बुधवार, 17 अप्रैल 2024
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Written By Author डॉ. नीलम महेंद्र

टूरिज्म पर टैरेरिज्म हावी क्यों?

टूरिज्म पर टैरेरिज्म हावी क्यों? - Kashmir Terrorism
2 अप्रैल को माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने नेशनल हाईवे पर देश की सबसे बड़ी रोड टनल का उद्घाटन करते हुए कहा था कि यह केवल जम्मू और कश्मीर की दूरी कम करने वाली सुरंग नहीं विकास की लम्बी छलांग है और कश्मीर के युवा को अब टैरेरिज्म और टूरिज्म में से किसी एक को चुनना होगा।
 
जवाब फारूख़ अबदुल्ला ने दिया, 'मोदी साहब से कहना चाहता हूं कि बेशक टूरिज्म यहाँ की जीवन रेखा है लेकिन जो पत्थरबाज हैं उन्हें टूरिज्म से मतलब नहीं है, वो अपने देश के लिए पत्थर फेंक रहे हैं उन्हें समझने की जरूरत है।' अभी कुछ दिन पहले सीआरपीएफ के जवानों के साथ कश्मीरी युवकों के हिंसक होने का वीडियो सामने आया था जिसमें जवानों ने हथियारों से लैस होने के बावजूद बेहद संयम का परिचय दिया।
 
सेना और सरकार इन पत्थरबाजों की परवाह नहीं कर रही होती तो आत्मरक्षा के तहत इन पत्थरबाजों को ऐसा माकूल जवाब इन जवानों से अवश्य मिल गया होता कि भविष्य में कोई और कश्मीरी युवक पत्थर मारने तो क्या उठाने की हिम्मत भी नहीं करता, लेकिन अगर जवानों की तरफ से इन पत्थरबाजों को जवाब नहीं दिया जा रहा तो केवल इसलिए कि हमारी सरकार इन्हें अपना दुश्मन नहीं अपने देश के ही नागरिक मानती है, लेकिन यह लोग हमारे जवानों को क्या मानते हैं?
 
अबदुल्ला साहब से इस प्रश्न का उत्तर भी अपेक्षित है कि कश्मीर के नौजवानों को टूरिज्म से मतलब नहीं है यहाँ तक तो ठीक है लेकिन उन्हें टैरेरिज्म से मतलब क्यों है और आप जैसे नेता इसे जायज़ क्यों ठहराते हैं?
 
एक तरफ आप सरकार से कश्मीर समस्या का हल हथियार नहीं बातचीत के जरिए करने की बात करते हैं, लेकिन कश्मीर के युवा के हाथों में बन्दूकें लिए टूरिज्म से ज्यादा टैरेरिज्म को चुनें तो आपको सही लगता है? शायद इसलिए कि आपकी राजनीति की रोटियाँ इसी आग से सिक रही हैं।
 
यह कहां तक सही है कि हमारे जवान हथियार होते हुए भी लाचार हो जाएं और कश्मीर का युवा पत्थर को ही हथियार बना ले? यह इस देश का दुर्भाग्य है कि बुरहान जैसे आतंकवादी अपने ही देश के मासूम लोगों की जानें लेकर गर्व से उसकी जिम्मेदारी लेते हैं और वहां के यूथ आइकॉन बन जाते हैं, लेकिन हमारे जवान किसी पत्थरबाज को आत्मरक्षा के लिए गाड़ी के बोनट पर बैठाकर पुलिस थाने तक भी ले जाते हैं तो इन पत्थरबाजों के मानवाधिकारों की दुहाई दी जाती है और सेना से सफाई मांगी जाती है।
 
अगर पत्थरबाज अपने देश के लिए पत्थर फेंक रहे हैं तो हमारे जवान किसके लिए पत्थर और गोलियां खा रहे हैं? अगर देश को पत्थरबाजों को समझने की जरूरत है तो क्या आपको देश और जवानों के सब्र को समझने की जरूरत नहीं है? अबदुल्ला साहब का कहना है कि आप लोगों को देश की परवाह है लेकिन पत्थरबाजों की नहीं तो क्या आप पत्थरबाजों को इस देश का हिस्सा नहीं मानते?
 
हाल के चुनावों में वो कौन लोग थे जिन्होंने बंदूक की नोंक पर कश्मीरी अवाम को वोट डालने से रोका? कश्मीर का युवा हाथ में बन्दूकें या पत्थर लेकर इस मुद्दे का हल चाह रहे हैं? यह तो कश्मीर के युवा को ही तय करना होगा कि वह और कब तक कुछ मुठ्ठी भर नेताओं के हाथों की कठपुतली बने रह कर अपनी उस जन्नत में बारूद की खेती करके उसे जहन्नुम बनाना चाहता है या फिर डल झील की खूबसूरती और केसर की खुशबू से एक बार फिर पूरे विश्व को अपनी ओर आकर्षित करना चाहता है।