हिन्दी कविता : नीली छतरी वाले
-शैली बक्षी खड़कोतकर
कौन कहता है तुम्हें
नीली छतरी वाले?
देखो, बदरंग और पुरानी हो चुकी है,
तुम्हारी छतरी।
कहीं धूसर तो कहीं मटमैली और स्याह।
जगह-जगह कलूटे बादलों के पैबंद,
रिसती-टपकती हर बारिश में
यहां-वहां, बेतरह।
क्यों जिद नहीं करते,
नई छतरी के लिए?
बहल जाते हो हर बार,
छोटे बच्चे की मानिंद,
कि ‘शरद तक इसी से काम चलाओ,
होने दो धरा-अंबर को जलमग्न।
फिर मिल जाएगी तुम्हें, अपने-आप,
नई, नीली-चमकीली छतरी।'
तुम इसी से खुश होकर झूमने लगते हो,
पैबंदों से फिर झरने लगती हैं बूंदें
और बावले लोग कहते हैं,
लो, सावन आ गया...