जानिए कितनी खतरनाक परिस्थितियां हैं सियाचीन में...
भारतीय सेना के 10 जांबाज जवान बर्फ में दफन होने से सियाचीन में शहीद हो गए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि किन विषम और विकट परिस्थितियों का सामना करते हैं लांस नायक हनुमंथप्पा और उनके जैसे कई जवान सियाचीन में...
सियाचिन से विषम सैन्य क्षेत्र पूरे विश्व में नहीं है। सियाचिन में ठंड में तापमान शून्य से 50 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे पहुँच जाता है। यहां तेज हवाओं में उड़ते बर्फीले कण पलभर में नश्तर की तरह शरीर में जानलेवा चोट पहुंचा सकते हैं।
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सियाचीन विश्व का सबसे ऊंचा सैन्य स्थल है और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है जहां 1984 से ही भारत पाकिस्तान की सेनाएं आमने सामने हैं। यहां एक लीटर ईन्धन लाने की अनुमानित कीमत 20 हजार रुपए तक हो सकती है।
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यह क्षेत्र कितना दुर्गम है इसका पता इस बात से ही चलता है कि सेना के बेस कैंप से सबसे दूर चौकी है इंद्रा कौल और सैनिकों को वहाँ तक पैदल जाने में लगभग 20 से 22 दिन का समय लग जाता है।
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यहां किसी भी सैनिक या अधिकारी की पोस्टिंग सिर्फ तीन महीने के लिए ही होती है। यहां कार्यरत सैनिकों को विशेष भत्ता भी मिलता है। खाने में सिर्फ पैकेट और हाई प्रोटीन, कार्बोहाइडरेट वाला खाना होता है।
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यहां सूर्य इतना चमकदार दिखाई देता है कि उसकी चमक सफेद बर्फ़ पर पड़ने के बाद आँखों में जाए तो आँखों की रोशनी जाने का खतरा बना रहता है। रातें इतनी ठंडी हो जाती हैं कि गलती से भी कुछ समय ठंड में रह लें तो हाइपोर्थमिया से मौत हो सकती है।
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ऑक्सीजन इतनी कम होती है कि सैनिक ठीक से सो भी नहीं पाते क्योंकि ऑक्सीजन की कमी की वजह से कभी-कभी सैनिकों की सोते समय ही जान चली जाती है। इसीलिए हर कुछ घंटे में संतरी सभी सैनिकों को जगा देता है।
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यहां मदद सिर्फ चीता हेलिकॉप्टर से ही पहुंच सकती है और सामान्य मानकों के तहत चीता सिर्फ 30 सेकेंड तक ही हेलिपेड पर ठहरता है क्योंकि उसे दुश्मन की गोलियों से बचना होता है।
जानें क्या है लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल :
क्या है लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल : क़रीब 18000 फुट की ऊँचाई पर स्थित दुनिया के सबसे ऊँचे रणक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर पर भारत ने एनजे-9842 के जिस हिस्से पर नियंत्रण किया है, उसे सालटोरो कहते हैं। यह वाटरशेड है यानी इससे आगे लड़ाई नहीं होगी। सियाचिन का उत्तरी हिस्सा-कराकोरम भारत के पास है। पश्चिम का कुछ भाग पाकिस्तान के पास भी है। सियाचिन का ही कुछ भाग चीन के पास भी है। एनजे-9842 ही दोनों देशों के बीच लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल यानी वास्तविक सीमा नियंत्रण रेखा है।
भारत ने 1985 में ऑपरेशन मेघदूत के ज़रिए एनजे-9842 के उत्तरी हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। पाकिस्तान की मांग रही है कि भारतीय सेना 1972 की स्थिति पर वापस जाए और वे इलाके खाली करे जिन पर उसने कब्जा कर रखा है।