गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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पाकिस्तानियों को शायद ही मिले भारत से शक्कर-शरबत

पाकिस्तानियों को शायद ही मिले भारत से शक्कर-शरबत - Baba Chamaliyal Dargah, Chamaliyal Mela, Pakistani
श्रीनगर। भारत-पाकिस्‍तान सीमा पर स्थित चमलियाल दरगाह पर 22 जून को अंतरराष्ट्रीय मेला लगेगा या नहीं, यह सवाल सबके दिल में है। वैसे वीरवार को पाकिस्तान के गांव सैदांवाली स्थित बाबा की मजार पर मेले का आगाज हो चुका है, जो सात दिन तक चलेगा। दरगाह सैदांवाली पर लाउडस्पीकरों से बाबा की महिमा का गुणगान किया जा रहा है। वहीं भारतीय क्षेत्र स्थित बाबा चमलियाल दरगाह पर भी सूफी जागरण का सिलसिला जारी है। 
 
वीरवार को भी यहां संगत ने बाबा चमलियाल के जयकारों और उनकी महिमा का गुणगान कर पूरी सरहद का माहौल भक्तिमय बना दिया था। पर इस बार मेले के आयोजन को लेकर आशंकाओं का दौर भी जारी है। पाकिस्तानी रेंजर्स तथा बीएसएफ के बीच कमांडर स्तर की बैठक में मेले के आयोजन को लेकर सहमति हो चुकी है पर जिस तरह से एलओसी और इंटरनेशनल बार्डर पर पाकिस्तान द्वारा लगातार सीजफायर का उल्लंघन किया जा रहा है उसने मेले के आयोजन पर शंका पैदा करनी आरंभ कर दी है। दरअसल पाकिस्तानी सेना पिछले हफ्ते ही मेले वाले स्थान को भी अपनी भारी गोलीबारी का निशाना बना चुकी है और ऐसे में बीएसएफ अधिकारी दुविधा में हैं कि वे मेले के आयोजन की अनुमति दें या नहीं जिसमें लाखों लोग शिरकत करेंगे।
 
परंपरा के अनुसार पाकिस्तान स्थित सैदांवाली चमलियाल दरगाह पर वार्षिक साप्ताहिक मेले का आगाज वीरवार को होता है और अगले वीरवार को समापन। भारत-पाक विभाजन से पूर्व सैदांवाली तथा दग-छन्नी में चमलियाल मेले में शरीक हुए बुजुर्ग गुरबचन सिंह, रवैल सिंह, भगतू राम व लेख राज ने बताया कि यह ऐतिहासिक मेला है। पाकिस्तान के गांव तथा शहरों के लोग बाबा की मजार पर पहुंच कर खुशहाली की कामना करते हैं।
 
भारत-पाक के बीच सरहद बनने के बाद मेले की रौनक कम हो गई। पहले मेले के सातों दिन बाबा की मजार पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता था। वर्तमान में मेले के आखिरी तीन-चार दिन ही अधिक भीड़ रहती है। जिस दिन भारतीय क्षेत्र दग-छन्नी स्थित बाबा चमलियाल दरगाह पर वार्षिक मेला लगता है, उस दिन पाकिस्तान को तोहफे के तौर पर पवित्र शरबत और शक्कर भेंट की जाती है। भेंट किए गए शरबत और शक्कर को सैदांवाली स्थित चमलियाल दरगाह ले जाकर संगत को बांटा जाता है। पाक श्रद्धालु कतारों में लगकर पवित्र शरबत-शक्कर हासिल करते हैं।
 
क्या है चमलियाल मेले की कथा.... पढ़ें अगले पेज पर...

जीरो लाइन पर स्थित चमलियाल सीमांत चौकी पर जो मजार है वह बाबा दिलीपसिंह मन्हास की समाधि है। इसके बारे में प्रचलित है कि उनके एक शिष्य को एक बार चम्बल नामक चर्मरोग हो गया था। बाबा ने उसे इस स्थान पर स्थित एक विशेष कुएं से पानी तथा मिट्टी का लेप शरीर पर लगाने को दिया था। उसके प्रयोग से शिष्य ने रोग से मुक्ति पा ली। इसके बाद बाबा की प्रसिद्धि बढ़ने लगी तो गांव के किसी व्यक्ति ने उनका गला काटकर उनकी हत्या कर दी। बाद में उनकी हत्या वाले स्थान पर उनकी समाधि बनाई गई। प्रचलित कथा कितनी पुरानी है, इसकी कोई जानकारी नहीं है।
 
इस मेले का एक अन्य मुख्य आकर्षण भारतीय सुरक्षाबलों द्वारा ट्रॉलियों तथा टैंकरों में भरकर ‘शक्कर’ तथा ‘शर्बत’ को पाक जनता के लिए भिजवाना होता है। इस कार्य में दोनों देशों के सुरक्षाबलों के अतिरिक्त दोनों देशों के ट्रैक्टर भी शामिल होते हैं और पाक जनता की मांग के मुताबिक उन्हें प्रसाद की आपूर्ति की जाती है।
 
बदले में सीमा पार से पाक रेंजर उस पवित्र चादर को बाबा की दरगाह पर चढ़ाने के लिए लाते हैं जिसे पाकिस्तानी जनता देती है। दोनों सेनाओं का मिलन जीरो लाइन पर होता है। यह मिलन कोई आम मिलन नहीं होता।
 
इलाज यूं होता है : दरगाह पर सालभर आने वाले रोगियों के लिए सीमा सुरक्षाबल की ओर से तो एक ‘प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र’ की स्थापना भी की गई है जिसके प्रति रोचक तथ्य यह है कि यह उस ‘युद्धक्षेत्र’ में स्थित है जहां प्रतिदिन अब गोलियों की बरसात होती है। सालभर अपने चर्मरोगों का उपचार करने तथा मन्नत मांगने के लिए आने वालों का तांता लगा ही रहता है इस मजार पर जहां सराय के रूप में कुछ कमरों की स्थापना की गई है जिसका प्रबंध सीमा सुरक्षाबल के हाथों में है।
 
'हम हैं सीमा सुरक्षाबल'? : संबंधों में उतार-चढ़ाव के बावजूद पाकिस्तानी रेंजरों ने इस बार भी सीमा पर लगने वाले उस चमलियाल मेले में शिरकत को मंजूरी दे दी है, लेकिन इस मेले में पाक रेंजरों की शिरकत की क्या कोई शर्त है या नहीं इस पर अभी रहस्य बना हुआ है। यह रहस्य इसलिए बना हुआ है क्योंकि हर बार वे साफ तौर पर कह जाते हैं कि अगर बीएसएफ ने ‘हम हैं सीमा सुरक्षाबल’ गीत को बजाया तो वे मेले में शिरकत नहीं करेंगे। यही कारण है कि पाक रेंजरों की शिरकत को यकीनी बनाने की खातिर पिछले कई सालों से बीएसएफ इस गीत को नहीं बजा रही है।
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