शनिवार, 20 अप्रैल 2024
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‘रिलेशनशिप’ में सबसे ‘हॉट’ क्‍यों हो गई ‘पॉलिटिक्‍स’?

‘रिलेशनशिप’ में सबसे ‘हॉट’ क्‍यों हो गई ‘पॉलिटिक्‍स’? - politics
रिलेशनशिप में सबसे हॉट पॉलिटिक्‍स है, यह कहना थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन यह सच है। फेसबुक हो या व्‍हॉट्सएप्‍प। ट्विटर हो या डेटिंग एप्‍प टिंडर। हर जगह पॉलिटिक्‍स इस कदर हॉट और हावी हो गई है कि अब वो रिश्‍तों को ठंडा करने लगी है।


दोस्‍ती हो, या परिवार, या कपल्‍स, रिश्‍तों में ‘कंपेटिब्‍लिटी’ के लिए पहले पॉलिटिक्‍स जानना जरुरी है। यानी यह सवाल बेहद महत्‍वपूर्ण है कि तुम्‍हारी पॉलिटिक्‍स क्‍या है पार्टनर?

दरअसल, सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में आदमी के व्‍यक्‍तित्‍व का राजनीतिकरण हो रहा है। यानी आदमी बहुत ज्‍यादा ‘पॉलिटिसाइज’ हो रहा है, अपने रिश्‍तों, आसपास की चीजों को ‘पॉलिटिकली’ देखने लगा है।

दरअसल, यह समय भी एक तरह से ‘राजनीतिक काल’ का दौर है। विचारधारा की लड़ाई ने कई चीजों को खेमे में बांट दिया है। यहां तक कि प्‍यार जैसे रिश्‍ते में भी पॉलिटिक्‍स घुस आई है। आपका संभावित साथी आपका हाथ थामने से पहले अगर यह पूछ ले कि तुम्‍हारी पॉलिटिक्‍स क्‍या है पार्टनर? तो चौंकने वाली बात नहीं है।

व्‍हॉट्सएप्‍प ग्रुप पर एक राजनीतिक विषय को लेकर बात शुरू होती है, यह बातचीत बहस में बदलती है, और फिर विवाद और गाली गलौच। इसके बाद संबंध खत्‍म। कमोबेश यही स्‍थिति ट्विटर और फेसबुक पर है। और यह सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में हो रहा है।

हम ‘सूचनाओं’ से घिरते जा रहे
साइकेट्रिस्‍ट डॉ सत्‍यकांत त्रिवेदी का इस बारे में कहना है कि पहले सिर्फ अखबार और दूरदर्शन ही थे, लेकिन अब सोशल मीडिया है, इससे हम सूचनाओं से घिरते जा रहे हैं। पहले लोग चाय-पान की दुकानों पर बहस कर के घर चले जाते हैं। फिर हफ्तेभर बाद ही वे मिलते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है, हमें तुरंत प्रतिक्रिया मिलती है। हम लगातार मुद्दों के संपर्क में रहते हैं। किसी पोस्‍ट पर तुरंत रिएक्‍शन मिलता है तो हम तुरंत जवाब देते हैं। हम बहस के ‘मोड’ में ही रहते हैं हमेशा।

दूसरा कारण यह है कि क्‍लोजनेस बढ़ गई है, अब कोई भी सीधे मोदी या ट्रंप को ट्वीट कर अपनी सहमति या असहमति जाहिर कर सकता है, उन्‍हें लगता है कि वे मोदी और ट्रंप से ही बात कर रहे हैं। ऐसे में अपने विचारों को काफी अहम मान लेते हैं। व्‍यक्‍तित्‍व के राजनीतिकरण का तीसरा सबसे बड़ा कारण यह है कि असहमति की जगह खत्‍म हो गई है। अगर हमने कोई बात कही है तो हम चाहते हैं कि हमारी गर्लफ्रेंड, दोस्‍त और अन्‍य लोग भी उससे सहमत ही हो, जब ऐसा नहीं होता है तो हम वैमनस्यता पाल लेते हैं। दरअसल ऐसे मामलों में हम राजनीतिक दलों का शिकार हो रहे हैं, जबकि हमें विवेक का इस्‍तेमाल करना चाहिए।

तुम राइटिस्‍ट या लेफ्टिस्‍ट तो नहीं !
वैश्‍विक परिदृश्‍य में भी यही हो रहा है। टिंडर एक डेटिंग एप्‍प है। इसे सेक्‍स, रिलेशनशिप और हुक-अप के लिए इस्‍तेमाल किया जाता है। लेकिन यहां भी पहले पॉलिटिक्‍स ही पूछी जाती है, यह खुद टिंडर डेटिंग एप्‍प को लेकर हुए एक सर्वे में सामने आया है। दरअसल, वर्तमान में पॉलिटिक्‍स ने डेटिंग के पैटर्न को भी प्रभावित किया है। यानी किसी डेटिंग एप्‍प पर अपना पार्टनर खोजने से पहले युवा इस बात की पड़ताल कर लेना चाहते हैं कि सामने वाला लेफ्टिस्‍ट है, राइटिस्‍ट या कांग्रेसी। या कुछ और।

लड़कियों को फर्क पड़ता है आइडियोलॉजी से
‘ओकेक्‍यूपिड’ ने भी एक सर्वे किया था, यह जानने के लिए कि युवा डेटिंग और अपनी पॉलिटिकल आइडियोलॉजी के बीच किस तरह से संतुलन बैठा रहे हैं। या वे किस तरह से इसे परिभाषित करते हैं। भारत के करीब 2 लाख सिंगल नौजवानों को इस सर्वे में शामिल किया गया था। इसमें सामने आया कि 54 प्रतिशत लड़कियां ऐसे पार्टनर्स के साथ जुड़ना चाहेंगी, जो लोग अपनी राजनीतिक विचारधारा भी उनसे साझा करे। हालांकि इसके उलट 21 प्रतिशत लड़कों को इस बात से कोई लेना-देना नहीं था।

जाहिर है लड़कियां इस बात का ध्‍यान रखना चाहती हैं कि आइडियोलॉजी से फर्क पड़ता है। वे कहती हैं कि इससे पार्टनर के व्‍यवहार में भी फर्क आता है, मसलन किसी दक्षिणपंथी पार्टनर का व्‍यवहार अपनी महिला मित्र से अलग होगा, जबकि लिबरल उससे बिल्‍कुल अलग तरह से सोचेगा।

कई युवाओं का कहना है कि बेहतर होगा, पहले ही पता चल जाए उनका साथी पॉलिटिकली कैसे सोचता है, बाद में उसे कौन हैंडल करेगा और कौन बहस करेगा, क्‍योंकि जिंदगी में वैसे ही बहुत सी चीजें हैं हैरान और परेशान करने के लिए।

इंटरनेशनल है यह संक्रमण
ग्रेगरी हुबर एक पॉलिटिकल साइंटिस्‍ट हैं। उन्‍होंने ऑनलाइन डेटिंग प्रोफाइल और पॉलिटिकल आईडियोलॉजी के बीच रिलेशनशिप पर शोध किया है। उनका मत है कि इसके पहले राजनीतिक विचारधारा या आइडियोलॉजी से सिंगल लोगों का कोई नाता नहीं था, लेकिन अब वैसा नहीं रहा। अब राजनीति बेहद ‘पर्सनल थिंग’ हो गई है। सिंगल्‍स ‘होमोफिली’ हो गए हैं, यानी वे उसी तरफ आकर्षित हो रहे हैं, जहां चीजें उन्‍हें उनकी पसंद और उनकी तरह की ही हों। युवाओं का मत है कि क्‍यों ऐसे लोगों के साथ रहे, जिन्‍हें एक्‍सप्‍लेन करना पड़े और खुद को डिफेंड करना पड़े।

जाहिर है पहले रिलेशनशिप में हाइट, रंग, स्‍किन, धर्म आदि देखा जाता था, अब अच्‍छी पार्टनरशिप के लिए इस सूची में ‘पॉलिटिकल आईडियोलॉजी’ भी शामिल कर लीजिए।

लब्‍बोलुआब यह है कि ऑनलाइन डेटिंग में अपना पॉलिटिकल विचार जाहिर करने के साथ ही अपने होने वाले पार्टनर से भी उसकी पॉलिटिक्‍स जानना जरुरी है, क्‍योंकि इस समय में यह रिलेशनशिप की एक शर्त है, अगर ऐसा नहीं हुआ तो रिश्‍ता भी ज्‍यादा नहीं चलेगा, चाहे वो लंबे वक्‍त के लिए हो या शॉर्ट टर्म।