शुक्रवार, 29 मार्च 2024
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Written By Author डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी

इनफ इज इनफ, सोशल मीडिया का ट्रेंड

इनफ इज इनफ, सोशल मीडिया का ट्रेंड - Social Media, Women's Harassment
# माय हैशटैग
 
इंदौर में 9वीं कक्षा में पढ़ने वाला एक लड़का स्कूल की पहली कक्षा की एक बालिका को अपने साथ खाली कमरे में ले गया और उसके साथ अकल्पनीय अभद्रता की। बालिका का इलाज अभी चल रहा है और लड़का बाल सुधार गृह में है। लड़के ने कबूल किया कि मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से उसने अपने कुछ दोस्तों के साथ पोर्न वीडियो क्लिप देखी थी, जिससे उसे इस तरह का दुष्कर्म करने की प्रेरणा मिली। वह अपने ऊपर काबू नहीं रख पाया और अब उसे पछतावा है। 
मोबाइल पर इंटरनेट का प्रचलन बढ़ने के बाद पोर्न वीडियो क्लिप किशोरों में आम हो गई है। बगीचों, बस स्टॉप और दूसरी एकांत जगहों पर किशोरों को झुंड में देखकर इस तरह की मोबाइल क्लिप रस ले-लेकर देखते हुए यकायक भरोसा नहीं होता कि नई पीढ़ी कहां जा रही है। यह हाल भारत का ही नहीं, लगभग सभी देशों का है। किशोर उम्र की लड़कियां अपने घरों में सुरक्षित नहीं हैं। शॉपिंग मॉल, सड़क, स्कूल, कॉलेज सभी जगह इस तरह के यौन उत्पीड़न के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। पुलिस प्रशासन और मनोवैज्ञानिक इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी अब लड़कियों में जागृति लाने वाले ऐसे प्रयास तेज हो गए हैं। 
 
फिल्म अभिनेत्री तापसी पन्नू ने भी इस तरह की हरकतों को रोकने के लिए अपने तरीके से सोशल मीडिया पर पहल की है। 'डेट इज हरेसमेंट' हैशटैग से सोशल मीडिया पर जागृति फैलाने वाले वीडियो बड़ी संख्या में वायरल हो रहे हैं। जो बताते हैं कि यह समस्या वास्तव में कितनी गंभीर है और उसका स्वरूप कितना व्यापक है। 
 
सोशल मीडिया पर लोग अपने-अपने अनुभव शेयर कर रहे हैं। महिलाओं के साथ डॉक्टर के केबिन में, पब में, सिनेमा घर में, रेलवे स्टेशन पर, बस स्टॉप पर और सार्वजनिक जगहों पर किस तरह के अपराध घटित हो रहे हैं, इस बारे में लगातार एक से बढ़कर एक वीडियो वायरल होते ही जा रहे हैं। दुर्भाग्य की बात है कि अनेक लोग मानते हैं कि इनमें से छेड़छाड़ की कुछ घटनाएं बहुत गंभीर नहीं है। जबकि कई लोग यह मानते हैं कि इस तरह की वारदातों से उनके जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ता है। 
 
जो भी हो, इस तरह के वायरल वीडियो से बहुत से लोग दुविधा में आ गए हैं। कई लोगों की बोलती बंद हो गई है और कई दबी जुबान में इस तरह की वारदातों की निंदा कर रहे हैं। यह छोटी फिल्में जागृति का सशक्त औजार बनकर आई हैं। इन्हें लोग कहीं भी अपनी सुविधानुसार देख सकते हैं और अपनी राय दे सकते हैं। इन फिल्मों में कुछ घटनाएं तो बहुत मामूली सी लगती हैं, लेकिन उसके पीछे बड़े गंभीर अर्थ छिपे हुए हैं, जैसे टि्वटर पर एक लड़की ने लिखा कि सार्वजनिक परिवहन बस में एक व्यक्ति बिना किसी कारण से उसकी बांह पकड़कर दबाने लगा। एक अन्य लड़की ने लिखा कि मैं डॉक्टर के पास चेकअप के लिए गई थी, तो डॉक्टर परीक्षण के बहाने मेरे उन अंगों को भी छूने लगा, जिसकी जरूरत नहीं थी। मैंने उससे कहा कि जरा मेरा हाथ भी देखो, यह स्टील का बना हुआ है। 
 
पश्चिम के अनेक युवा फिल्मकारों ने इस तरह के उत्पीड़न को रोकने के लिए छोटी-छोटी फिल्मों की श्रृंखला बनानी शुरू की। यह फिल्में लगातार सोशल मीडिया पर जारी की जा रही हैं। इन फिल्मों का संदेश साफ है, वे कहती हैं कि इट इज नॉट ओके। स्टॉप इट। फिल्मकार का दावा है कि यह सभी फिल्में वास्तविक घटनाओं पर आधारित हैं। 
 
कैसी विचित्र बात है कि सोशल मीडिया के कारण ही इस तरह की वारदातें बढ़ भी रही हैं और सोशल मीडिया के कारण ही इस बारे में जागृति लाकर ऐसी घटनाओं को रोकने का प्रयास किया जा रहा है।