दलों ने धर्मसंकट की स्थिति पैदा कर दी है। गठबंधन की राजनीति में संभवतः यह पहला मौका है जब केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन के घटक दल राज्यों में एक-दूसरे की गर्दन नापने पर आमादा हैं।
 
कुछ दिनों पहले जब महाराष्ट्र और हरियाणा के लिए चुनाव कार्यक्रम का एलान हुआ था तब भाजपा को उम्मीद थी कि वह इन दोनों सूबों में मोदी लहर पर सवार होकर सरकार बना लेगी। लेकिन नामांकन की आखिरी तारीख नजदीक आते-आते उसका सारा गणित गड़बड़ा गया। महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ उसका 25 साल पुराना गठबंधन टूट जाने की वजह से उसे बेहद सीमित प्रभाव वाली तीन छोटी-छोटी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ना पड़ रहा है। हालांकि चुनाव नतीजे आने के बाद के संभावित हालात के मद्देनजर वह शिवसेना के बार-बार उकसाने तथा तल्ख बयान दिए जाने के बावजूद उसके खिलाफ कुछ बोलने से परहेज कर रही है।
 
शिवसेना केंद्र में भाजपा की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी सहयोगी है। उसके लोकसभा में 18 तथा राज्यसभा में चार सदस्य हैं। उसके वरिष्ठ सांसद अनंत गीते नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री हैं। बहरहाल, महाराष्ट्र में दोनों पुराने सहयोगी अब एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव में उतर रहे हैं। हालांकि जाहिरा तौर पर भाजपा के तमाम नेता दावा कर रहे हैं कि वे राज्य में अकेले के दम पर बहुमत हासिल कर सरकार बना लेंगे, लेकिन पार्टी अंदर ही अंदर बेहद आशंकित है। 
 
महाराष्ट्र के अलावा हरियाणा में भी भाजपा को अपनी संभावनाओं को पलीता लगने का अंदेशा सता रहा है। तीन दिशाओं में दिल्ली की सीमा से सटे इस प्रदेश में भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान अपने ही पुराने सहयोगियों से होता नजर आ रहा है। ओमप्रकाश चौटाला के इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से तो उसकी दोस्ती पहले ही टूट चुकी थी और चौधरी भजनलाल के बेटे कुलदीप विश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) से भी सीटों के बंटवारे के सवाल पर उसका तीन साल पुराना गठजोड़ पिछले दिनों टूट चुका है। हालांकि इसके लिए हजकां ने भाजपा को ही जिम्मेदार ठहराते हुए उस पर विश्वासघात करने का आरोप लगाया है।
 
भाजपा ने मोदी लहर की खुमारी और अमित शाह की सोनीपत रैली में जुटी भीड़ से उत्साहित होकर हजकां से नाता तो तोड़ लिया, लेकिन अब उसे कांग्रेस के साथ ही इनेलो और हजकां से अकेले टकराना भारी लग रहा है। इसके अलावा टिकट बंटवारे को लेकर पार्टी में हो रही बगावत भी उसका सिर दर्द बढ़ा ही रही है। रही सही कसर अकाली दल पूरी कर रहा है, जो केंद्र की सत्ता में तो उसका साझेदार है और प्रकाशसिंह बादल की पुत्रवधू हरसिमरत कौर मंत्री भी हैं। अकाली दल हरियाणा के चुनाव में खुलकर इनेलो की मदद कर रहा है। उसने इनेलो के समर्थन से हरियाणा में अपने दो उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में उतारे हैं।  
 
हाल ही में चौधरी देवीलाल की सौवीं जयंती के मौके पर जींद में आयोजित इनेलो की रैली के मंच पर उपस्थित होकर भी अकाली नेता और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल ने स्पष्ट कर दिया है कि इस चुनावी कुरुक्षेत्र में भाजपा उनसे किसी तरह की मदद की उम्मीद न रखे। गौरतलब है कि देवीलाल और उनके परिवार से बादल परिवार के गहरे रिश्ते रहे हैं। जींद की रैली के लिए भी काफी सारे संसाधन जुटाने में सुखबीर बादल ने भरपूर मदद की। इस रैली के मंच से पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, जनता दल (यू) अध्यक्ष शरद यादव, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जमानत पर जेल से बाहर आए ओमप्रकाश चौटाला ने राज्य की कांग्रेस सरकार के साथ-साथ नरेंद्र मोदी और भाजपा पर भी जमकर निशाना साधा। यह सब बादल की मौजूदगी में हुआ। 
 
अकाली दल और खासकर उसके नेता बादल की इस पैंतरेबाजी से हरियाणा में भाजपा की स्थिति बेहद हास्यास्पद हो गई है। राज्य के भाजपा नेताओं ने इस बारे में अपने केंद्रीय नेतृत्व से चर्चा की  तो वहां से भी उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। हरियाणा भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक उन्हें उम्मीद थी कि केंद्रीय नेतृत्व इस बारे में अकाली दल के नेतृत्व से बात करेगा या इस बारे में कोई बयान जारी कर अकाली दल के रूख पर अपनी आपत्ति जताएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। हालांकि सूत्र बताते है कि पार्टी नेतृत्व चुनाव नतीजे आने के बाद की संभावित स्थिति के मद्देनजर एक रणनीति के तहत बादल कै रवैये पर चुप्पी साधे हुए हैं।
 
दरअसल, राज्य में हो रहे चुनाव को लेकर पार्टी ने एक सर्वे कराया है जिसके मुताबिक चुनाव में भाजपा दूसरे या तीसरे नंबर पर रहेगी। बहुमत के आसपास तो कतई नहीं। अगर चुनाव नतीजे सर्वे के अनुमानों के मुताबिक आए तो कांग्रेस को सरकार बनाने से रोकने के लिए पार्टी को इनेलो की मदद की जरूरत पड़ेगी और यह काम बगैर बादल की मदद के संभव नहीं होगा। यही सोचकर भाजपा नेतृत्व फिलहाल 'रुको और देखो' की नीति पर चल रहा है।