गुरुवार, 28 मार्च 2024
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लालबत्ती का फ्यूज हो जाना

लालबत्ती का फ्यूज हो जाना - Hindi Blog On Lal Batti/VIP Culture
सरकार वीआईपी कल्चर पर लगाम लगा रही है, यह दिखाने के लिए एक मई से सड़क से लालबत्तियां अदृश्य हो जाएगी। ऐसा लगता है मोदी सरकार ने लालबत्ती और लालकृष्ण दोनों को "लाल-सलाम" कह दिया है और हैरानी की बात यह है कि इसका लालकिले से भी कोई एलान नहीं किया गया था।
 
सरकार द्वारा लालबत्ती पर रोक लगाए जाने का ऐसा प्रचार किया जा रहा है, मानो आम आदमी की सारी समस्याओं की जि‍म्मेदार यही लालबत्ती थी, जिसे अब जि‍म्मेदारी मुक्त कर दिया गया है। प्रधानसेवक जी ट्वीट कर बताते हैं कि हर भारतीय वीआईपी है। अगर ऐसी बात है, तो प्रधानसेवक जी को अगले ट्वीट में यह भी बताना चाहिए था कि अगर हर भारतीय वीआईपी है तो उसे अब तक रोटी-कपड़ा-मकान की तरह लालबत्ती से वंचित क्यों रखा गया? लेकिन प्रधानसेवक जी ने ट्वीट कर ऐसा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। हो सकता है उस दिन एक ट्वीट के बाद ही उनका जिओ का "मैक्सिम डेली डेटा यूज" पूरा हो गया हो। वैसे एक बात और जो गौर और शौर करने लायक है वो यह कि, अगर सरकार देश से वीआईपी कल्चर खत्म ही करना चाहती है तो फिर हर भारतीय को वीआईपी कहने का क्या तुक है? सरकारी बयानों में तुक ढूंढने से अच्छा है कि इंसान अपने पड़ोस में फ्री वाई-फाई ढूंढ ले।
 
लालबत्ती केवल रोशनी ही नहीं देती थी, बल्कि वीआईपी कल्चर को शोभा भी देती थी। लालबत्ती गुल होने से वीआईपी और वीवीआईपी होने का चिराग तो नहीं बुझेगा, लेकिन उसकी रोशनी जरूर मद्धम पड़ेगी। पहले लालबत्ती वाली गाड़ी के सड़क पर उतरते ही आपातकाल-सा माहौल हो जाता था, लेकिन अब केवल आपातकालीन सेवाओं से जुड़े वाहनों पर ही लालबत्ती का उपयोग संभव होगा। लालबत्ती स्टेटस सिंबल हुआ करती थी, लेकिन बिना लालबत्ती के स्टेटस सिंबल "दिव्यांग" सा फील दे रहा है। बिना लालबत्ती के वीआईपी होना ठीक वैसा ही है जैसे बिना घोटाले की सरकार।
 
लालबत्ती हटाकर सरकार न केवल उस महान वीआईपी परंपरा, जिसे कई नेताओं और अधिकारियों ने अपनी कार और अहंकार से सजाकर इस मुकाम तक पहुंचाया है, को लांछित करने का प्रयास कर रही है बल्कि आम आदमी की छवि को धूमिल करने का प्रयास भी कर रही है। क्योंकि जब तक समाज में वीआईपी रहेंगे तब तक आम आदमी उनको देखकर अपने को छोटा महसूस करता रहेगा और सरकारे उसके उत्थान हेतु कदम उठाती रहेगी। अगर समाज से वीआईपी सभ्यता खत्म होकर सभी आम आदमी हो गए, तो सरकारें आम आदमी के कल्याण के लिए कहां से प्रेरणा लेगी। असली समाजवाद लाने के लिए देश में विशिष्ट और विशिष्टता का रहना अत्यंत आवश्यक है। विशिष्टता का शिष्टता में बदल जाना लोकतांत्रिक और सामाजिक मूल्यों के लिए खतरा है।
 
जो लोग लालबत्ती का रोब जमाते थे, इस निर्णय से उनके मुंह में अब दही जम चुका ताकि इस मुद्दे पर अच्छे से रायता फैलाया जा सके। लालबत्ती से सजी गाड़ी जब शान से निकलती थी तो अच्छे-अच्छों की हवा बिना स्क्रू-ड्राईवर के ही टाइट हो जाया करती थी। साहब के "लॉन" से निकली गाड़ी, बिना किसी "चालान" के सायरन बजाती हुई रेडलाइट क्रॉस कर पूरी ठसक से अपने गंतव्य तक पहुंच कर वीआईपी होने के मंतव्य को पूरा करती थी।
 
आम जनता "लालबत्ती धारको" को विशिष्ट और सम्मानित नजरों से देखती थी लेकिन सरकार के इस "वीआईपी विरोधी" निर्णय से अब आम जनता बिना लालबत्ती के उनको सामान्य दृष्टि से ही देखेगी। आम जनता के इस दृष्टिदोष और वीआईपी लोगों की मानहानि की भरपाई के लिए सरकार को संसद के अगले सत्र में विशेष मुआवजे की घोषणा करनी चाहिए। मुआवजा मानहानि की पूर्णरूप से भरपाई तो नहीं कर सकता है लेकिन लालबत्ती के चले जाने के गम को गलत करने का सही रास्ता तो बता ही सकता है।
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