निशा माथुर-
हथेलियां,
कुछ नर्म-सी, नमी सी लिए हुए,
कुछ सपाट-सी, दरारें समेटे हुए।
अनंत संभावनाओं काहाल बताती,
अपनी कारगुजारियों का जवाब लिए।।
हथेलियां,
मुट्ठी में घिसी-पिटी रेखाओं का दर्द समेटे,
जाने कितने ही आंसुओं के, पौंछती कतरे।
खोए हुए अफसानों की धुंधली तस्वीरें,
जीवन के खुलासों को बयां करते तजुर्बे ।।
हथेलियां
कभी लफ्ज बनकर, हंसने की खलिश,
कभी रंगत खोती, लकीरों की तपिश।
मूक संवाद में पसरी, मौन-सी सड़क,
किस्मत को टटोलती, हाथों को रगड़ ।।
हथेलियां
अलसवेरे परमात्मा की, आस्था का दर्शन,
जिंदगी की भयावह राहों का व्याकरण ।
वो पल-पल करवटें लेता, नसीब का गणित,
कभी ढलती उम्र की चादर का व्याकलन।।
हथेलियां
जीवन के शब्दकोश की सच्चाई का सामना,
हम जिससे किस्मत से जुड़ें, वह पारदर्शी आईना।