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Written By Author डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी
Last Updated : शनिवार, 7 नवंबर 2015 (17:37 IST)

सोशल मीडिया पर असहिष्णुता और मार्च फॉर इंडिया

# माय हैशटैग

सोशल मीडिया पर असहिष्णुता और मार्च फॉर इंडिया - Social media
पूरे सप्ताह सोशल मीडिया पर जो दो मुद्दे छाए रहे- वे थे असहिष्णुता और मार्च फॉर इंडिया। लेखकों, कलाकारों, इतिहासकारों, उद्योगपतियों, वैज्ञानिकों और अर्थशास्त्रियों के असहिष्णुता पर दिए गए बयानों को लेकर जितनी असहिष्णुता सोशल मीडिया में रही, वह अद्भुत थी। ब्लॉग्स, ट्विटर, फेसबुक, लिंक्डइन, यू-ट्यूब आदि सभी प्रमुख सोशल मीडिया मंचों से बेहद अभद्र भाषा में टिप्पणियां देखने को मिलीं। भाषा का स्तर न्यून से न्यूनतम तक चला गया है। असहिष्णुता के मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष दोनों के ही समर्थक हार मानने को तैयार नहीं नजर आए। 
असहिष्णुता के मुद्दे पर सबसे ज्यादा टिप्पणियां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर की गर्इं। कहा गया कि हर विषय पर बयान देने वाले प्रधानमंत्री गौमांस पर छिड़े विवाद, साहित्यकारों की हत्या, पाकिस्तानी लेखकों और गायकों के कार्यक्रमों का विरोध और सत्तारूढ़ पार्टियों के नेताओं के बयानों पर नरेन्द्र मोदी ने क्यों नहीं कुछ कहा। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथसिंह को इस विषय पर बयान देना पड़ा और उन्होंने कहा कि साहित्यकारों को अपने पुरस्कार और अलंकरण नहीं लौटाने चाहिए और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलकर बात करनी चाहिए। 
 
राजनाथसिंह वरिष्ठ राजनेता हैं और जानते हैं कि सार्वजनिक मंच का उपयोग करते समय किस तरह के शब्द इस्तेमाल करने चाहिए, लेकिन दूसरे नेता सीधे घटिया आरोपों पर उतर आए और देश में असहिष्णुता का माहौल बताने वाले लोगों को विदेशी एजेंट और न जाने क्या-क्या कहने लगे। वास्तव में इससे माहौल और ज्यादा असहिष्णु बना और अंतत: सोशल मीडिया पर व्यक्तिगत आरोपों के साथ विवाद और बढ़ गया। 
 
निश्चित ही कोई भी नेता, अभिनेता, साहित्यकार, इतिहासकार, उद्योगपति आदि यह नहीं चाहेंगे कि भारत की बदनामी दुनियाभर में हो। उनकी मंशा के विपरीत विदेशी मीडिया ने इस मुद्दे को सीधे-सीधे उठा लिया। सोशल मीडिया के कमेंट पाकिस्तान, यूके, यूएसए और कनाडा के अखबारों में सुर्खियां बनने लगे। अरुण जेटली की यह बात भी सच होती हुई लगी कि असहिष्णुता के सबसे बड़े शिकार तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद हैं। 
 
सोशल मीडिया की टिप्पणियों ने हिन्दुत्ववादी एजेंडा, विघटनकारी ताकतें, पाकिस्तानी एजेंट, विदेशी दलाल, चड्डीधारी भक्त, चमचा, हकला, अय्याश, लालची जैसे शब्द व्यक्तिगत आरोपों में जुड़ गए। लेखकों को विरोध में लेखन करना चाहिए जैसी बातें भी उठीं। कहा गया कि लेखक को सम्मान लिखने के लिए मिला था और अगर उसे माहौल अच्छा नहीं लग रहा तो वह लिखकर उसका विरोध क्यों नहीं करता? क्या वास्तव में उसके लिखने में जान नहीं बची?
 
बहुत कम जगह इस तरह की टिप्पणियां देखने को मिली कि शाहरुख खान ने अपने जन्मदिन पर जो इंटरव्यू दिया था उसका यह अर्थ कतई नहीं था कि पाकिस्तान भारत से बेहतर देश है। फिर भी शाहरुख खान को पाकिस्तानी एजेंट करार दिया गया। उन्हें ‘मुस्लिम एक्टर’ और ‘बॉलीवुड शिट’ तक कहा गया। शाहरुख की पत्नी, पिता और मां को भी गालियां दी जाने लगी। यह कहा गया कि आप एक्टर हो तो एक्टिंग करो और बात करनी हो तो एक्टिंग की ही करो, नेता बनने की कोशिश मत करो। 
 
देश के नागरिकों को अगर यह लगता है कि असहिष्णुता का माहौल बढ़ रहा है, तो उन्हें अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है। लेखकों को विरोध में सम्मान लौटाने का भी अधिकार है। निश्चित ही उनकी भावनाएं पवित्र रही होंगी। उनका राजनैतिक एजेंडा रहा हो या ना रहा हो, उनके सम्मान में कोई कमी नहीं आनी चाहिए थी, लेकिन हुआ इसका उल्टा। कुछ लोगों ने लेखकों के खिलाफ ही मोर्चा छेड़ दिया। यह कहा जाने लगा कि आप कोई चुने हुए प्रतिनिधि नहीं हो। लेखक हो और आपको सरकार ने सम्मानित किया था किसी पार्टी ने नहीं। 
 
बिहार चुनाव में बुरी तरह उलझी भारतीय जनता पार्टी आधिकारिक तौर पर असहिष्णुता के इन आरोपों पर ज्यादा बोलने की स्थिति में नहीं रही। बिहार चुनाव खत्म होते ही अनुपम खेर ने असहिष्णुता के मुद्दे पर मोर्चा संभाल लिया। सोशल मीडिया को अनुपम खेर ने इसका हथियार बनाया। ट्विटर पर ही उनके करीब 45 लाख फॉलोअर्स हैं। उन्होंने बिहार के चुनाव परिणाम आने के ठीक एक दिन पहले 7 नवंबर को दिल्ली में मार्च फॉर इंडिया का ऐलान कर दिया।
 
अनुपम खेर की पत्नी किरण खेर चंडीगढ़ से भाजपा की सांसद हैं। अनुपम खेर का साथ दिया भाजपा की विचारधारा वाले मधुर भंडारकर और अशोक पंडित ने। मार्च फॉर इंडिया को सोशल मीडिया पर जमकर प्रचार मिला। इसके पक्ष और विपक्ष में बहुतेरे कमेंट्स की झड़ी लग गई। 
 
अनुपम खेर के नेतृत्व में मार्च फॉर इंडिया को अच्छा प्रतिसाद मिला। हाल यह हो गया कि सुबह 10 बजे से शुरू होने वाला मार्च 2 घंटे बाद शुरू हो सका और इंडिया गेट के बजाय म्यूजियम से शुरू होकर राष्ट्रपति भवन तक गया। शातिर राजनीतिज्ञ की तरह अनुपम खेर ने इस मार्च के दौरान असहिष्णुता को लेकर लगे आरोपों पर यह कहा कि देश में सहिष्णुता है और हम भारत की प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने देंगे। इस आरोप पर की उनकी पत्नी भाजपा की सांसद हैं इसलिए वे यह मार्च कर रहे हैं, अनुपम खेर ने कहा कि आप मुझ पर कोई भी आरोप लगा सकते हैं।
 
मार्च फॉर इंडिया के समर्थकों का दावा रहा कि इसमें बड़ी संख्या में लेखकों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों, वैज्ञानिकों आदि ने भाग लिया। राष्ट्रपति से मिलने की बात पर अनुपम खेर ने कहा कि वे हमारे सर्वोच्च नेता हैं, परिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य। अगर परिवार में किसी को भी तकलीफ होती है, तो वह परिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य से मिलता है। 
 
जब अनुपम खेर और उनके साथी मार्च फॉर इंडिया कर रहे थे, उसी समय श्रीनगर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जम्मू-कश्मीर के लिए 80 हजार करोड़ रुपए के पैकेज का ऐलान भी कर रहे थे। प्रधानमंत्री के श्रीनगर दौरे पर भी सोशल मीडिया में जमकर प्रतिक्रियाएं हुई। पाकिस्तानी मास मीडिया और सोशल मीडिया में प्रधानमंत्री की श्रीनगर यात्रा छाई रही।
 
दिलचस्प बात है कि भारत के प्रधानमंत्री के बारे में भारत में जितनी नकारात्मक टिप्पणियां मिलती हैं, उतनी ही सकारात्मक टिप्पणियां पाकिस्तान के मीडिया में नजर आती हैं। यह बात साबित करती है कि प्रधानमंत्री और उनकी टीम की मीडिया की रणनीति बहुत ही सोच-समझकर बनाई और अमल में लाई जाती है।