मनोज चारण “कुमार”
कविता,
भारत मां का भाल है, कविता, राष्ट्रगौरव की चाल है, कविता।
केशरतुंग से महोदधि तक, संस्कृति का जाल है, कविता ।।
गंगा की बहती धार है कविता, दीपक, कभी मल्हार है कविता।
तानसेन और बैजू के कंठों, बहती इक रसधार है, कविता।।
कभी करुणा का क्रंदन कविता, भक्ति-भाव का वंदन कविता।
कामदेव को कभी जलाती, शिव का तांडव नृतन कविता ।।
है कामधेनु, भाषा में कविता, छंदों की आशा में कविता,
साहित्य में सिरमौर यही है, हर मन की अभिलाषा कविता ।।
कान्हा की बंसी है, कविता, जसोदा की हंसी है, कविता,
गोकुल छोड़ के मथुरा आए, राधा-मन शूल धँसी है, कविता ।।
राम का वनवास है, कविता, रावण का विनाश है,कविता ।
अग्नि-परीक्षा सीता की है, लखन-लाल की सांस है,कविता ।।
द्रौपदी वाला चीर है, कविता, भीष्म का वृद्ध शरीर है, कविता ।
महाभारत के रण-आंगन में, कर्ण-हृदय की पीर है, कविता ।।
माँ-बाप का सिर है कविता, पिता के मन धीर है, कविता ।
दादा-दादी की स्नेह डोरी है, बहन-भाई का सीर है कविता ।।
मेरे मन के भाव हैं, कविता, तपती धूप में छाँव है, कविता ।
जननी और जन्मभूमि है, मेरा प्यारा गाँव है कविता ।।
मेरे धर्म का मर्म है, कविता,मेरी जाति का कर्म है, कविता,
जिस समाज में जीता हूँ मैं, मेरे समाज की शर्म है, कविता।।
मेरे मन की आग है, कविता, गहरी नींद की जाग है, कविता ।
घोर-तिमिर में ज्योति सरीखी, चमके वो इक ख्वाब है, कविता।।