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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Modified: श्रीनगर , शनिवार, 23 जून 2018 (19:17 IST)

अमरनाथ यात्रा आतंकियों के निशाने पर, मौसम भी बड़ी चुनौती

अमरनाथ यात्रा आतंकियों के निशाने पर, मौसम भी बड़ी चुनौती - Amarnath Yatra terrorist attack challenge
श्रीनगर। आतंकियों के निशाने पर टॉप पर आने के बाद अमरनाथ यात्रा चुनौती के रूप में सामने आने लगी है। एक तो मौसम ऊपर से आतंकी खतरा। तीसरे यात्रा को पर्यटन बाजार में बदलने के प्रयास। इन सबको मिलाकर आधिकारिक तथा सुरक्षा के मोर्चे पर मिलने वाली चेतावनी यही कहती है कि अमरनाथ यात्रा को खतरों से मुक्त बनाना हो तो इसे पर्यटन बाजार में न बदला जाए क्योंकि आतंकियों के लिए यह नर्म लक्ष्य बन सकती है। इतना जरूर था कि आधिकारिक तौर पर यात्रा पर कोई खतरा नहीं माना जा रहा है।
 
जम्मू कश्मीर सरकार ने राज्य में अमरनाथ यात्रा के पूरे मार्ग को आतंकवादी हमले के लिहाज से अत्यधिक संवेदनशील घोषित किया है और सुरक्षा एजेंसियों को निर्देश दिया है कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं।
 
राज्य गृह विभाग ने सभी संबंधित एजेंसियों को कहा है कि सुरक्षा परिदृश्य, यात्रा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति पर विचार करते हुए यात्रियों पर आतंकवादियों के हमले का खतरा है। यात्रा की संवेदनशीलता और प्रसिद्धि की वजह से यह आतंकवादी हमले के लिहाज से बहुत संवेदनशील है। राज्य सरकार द्वारा जारी निर्देश में सेना, पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों को कहा गया है कि वे इस मामले में सभी नियमों का पालन करें ताकि 28 जून से शुरू हो रही यात्रा की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
 
इस निर्देश में कहा गया है कि इस संबंध में खुफिया एजेंसियों और एकीकृत मुख्यालय से मिले निर्देश और जानकारी को अन्य सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों के साथ तुरंत साझा करना चाहिए और किसी संभावित घटना को रोकने के लिए आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए। 
 
श्राइन बोर्ड ने अमरनाथ यात्रा में शामिल होने के लिए लाखों लोगों को न्योता तो दे दिया लेकिन अब वह परेशान हो गया है। उसकी परेशानी का कारण बदलते हालात तो हैं ही बदलता मौसम भी है। अगर हालात की चर्चा करें तो यह परतें उघड़नें लगी हैं कि आतंकी अमरनाथ यात्रा को सॉफ्ट टारगेट के रूप में ले सकते हैं। फिलहाल किसी आतंकी गुट की ओर से कोई चेतावनी नहीं मिली है न ही अमरनाथ यात्रा पर किसी संगठन ने प्रतिबंध लगाया है मगर मिलने वाली सूचनाएं प्रशासन को परेशान किए जा रही हैं।
 
आधिकारिक सूत्रों कहते हैं कि अनंतनाग जिले में आतंकी घटनाएं बढ़ी भी हैं। सेना की गुप्तचर संस्था के अधिकारी कहते हैं कि खतरा सिर्फ अनंतनाग में ही नहीं बल्कि राजौरी पुंछ, जम्मू, डोडा और छोपियां में भी है। इन खतरों को लेकर अधिकारी परेशानी में इसलिए भी हैं क्योंकि पहले ही 8 लाख के करीब श्रद्धालुओं को यात्रा में शामिल होने के लिए न्योता दिया जा चुका है और 2.5 लाख के करीब पंजीकरण भी करवा चुके हैं।
 
बकौल उन सुरक्षाधिकारियों के, जिनके कांधों पर यात्रा का जिम्मा है, इतनी भीड़ को संभाल पाना और सुरक्षा प्रदान कर पाना खाला जी का घर नहीं है। ‘पहले ही आतंकी सभी सुरक्षा प्रबंधों को धता बताते हुए हर बार अमरनाथ यात्रियों पर हमले करने में कामयाब होते रहे हैं। अब अगर इतनी भीड़ होगी तो किस किस को कहां सुरक्षा प्रदान की जाएगी जबकि यात्रा करने वालों को पर्यटक के रूप में सरकार कश्मीर के अन्य पर्यटनस्थलों की ओर भी खींच कर लाने की इच्छुक है,’ एक अधिकारी का कहना था। 
 
इस चिंता में मौसम की चिंता भी अपनी अहम भूमिका निभाने लगी है। मौसम विभाग भी इस बार अभी से चेतावनी जारी करने लगा है कि यात्रा मार्ग पर इस बार मौसम कुछ अधिक ही खराब हो सकता है। हालांकि अभी से इस खराब हो रहे मौसम के कारण यात्रा प्रबंधों में आ रही परेशानियों से प्रशासन अभी से जूझने लगा है तो अमरनाथ यात्रा के दिनों, जब मानसून जवानी पर होगा कैसे संभलेगा लाखों का रेला, कोई जवाब देने को तैयार नहीं है।
 
सभी संस्तुतियां और सुझाव दरकिनार : अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड ने उन सभी सुझावों और संस्तुतियों को एक बार फिर दरकिनार कर श्रद्धालुओं की जान खतरे में डालने का फैसला किया है जो यात्रा में हुए दो हादसों के बाद गठित किए गए आयोगों ने दिए थे। यही नहीं यात्रा में श्रद्धालुओं की संख्या फ्री फार आल करने के बाद प्रदूषण से बेहाल हुए पहाड़ों को बचाने पर्यावरण बोर्ड ने भी श्रद्धालुओं की संख्या कम करने को कई बार कहा है पर नतीजा हमेशा ढाक के तीन पात रहा है।


 
वर्ष 1996 में यात्रा में हुए प्राकृतिक हादसे में 300 से अधिक श्रद्धालुओं की जान गंवाने के बाद गठित सेन गुप्ता आयोग की सिफारिशें फिलहाल रद्दी की टोकरी में हैं। यही नहीं वर्ष 2002 में श्रद्धालुओं के नरसंहार के बाद गठित मुखर्जी आयोग की सिफारिशें भी अब कहीं नजर नहीं आती।
 
सेनगुप्ता आयोग ने श्रद्धालुओं की संख्या को कम करने की संस्तुति करते हुए कहा था कि अधिक संख्या में श्रद्धालुओं को भिजवाना उन्हें मौत के मुंह में धकेलना होगा। आयोग ने 75 हजार से अधिक श्रद्धालुओं को यात्रा में शामिल नहीं करने की संस्तुति करते हुए कहा था कि इसके लिए उम्र की सीमा भी रखी जानी चाहिए।