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कोई क्यों देगा पाकिस्तान का साथ?

कोई क्यों देगा पाकिस्तान का साथ? - Pakistan, India, Kashmir, Nawaz Sharif, Pakistan's Parliament
- राजीव रंजन तिवारी

लगता है कि भारत का अनैतिक विरोध पाकिस्तान की नियति बन चुकी है। शायद यही वजह है कि हर तरफ से मात खाने के बाद कश्मीर को लेकर पाक ने एक नई साजिश रची है। उसने यह मुद्दा उठाने के लिए विभिन्न देशों की राजधानियों में अपने सांसदों को भेजने का फैसला किया। पाक के पीएम नवाज शरीफ ने 27 अगस्त को 22 सांसदों का विशेष दूत नामित किया। इन दूतों को कश्मीर का मुद्दा उठाने के लिए विभिन्न देशों की राजधानियों में भेजा जाएगा। इसके अलावा पिछले दिनों पाक में जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता यासिन मालिक की पत्नी मुशहाल हुसैन इस्लामाबाद में भूख हड़ताल और प्रोटेस्ट कर रही थीं। इस दौरान वे भारत के खिलाफ इस कदर जहर उगल रही थीं कि सुनने वाले भी सिहर जा रहे थे। 
दरअसल, मुशहाल का भारत विरोधी जहर उगलना एक बानगी है। इसी से समझना चाहिए कि पाक के अधिसंख्य लोगों में भारत के खिलाफ कितनी नफरत भरी है। मूल विषय यह है कि जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर भारत के खिलाफ पाक दुनिया भर से जनमत तैयार करने की कोशिश में है। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर पाकिस्तान की मदद कोई क्यों करेगा। बताया जा रहा है कि पाकिस्तान को 56 देशों के मुस्लिम संगठनों का साथ मिला है उसका नाम ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) रखा गया है। 
 
पाकिस्तान को ये साथ कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ मिला है। इस्लामाबाद में पिछले हफ्ते प्रेस कांफ्रेस के दौरान ओआईसी के महासचिव अयाद अमीन ने कहा कि कश्मीर के लोगों के खुद फैसला लेने का पूरा अधिकार है और यूएन के प्रस्तावों के मुताबिक इसका हल निकाला जाना चाहिए। इंटरनेशनल कम्युनिटी को भारत प्रशासित कश्मीर में क्रूरता के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। इस दौरान विदेश मामलों पर पाकिस्तानी पीएम के सलाहकार सरताज अजीज भी थे। सवाल यह है कि आखिर ओआईसी द्वारा पाकिस्तान समर्थन दिए जाने से उसे क्या मिलने वाला है और भारत का क्या नुकसान होगा। जबकि पूरी दुनिया भारत की ताकत का लोहा मानती है।
 
ओआईसी का समर्थन पाकर पाक ऐसे दिखा रहा है जैसे उसके हाथ कोई तुरुप का इक्का लग गया है। जबकि इससे भारत पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। अमीन द्वारा पाक दौरे के दौरान दिया गया उक्त बयान केवल औपचारिकता है, क्योंकि इस समर्थन के लिए ओआईसी की कोई अधिकारिक मीटिंग नहीं हुई है। ये संगठन और इसके अधिकतर पदाधिकारी वैसे ही पाकिस्तान परस्त है, क्योंकि परमाणु संपन्न होने की वजह से पाक की कुछ दादागिरी इस संघटन में चलती है। 
 
इस संगठन के चुने कुछ नुमाईंदे पाक पक्ष लेते रहते हैं लेकिन इसका ये मतलब नही कि सब देश भारत को किसी भी लेबल पर कुछ भी कह देंगे। ईरान और यूएई जैसे देश तो वैसे ही पाक की हरकतों से दुखी हैं। ओआईसी के पदाधिकारी अनेक बार इसराईल के खिलाफ जहर उगल चुके हैं, पर ये आज तक इसराईल का कुछ बिगाड़ नहीं पाए। इसलिए वैश्विक रणनीतिकार मानते हैं कि ये संगठन केवल एक मजाक भर है, क्योंकि इसमें शामिल देशों के अपने निजी हित अलग-अलग हैं।
 
वास्तविकता ये है कि अन्तरराष्ट्रीय मंच पर मान्यता प्राप्त राष्ट्र होने के बावजूद पाकिस्तान का व्यवहारिक दृष्टिकोण अव्यवहारिक है। पाक के भीतर तो मानो नैतिक पतन की होड़ सी लगी है। सेना, राजनीति व्यापार-व्यवस्था और आईएसआई में पंजाबियों का बोलबाला है। वे अमेरीका, चीन व इस्लामिक देशों से बख्शीश बटोरने में माहिर होने के कारण पाक की बाकी जाति व सूबों में वर्चस्व हासिल कर चुके हैं।
 
वर्ष 2014 में आयशा जलाल की एक महत्वपूर्ण पुस्तक 'द स्ट्रगल फॉर पाकिस्तान : ए मुस्लिम होमलैंड एंड ग्लोबल पॉलिटिक्स’ अमेरिका और इंग्लैंड से एक साथ प्रकाशित हुई थी।  इसकी लेखिका भले ही पाकिस्तानी मूल की हैं मगर वे न्यूयार्क में पली-बढ़ी हैं। वर्ष 1971 में वे जब हाईस्कूल में थीं तब उनके मन में बार-बार यह प्रश्न उठा कि पश्चिमी पाकिस्तान के नेतागण पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को अपने साथ क्यों नहीं रख पाए। वर्ष 1977 में जनरल जिया ने भुट्टो सरकार को अपदस्थ कर अपना फौजी शासन थोप दिया। 1973 के अरब-इजरायली युद्ध और तेल की कीमतों में चौगुनी वृद्धि की पृष्ठभूमि में उन्होंने देश का इस्लामीकरण आंरभ किया। 
 
जिया का दावा था कि भारत-विभाजन का आधार इस्लाम था। मगर लेखिका के गहन शोध ने इस दावे को नकारा। भारत के साथ निरंतर तनाव और अफगानिस्तान के लड़ाई ने पाकिस्तान को काफी नुकसान पहुंचाया। वर्ष 2003 और 2013 के बीच 40 हजार से अधिक लोग आतंकवाद के शिकार हुए। साथ ही पाकिस्तान की सुरक्षा पर खर्च भी बढ़ा। यद्यपि इसका अधिकांश भार अमेरिका उठा रहा है। जो भी हो एक आम पाकिस्तानी का देश के बाहर संदेह की निगाह से देखा जाता है। 
 
देश के अंदर ऊर्जा का भारी संकट है, चोरी और राज्य ही नहीं बल्कि प्रभावशाली लोगों द्वारा सरकारी संस्थानों के बिलों का भुगतान न करना भारी समस्या है। देश के अंदर रोजगार के अवसर घट रहे हैं इसलिए शिक्षित मध्य वर्ग ही नहीं बल्कि अन्य लोग भी देश के बाहर नौकरियों की तलाश का रहे हैं। तालिबानीकरण के बढ़ते खतरे से लोग चिंतित हैं। आम लोगों के सामने एक सवाल है कि वे एक दकियानूसी और कट्टर धार्मिक राज्य चाहते हैं या एक आधुनिक, प्रबुद्ध राज्य। इस प्रश्न पर विचार विमर्श एक लम्बे समय तक सैनिक सत्तावाद के कारण बाधित रहा है। यही वजह है कि पूरा विश्व उसे शक की नजर से देखता हैं।
 
खैर, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब भी भारत और पाकिस्तान के संबंधों में सुधार की उम्मीद बढ़ती है तब तक कोई ना कोई ऐसी घटना घट जाती है जो सुधार की उम्मीद पर चादर पड़ जाती है। हालांकि भारत में विपक्षी दल पठानकोट के वायुसेना के ठिकाने पर हुए आतंकवादी हमलों की जांच में सहायता देने के उद्देश्य से आए पाकिस्तानी जांच दल का विरोध कर रहे थे, लेकिन सरकार और उसके समर्थक यह मान कर चल रहे थे कि इससे भारत-पाक द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। लेकिन ऐन मौके पर पाक ने दावा पेश कर दिया है कि उसने भारतीय नौसेना के एक कमांडर को गिरफ्तार कर लिया है और वह भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के लिए काम करता था तथा वहां पाक सरकार के खिलाफ विद्रोह कर रहे बलोचियों को सहायता पहुंचाता था। 
 
उसकी गिरफ्तारी द्वारा पाक अपने उस आरोप को सिद्ध करने की कोशिश कर रहा है जिसे वह बहुत लंबे समय से लगाता आ रहा है। आरोप यह है कि भारत बलोच पृथकतावादियों को समर्थन और सहायता दे रहा है। जबकि इस तरह की कोई बात नहीं थी। इस संबंध में भारत ने स्पष्ट कह दिया कि पाक द्वारा पकड़े गए कुलभूषण नामक यह व्यक्ति नौसेना से 2001 में ही स्वेच्छिक अवकाश ले चुका है। फिर भी पाक अपनी बातों पर अड़ा रहा। इससे लगता है कि दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना नहीं चाहता। 
 
अपनी पुस्तक में आयशा जलाल कहती हैं कि इतिहास की जगह एक कुपरिभाषित इस्लामी विचारधारा को थोपने के कारण एक आलोचनात्मक ऐतिहासिक परंपरा विकसित ही नहीं हो पाई। आज पाक की स्थिति दयनीय है। उसे आतंकी विचारधारा व धार्मिक उन्माद से ग्रस्त हिंसा का उद्गम बताया जा रहा है। 
 
यह अलग बात है कि पिछले दिनों पाक अधिकृत कश्मीर के इलाके से होकर गुजरने वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) को अमेरिका के खुले समर्थन से भारत की कश्मीर नीति को धक्का लगा है। यह गलियारा चीन के विद्रोहग्रस्त शिनच्यांग प्रदेश के काशगर शहर से होकर पाक के बलुचिस्तान में ग्वादार तटीय शहर तक जाता है। इस परियोजना पर चीन करीब 46 अरब डालर खर्च कर रहा है। 
 
भारत ने परियोजना पर चीन से इस आधार पर अपना औपचारिक विरोध और चिंता जाहिर की है कि इसका निर्माण भारत के दावे वाले पीओके इलाके से होकर जा रहा है। उल्लेखनीय है कि चीन ने इस परियोजना पर काम कर रहे चीनी इंजीनियरों और कामगारों की सुरक्षा के लिए अपनी फौज भी तैनात की है। खैर, इस वक्त अशांति के लिए कश्मीर चर्चा का विषय बना हुआ है। 
 
इस मुद्दे पर 56 सदस्यों वाले ओआईसी के महासचिव अयाद अमीन ने कहा कि भारतीय कश्मीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन उसका आंतरिक मामला नहीं है। इस पर भारतीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि पाक हमारे धैर्य का इम्तिहान न ले। उन्होंने पाक को कश्मीर में अस्थिरता फैलाने से बाज आने की चेतावनी दी। गौरतलब है कि दक्षिणी कश्मीर में हिजबुल के कथित आंतकी बुरहान वानी के सुरक्षा बलों के हाथों मारे जाने के बाद से कश्मीर अशांत है। वानी के मारे के जाने बाद पाक अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर के मसले को उठा रहा है। अब वह मुस्लिम देशों का समर्थन हासिल करने की कोशिश में है।