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Written By WD

बुजुर्ग : परियों की कहानी और दुआओं का संसार

बुजुर्ग : परियों की कहानी और दुआओं का संसार - Gran Parents/ Stories And Blessings
प्रीति सोनी
यदापि पोष मातरं पुत्र: प्रभुदितो धयान्।
इतदगे अनृणो भवाम्यहतौ पितरौ ममां॥
 
अर्थात "जिन माता-पिता ने अपने अथक प्रयत्नों से पाल पोसकर मुझे बड़ा किया है, अब मेरे बड़े होने पर जब वे अशक्त हो गए हैं तो वे 'जनक-जननी' किसी प्रकार से भी पीड़ित न हों, इस हेतु मैं सेवा सत्कार से उन्हें संतुष्ट कर अपा आनृश्य (ऋण के भार से मुक्ति) कर रहा हूं ।"
 
यजुर्वेद में दिया गया यह श्लोक, हमें अपने माता-पिता और बुजुर्गों के प्रति अपने कतर्व्य को पूरा करने की शिक्षा देता है और बुजुर्गों का सम्मान करने का मार्ग प्रशस्त करता है। 
 
यह तो रही शास्त्रों की बात, लेकिन वर्तमान और सत्य के असल धरातल पर भी एक नजर डालें, तो बुजुर्गों की छवि हमें अपने बाल्यकाल में खींच कर ले जाती है। जब हमारे मन में यह बीज अंकुरित हुआ, कि हम इस दुनिया में सबसे अहम और सबसे कीमती हैं। हमारे आंसू बेहद कीमती हैं, जिन्हें हमारे बुजुर्ग व्यर्थ नहीं बहने देते और उनके आगे महंगी से महंगी वस्तुएं भी बेमोल होती हैं। अनमोल होते हैं, तो हमारे वे आंसू, जो हम अपनी जिद को पूरा करने के लिए बहाते हैं, और बुजुर्ग उन्हें प्रेम की पुचकार से समेट लेते हैं।
 
हमारे बुजुर्ग, जिन्हें बचपन से ही हमने प्रेम की मूरत के रूप में देखा है। दुनिया के लिए भले हम तिनका भी न हों, लेकिन उनके लिए उनकी आंखों के तारे और जिगर के टुकड़े होते हैं। हमारी छोटी से मुस्कान के लिए वे माता-पिता को भी डांट दिया करते हैं।हर रात उनकी कहानियां सुनकर, हम अपनी कल्पनाओं एक संसार बनाते हैं और यही संसार हमारे जीवन की अनमोल पूंजी होती है।

उनके प्रेम का दायरा यहीं तक सिमटा नहीं रहता, बल्कि हम पूरी दुनिया को जीत सकें, उत्तरोत्तर उन्नति करें इसका रास्ता भी वे ही हमारे लिए बनाते हैं। जहां दुनिया हमें कमी का एहसास कराती है, हमें बौना साबित कर हमारे आत्मविश्वास को कम करने का प्रयास करती है, वहीं बुजुर्गों द्वारा दिया गया प्रेम और मानसिक संबल ही हमारे लिए दुनिया पर जीत हासिल करने वाली पूंजी होती है। 
 
उनकी दुआओं का संसार इतना व्यापक होता है, कि कई परेशानियों और मुश्किलों से लड़ने की ताकत देकर हमारे लिए रक्षा कवच की तरह कार्य करता है। और एक दिन उनकी दुआओं से ही हम उस शिखर पर पहुंच जाते हैं, जिसके सपने हमने बुजुर्गों से कहानियां सुनते हुए देखे थे। निश्चित तौर पर उनके दिए गए संस्कार, प्रेम, काबिलियत और शिक्षा से ही हमारा व्यक्तित्व बनता है।

कई बार सफलता और उंचाईयां पाकर हम खुद को इतना बड़ा मान लेते हैं, कि उसकी बातें हमें बहुत छोटी लगने लगती हैं। दुनिया भर की चहल-पहल में हम उनके अकेलेपन का एहसास नहीं कर पाते, और हजार नाटकीय रिश्तों को निभाते हुए हम उनके निस्वार्थ प्रेम को भूल बैठते हैं। और जब कभी-कभार उनसे मिलने का समय आता है, तो हम भौतिक सुख-सुविधाओं से उस प्रेम को ढंकने का प्रयास करते हैं।
 
हम यह नहीं समझ पाते कि, उन्हें केवल कुछ वक्त का समय, साथ और प्रेम के दो बोल चाहिए, और कुछ नहीं। उनके लिए यही चीजें सारी दौलत और सुविधाओं से बड़ी होती है। और वे इसी भाव के साथ जीवन जीते हैं

इसलिए तो, जब कभी हम परेशान होते हैं, तो अनायास ही स्नेह भरा कोई हाथ हमारे सिर पर महसूस होता है, जो हमारी परेशानी और अकेलेपन को भांप लेता है। क्योंकि हम कितने भी बड़े क्यों न हो जाएं, उनके लिए तो हमेशा बच्चे ही होते हैं, जो केवल प्रेम से ही तृप्त होता है।